किसानी छोड़ मजदूर बनने को मजबूर अन्नदाता

किसानी छोड़ मजदूर बनने को मजबूर अन्नदाता

ब्रह्मानंद ठाकुर

लाईन जब कट गया तब बदरुआ,  फुलकेसरा और बटेसर अप्पन-अप्पन टिन हीं छिपा खेत के आडी पर रख मनकचोटन भाई के बोरिग के बगल वाले चबुतरा पर बिछाएल पुआल पर आकर बइठ  गये। मनकचोटन भाई का ई बोरिंग घर से थोडा दूर हटकर हय।  बोरिंग तक बिजली का पोल अभी नहीं गाड़ा गया है सो बांसे के खम्हा पर बोरिंंग तक कौभर वाला तार ले गये हैं और बोरिंग के पंजरा में लम्हर बांस गाड़ के ओकरा फुनगी में एगो बौल लगा दिए हैं । जब लाईन रहता हय तब  ऊ बौल काफी दूरे से जलता दिखाई देता हय।  बोरिंग के पंजरा में माटी भर कर एगो चबुतरा बना दिया है ताकि लोग वहां बइठ कर गपशप भी कर सकें।  खेत-खलिहान में  काम करने वाले खेतिहर काम करते हुए सुस्ताने के लिए अक्सर इसी चबुतरा पर जुटते हैं। खइनी-चुना आ गपशप के बाद फिर काम में जुट जाते हैं। बदरुआ, फुलकेसरा और बटेसर भाई आज सुबहे से इसी बोरिंग से गेहूं में पहिला पानी पटा रहे थे। घोंचू भाई का गेहूं का पटवन हो गया हय सो  वे  भी उसमें यूरिया छिटवा कर कांख में  खाली बोरा जंतले  आए और इसी चबुतरा पर  बइठ गये। मनकचोटन भाई  थोड़ा बिलम्ब से गेहूं बुआई कराए हंय सो ऊ अपना खेत में  घूम-घूम कर गेहूं के जर्मिनेशन को निहार रहे थे। चबुतरा पर बइठे लोगों पर जब उनकी नजर पड़ी तो वे भी  आकर उसमें शामिल हो गये। आज की बतकही की शुरुआत करते हुए बटेसर भाई ने  घोंचू भाई से कहा ‘रहा होगा कहियो खेती  उन्नत और सम्मानजनक पेशा ।

अब त देखिए रहें हैं कि जेकरा कहीं कोई दोसर उपाय न हय सेहे खेती में लागल हय। बबा कहते थे कि ऊ खेतिए से दूगो बेटी का विआह निम्मन घर में किए। बेटा को कॉलेज तक पढाए आ दस कठ्ठा जमीनो खरीदे। तहिया, दूगो भंइसी, एगो गाय  और एक जोडा  अगरधत्त बैल मे  बथान में हमेशा रहता था। पोरा के टाल, बेढी-बखारी दूरा का शोभा बढाता था। कहां चल गया ऊ समय ?  एगो हम्मर चच्चा थे ऊ असगरे ठेहा पर गंरासा से कुट्टी काट कर  पांंचों मवेशी को अइसा पोशते थे कि ओकरा देह से माछी फिसल जाए। हमहूं तहिया पढ़बो किए और खेतो में खूब कामो किए। आइयो त करिए रहे हैं मगर आजुक लड़िका सब खेत में झांकने भी नहीं आता है। देखबे करते हंय कि अपना गांव में मनोहर चच्चा ,दिलावर बाबू ,और जगमोहन भाई  बडका जमीदार थे।  उनके धान की दउनी पूस महीना में जो शुरू होती थी ,वह माघ तक चलती थी। दूरा पर पोरा का चार – चार टाल लगता था। और आज ?  उनका लडिका सब पटना ,दिल्ली में नोकरी करता हैः। खेत – पथार सब ठीका – बटाई पर लगा दिया। प्रति फसल तीस से पैंंतिस किलो कठ्ठा निखर्चे आ जाता है। साल में एक बेर आते हंय आ  बटाईदार से फसल वसूल  ,बेंच कर फेर चल जाते हैं। बाप रे बाप ,एक फसल में  प्रति कठ्ठा 35 किलो ?  आ ऊपर से केसीसी ,फसल क्षति अनुदान ,कृषि इनपुट और  फसल बीमा का लाभ भी उन्हीं को मिलता हय। हर्रे लगे न फिटकिरी आ रंग उतरे चोखा। हम त अतेक पूंजी और मिहनत के बाद भी कूथ – काथ कर 70-75 किलो कठ्ठा धान और गेहूं  उपजा पाते हंय। तइयो हकलल के हकलले।

तहिया हम्मर बाबा नोकरी को निर्घिन बताकर हमको नोकरी नहीं करने  दिए रहे। कहते थे उत्तिम खेती मध्यम वाण ,निर्घिन सेवा भीख निदान। आज देखिए ,केना खेती  निर्घिन हो गई और नोकरी उत्तम ! अब त जिसको जीवन – जीविका का कोई दूसरा साधन नहीं हय ओहे खेती में लागल हय । ई झुठ्ठे के न सरकार कहती है कि किसान अन्नदाता हैं ,देश की रीढ हैं ,किसानों की मिहनत से ही देश खाद्यान्न के मामले में आत्मनिर्भर हुआ है वगैरह वगैरह। कोई झांकने भी आया कि किसान किसतरह खून – पसीना बहाकर फसल उगाता है और उसका पेट और जेब दोनो खाली का खालिए रह जाता है। 

