दोस्ती का धागा

दोस्ती का धागा

रेणु ओहरी

रेशम की डोरी है प्रेम का है धागा
बड़ा ही नरम गरम ये दोस्ती का नाता
रिश्तों की कोई बंदिश नहीं
मन में कोई बोझ नहीं
पावन सा बंधन है ये दोस्ती का धागा

ख़ून के कर्ज़ में ये दबा नहीं है
लाल रंग सफेद होने का भी डर नहीं है
बेखौफ, बेपरवाह, प्यारा सा ऐहसास है
कुछ भी ना होते हुए, फिर भी सबसे खास है

लाखों में कोई एक अपना सा जब लगता
दिल का ये रिश्ता जोड़ने को मन तरसता
जब कभी कोई दोस्त बनकर आता है दिल के करीब
लगता है इस दूनिया में हैं सबसे ज्यादा हम अमीर

जब कभी किसी को बांधो दोस्ती का ये धागा
सदा ही निभाना उससे दोस्ती का नाता
ऐसे ही तो नहीं कोई मन को है लुभाता
ईश्वर की सौगात होता दोस्ती का नाता
पर सोच समझ कर बांधना ये दोस्ती का धागा
बड़ा ही अनमोल है ये दोस्ती का नाता


रेणु ओहरी। कवयित्री, लेखिका । दिल्ली के रोहिणी के अनेक्स कॉन्वेंट स्कूल में बतौर प्रिंसिपल कार्यरत।

4 thoughts on “दोस्ती का धागा

  1. शब्दों के उपवन का एक अौर महकता फूल । अति सुंदर Renu mam

  2. This Poem is really really good aunt. This is a serious talent here. good job

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