आओ गांधी-गांधी खेलें !

आओ गांधी-गांधी खेलें !

ब्रह्मानंद ठाकुर

देश महात्मा गांधी के चम्पारण सत्याग्रह शताब्दी वर्ष मना रहा है तो जाहिर है कि मुजफ्फरपुर इस आयोजन में बढ़चढ़ का हिस्सा लेगा । मुजफ्फरपुर में 10 अप्रैल से शुरू होकर 15 अप्रैल तक चलेगा । ( 15 अप्रैल 1917 को गांधी चंपारण चले गए थे) । लिहाजा मुजफ्फरपुर के लोग आओ गांधी गांधी खेलें नाटक को जीवंत करने में जुट गए हैं । क्योंकि हमें संजोना है गांधी की विरासत को । गांधी की विरासत और विचारधारा को लेकर हम कितने संजीदा हैं ये इस बात से आसानी से समझा जा सकता है कि मुजफ्फरपुर प्रवास के दौरान बाबू जिस गया प्रसाद के घर में ठहरे उसकी तलाश में जब प्रशासन उनके घर पहुंचा तो अजीब की स्थिति का सामना करना पड़ा । गया प्रसाद के वंशज मकान पर अपना-अपना दावा ठोकने लगे उनका कहना था कि 1917 में मुजफ्फरपुर आने पर बापू उनके ही मकान में ठहरे थे। गया बाबू तब पेशे से वकील हुआ करते थे  और वर्तमान वैशाली जिले के प्रखंड जन्दाहा के निवासी थे। यहां गया बापू का दो मकान था, एक मकान रमना के पास है और दूसरा नई बाजार में। गया बाबू के वंशजों की दावेदारी को देखते हुए केन्द्र सरकार ने सूचना प्रसारण मंत्रालय से प्रकाशित सम्पूर्ण गांधी वांगमय का सहारा लिया और उसमें  दिए गये तथ्य के आधार पर रमना वाले मकान पर बापू के ठहरने की बात सामने आई ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी आज से 100 साल पहले 1917 में चम्पारण जाते वक्त पहली बार 10 अप्रैल को बिहार के मुजफ्फरपुर भी रुके थे । उनके मुजफ्फरपुर आने  के पीछे भी एक कहानी है। यह कहानी  नीलहे अंग्रेजों के अत्याचार से पीड़ित चम्पारण के किसानों की कहानी ।  ये उस दौर की बात है जब गांधीजी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे ही थे। वहां उन्होंने जो संघर्ष किया उसकी जानकारी भी  बिहार तक पहुंच चुकी थी। पंडित राजकुमार शुक्ल को विश्वास हो चला कि गांधी जी ही चम्पारण के किसानों को ‘नीलहे साहब’ के आतंक से मुक्त करा सकते हैं। वैसे गांधीजी के चम्पारण आने से पहले ही यहां के किसान शेख गुलाब, राजकुमार शुक्ल, हरबंश सहाय, पीर मोहम्मद मुनिश, संत राउत, डोमराज सिंह आदि अपने तरह से नीलहों के विरूद्ध आंदोलन चला रहे थे। 1907-8 में यहां के किसानों की नीलहों से भिडंत हो चुकी थी। ब्लुम्ड फिल्ड नामक  निलहे अंग्रेज की हत्या से चम्पारण सुलगने लगा था। उस समय अंग्रेजों द्वारा किसानों से निर्दयता पूर्वक वसूला जाने वाला पैन खर्चा,  सलामी, तीनकठिया,  लगान, बांधबेहरी,  बपही-पुतही, नवही, धवही, फगुअही, हथिअही, घोड़ही, बेटमाफी आदि 40 तहर के टैक्स से किसान आजिज आ चुके थे । उन्हें एक ऐसे उद्धारक की तलाश थी जो इस संकट से उन्हें मुक्ति दिला सके।