हमलोग जब फसल उपजाते हैं तो हमसे काफी कम रेट में हमारी फसल खरीदी जाती है और   फिर  बाद में हमे  बाजार से वही चीज अधिक दाम पर खरीदना पडता है।  किसानकी उपज मंडी में पहुंचते ही 13 रूपये किलो बिकने वाले धान का चावल  40- 45 रूपये ,16  रुपये किलो बिकने वाले गेहूं का आंटा 25-28 रुपये  किलो और चोकर का     रेट 22 रुपये किलो केना हो जाता हय घोंचू भाई ? इससे त छोटका किसान मरबे न करेगा ? गेहूं से महंग ओक्कर छिलका  !   

 बटेसर की बात घोंचू भाई बडे ही गौर से सुन रहै थे। उसकी बात पूरी होते ही उन्होने मानो राज की बात बताते हुए कहना शुरू किया  ‘  देखो बटेसर, यह बिल्कुल सही है कि छोटा किसान अपनी जितनी उपज बाजार में बेंचता हय ,साल भर में उससे कहीं ज्यादा जरूरत का सामान वह बाजार से खरीदता भी है।मान लो, हमलोग धान ,गेहूं ,मकई ,दलहनी और तेलहनी फसल अपने गुजारे के लिए रख कर  बाजार में तो बेंच देते हैं लेकिन बाद में  उनको अन्य कृषि उत्पाद जैसे  दाल ,तेल ,चीनी ,गुड ,चायपत्ती ,तम्बाकू ,फल- सब्जी , पशु के लिए खल्ली ,चोकर, सहित अन्य तमाम उपभोग की वस्तुएं जो कच्चे माल के रूप में कृषि  उत्पाद से ही तैयार की हुई होती है ,काफी महंगी कीमत पर   खरीदना पडता है।  किसान तो दोहरे शोषण का शिकार  हो रहा है। अपनी उपज सस्ता बेंचने और  कल – कारखाने में तैयार सामान महंगा खरीदने की यही व्यवस्था हमारी तबाही का कारण है। जानते हैं ,बटेसर भाई ,पिछले दिन दिल्ली में विभिन्न राज्यों के 208 किसान संगठनो ने न्यूनतम समर्थन मूल्य और कृषि उत्पादन लागत कम करने  और कर्ज माफी  की  मांग को लेकर जो आंदोलन शुरू किया है  ,उससे भी इस समस्या का समाधान नहीं होने वााला है। मान लीजिए कि यदि फसलों के दाम लागत से 50 फीसदी बढा कर भी तय कर दिए जाएं तो इसका असर तो उन उपभोक्ता वस्तुओं पर भी पडेगा ही जिसका उत्पादन कल – कारखाने में हो रहा है ?  इसका दाम तो बढेगा ही। और दूसरी बात  ,यह  एमएसपी भी तो सभी फसलों पर लागू नहीं होगा। आप खूब अच्छी तरह समझ लीजिए कि फसलों के लाभकारी मूल्य बढाने की जो मांग की जा रही है वह छोटे किसानो ,खेतिहर मजदूरों और गरीबों के खिलाफ है। आज अपने देश में खेती पर निर्भर 30 फीसदी आबादी में 85 फीसदी संख्या लघु और सीमांत किसानो की है जिनके पास  दो से पांच बीघा या दो बीघा से भी  कम जमीन है।  बडे किसान तो आज भी  आधा से ज्यादा जमीन पर कब्जा जमाए हुए हैं।  औसत 100 बीघा में 56 बीघा पर इन्हीं 15 फीसदी किसानों का कब्जा है । धनी और गरीब किसानो का कृषि उत्पादन लागत भी अलग – अलग होता है बटेसर भाई।   गरीब किसान के लागत मूल्य मे बडा हिस्सा उसकी मजदूरी होती है । लागत मूल्य कम होगा तो मजदूरियो न कम होगा ! तब इससे किसका भला होगा ?  इसलिए एमएसपी बढाने और लागत मूल्य घटाने से गरीब किसानो ,खेतिहर मजदूरों और गरीबों का भला नहीं होने वाला है।  एक से महंगाई बढेगी तो दूसरे से मजदूरी घटेगी।घोंचू भाई अभी बोलिए थहे थे कि   बांस के खम्भा पर टंगा बिजली का बौल भक्क से जल उठा। ‘ चलो ,लाईन आइए गया त बांकी खेत में पानी पटिइए लेते हंय ‘ कहते हुए सभी खेत की ओर चल पडे और घोंचू भाई  अपने कांख मे यूरिया का खाली बोरा चांपे घर की ओर प्रस्थान कर गये।

ब्रह्मानंद ठाकुर।बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।

One thought on “किसानी छोड़ मजदूर बनने को मजबूर अन्नदाता

  1. घोन्चू भाई किसानी हालत को लेकर लगातार चिंतित हैं ।बढिया आलेख ।

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