“सर… मेरी बात पहले सुन लीजिए, तब कुछ कहिएगा”

“सर… मेरी बात पहले सुन लीजिए, तब कुछ कहिएगा”

लॉक डॉउन के शुरुआती दिनों से ही मैं विभिन्न संचार माध्यमों से देश के अलग अलग हिस्सों में रह रहे छात्रों को मार्गदर्शन दे रहा हूं । इस हेतु मैंने पेपर और सोशल मीडिया के माध्यम से कई बार अपना मोबाइल नंबर भी जारी किया । इसी कड़ी में बहुत सारे छात्रों का फोन आया । जिसमें से कुछ छात्रों की बातों ने दिल को छुआ ही नहीं बल्कि मुझे भी प्रभावित किया । ऐसे छात्र समस्त संसाधन विहीन छात्रों के लिए प्रेरणास्रोत हैं । उन्हीं कुछ कॉल्स में से एक का अनुभव साझा कर रहा हूं । उम्मीद है इससे सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले और आर्थिक रूप से कमजोर छात्र बहुत प्रेरित होंगे । तो सुनिए पूरा वार्तालाप ।

” हेलो “

” हेलो सर , आप अखिलेश सर बोल रहे हैं ? “

हां बोल रहे हैं , कहिए क्या बात ?

” सर , हम आपका फेसबुक लाइव सेशन का वीडियो सुने , बहुत अच्छा है सर । मेरा सारा कन्फ्यूजन दूर हो गया सर । सर , मेरी बात पहले सुन लीजिए , तब आप कुछ कहिएगा । सर , दरअसल मैं यूपी के एक छोटे से कस्बे में सफाई कर्मचारी हूं और सिविल सरविसेज की तैयारी करता हूं । यू ट्यूब के माध्यम से जानकारी इकट्ठा कर कुछ बुक्स लिए हैं सर और उसी को पढ़ रहे हैं फिलहाल । परन्तु उससे संतुष्टि नहीं मिल रही है । आपका वीडियो सुनकर लगा यह सही तरीका है क्योंकि आपने सबसे ज्यादा स्ट्रेस एनसीईआरटी तथा अन्य मौलिक किताबों को पढ़ने पर दिया । अब इसी को फॉलो करेंगे सर ।”

” सर हम और भी कुछ कहना चाह रहे है , प्लीज़ हमारा रूटीन सुन लीजिए और हमे गाइड कीजिए सर । सर हम सुबह 5 बजे जगते हैं और सबसे पहले मुहल्ले में झाड़ू लगाते हैं । उसके बाद नस्ता करके छिटा ( टोकरी ) , सूप आदि बुनते है जिससे कि कुछ आमदनी हो और परिवार चला सके , फिर 11 बजे से साढ़े 12 तक पढ़ाई करते हैं , फिर खाना खाकर 1 बजे नगर निगम चले जाते हैं और वहां पर 4 बजे तक ड्यूटी करते हैं , उसके बाद फ्री होते हैं । ” इसपर मैंने कहा “तब तो आपके पास 4 बजे से रात के 1०- 11 बजे तक पढ़ने का पूरा मौका है ।” तब वह कहता है सर , “हमलोग झोप़पट्टियों में रहते हैं , वहीं हमारा छोटा सा घर है , 10 बजे रात तक काफी शोरगुल होता रहता है , और उसमें नहीं पढ़ पाते है । जब बच्चा बूत्रू सो जाता है तब हम 10 बजे से 1 बजे रात तक पढ़ाई करते हैं ।”

फिर कहता है “सर यहां कोई लाइब्रेरी भी नहीं है जहां जाकर हम स्वाध्याय कर सकें ।” तब मैंने उसे इतनी सलाह दी कि ठीक है शाम 4 बजे से 10 बजे रात तक आप पेपर और मैगजीन पढ़ लिया कीजिए जिसमें आपको बहुत कन्सन्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं होगी । वह चहकते हुए बोला “सर ये तो हम अब तक सोचे ही नहीं थे अब यही करेंगे । “

सबसे खास बात पूरी बातचीत के दरमियान …..उसकी बातों में कहीं भी दिन- हीन का भाव नहीं था, न ही इस बात का गम कि उसे पर्याप्त सुविधाएं नहीं मिल रही है । वह जोश से लबरेज और अपनी सफलता को लेकर एकदम आश्वस्त था। उससे बात कर ऐसा लगा कि मेरी पिछले तीन माह की मेहनत सफल हो गई । उसे मार्गदर्शन देने के साथ साथ मैं भी उससे प्रेरित हुआ। ईश्वर से उसकी सफलता की मंगलकामना करता हूं।

डॉक्टर अखिलेश कुमार। पटना साइंस कॉलेज में बतौर व्याख्याता, किसनगंज के पूर्व एसडीपीओ।

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