पंडित राजकुमार शुक्ल ने  27 फरवरी 1917 को गांधी जी को एक पत्र लिखकर चम्पारण के किसानों की दशा का मार्मिक वर्णन करते हुए उन्हें चम्पारण का बुलावा भेजा और  अपनी आंखों से अंग्रेजी हुक्मरानों की बर्बरता देख लेने का अनुरोध किया। इससे पहले 26 से 30 सितम्बर 1916 में लखनऊ कांग्रेस अधिवेशन में बतौर प्रतिनिधि शुक्ल जी शामिल हो चुके थे और गांधी जी को चम्पारण के किसानों की दशा बता चुके थे। तब गांधी जी ने उनसे कहा था कि खुद बिना देखे वे कुछ नहीं कर सकते। शुक्ल जी हार नहीं माने और गांधी को चम्पारण बुलाने के अपने मिशन में लग गये।  महात्मा गांधी की  आत्मकथा- सत्य की खोज और भैरव लाल दास द्वारा सम्पादित राजकुमार शुक्ल की डायरी में गांधीजी के चम्पारण आगमान की कहानी विस्तार से दर्ज है।   पंडित राजकुमार शुक्ल के साथ कलकत्ते से ट्रेन पर सवार होकर बापू चम्पारण जाने के लिए 10 अप्रैल 1917 को मुजफ्फरपुर पहुंचे । आचार्य जेबी कृपलानी उस वक्त एलएस कालेज में प्राध्यापक हुआ करते थे । प्रिंसपल एक अंग्रेज था। मुजफ्फरपुर स्टेशन पर पहुंचने के बाद आचार्य कृपलानी के नेतृत्व में कालेज के छात्रों की ओर से उनका भव्य स्वागत किया गया और 20-25 की संख्या में छात्रों ने उस बग्घी को अपने कंधे से खींचते हुए गांधी जी को एलएस कालेज में ले आए । बग्घी  चारों तरफ से बंद रहने के कारण बापू को पता नहीं चला कि इसे विद्यार्थी खींच रहे हैं या फिर कोई और । बाद में जब मालूम हुआ तो वे काफी नाराज भी हुए । कालेज में ठहरने लायक जगह नहीं होने के कारण उन्हें  रमणा स्थित वकील गया प्रसाद के आवास पर ले जाया गया और यहीं पर बापू चार दिनों तक ठहरे।

बापू के मुजफ्फरपुर आगमान के 100 साल पूरे होने पर पूरा जिला बापू के रंग में रंग गया है । कहीं बापू के सिद्धांतों की चर्चा हो रही है तो कहीं बापू पर मंचन हो रहा है । आओ गांधी गांधी खेलें नाम से होने वाले नाटक में बापू की भूमिका निभा रहे हैं इतिहास विभाग के पूर्व अध्यक्ष डॉक्टर भोजनन्दन प्रसाद सिंह । जेबी कृपलानी का किरदार डा. अवधेश कुमार और डा. पीएन सिंह प्लांटर्स एसोसिएशन के सचिव जेम्स विलियम की भूमिका में होंगे।  डॉ. अरूम कुमार सिंह  पंडित राजकुमार शुक्ल का किरदार निभा रहे हैं। गया बाबू की भूमिका में बाबू गया प्रसाद सिह के पौत्र रमा रंजन प्रसाद सिंह  निभा रहे हैं ।उस दिन आयुक्त कार्यालय कक्ष में यूनियन जैक लगाया जाएगा । 1917 में गांधी और अंग्रेज कमिश्नर मोर्स हेडको के बीच हुई बातचीत को जीवंत रूप देने के लिए आयुक्त के कक्ष में क्विन विक्टोरिया की तस्वीर वाला 1917 का कैलेन्डर भी लगेगा । यह 13 अप्रैल को होगा । इसी दिन 1917 में गांधी जी तत्कालीन कमिश्नर मोर्स हेडको से उसके कार्यालय कक्ष में मिले थे। 10 से 15 अप्रैल तक हेरिटेज वाक का कार्यक्रम चलेगा । उसी दिन बापू चम्पारण  के लिए प्रस्थान किये थे । कार्यक्रम के दौरान सभी सहभागी गांधी टोपी पहनेंगे । मुख्य समारोह में बिहार के सीएम नीतीश कुमार भी शामिल होंगे । शासन से प्रशासन तक इस आयोजन को सफलता की मुकाम तक पहुंचाने में जुटा है । अपनी चिंता तो इस बात के लिए है कि इस सब के बीच गांधी आज कहीं नहीं दिखाई दे रहे हैं। उनका ‘अंतिम जन ‘तब जहां था आज भी वहीं है। गांधी ने अपनी हत्या से एक साल पहले 27/9/194 7 को अपनी डायरी में लिखा था-

Independence has-been earned by sacrifice it can maintained by sacrifice. My followers , the so-called congress men will grow arrogant ,self centred and power made in 30years from now. Masses will breakout in rebellion ,find out white caps ;beat somewhere, somewhere kill them. A third force will emerge &take charge of the government. I am not an astrologer but, l have my inference on the past experience- mk gandhi


ब्रह्मानंद ठाकुर/ BADALAV.COM के अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। गांव में बदलाव को लेकर गहरी दिलचस्पी रखते हैं और युवा पीढ़ी के साथ निरंतर संवाद की जरूरत को महसूस करते हैं, उसकी संभावनाएं तलाशते हैं।