पार्टनर; तुम्हारा कंपार्टमेंट क्या है!

पार्टनर; तुम्हारा कंपार्टमेंट क्या है!

राकेश कायस्थ

फेसबुक का अपना अनुभव शेयर कर रहा हूं। मुमकिन है, आपका अनुभव मुझसे कुछ अलग रहा हो।फेसबुक पर एक तबका अजीबोगरीब किस्म के हिंसक आत्मसंतोष से भरा दहाड़ रहा है। इतना संतोष दुशासन के छाती के रक्त से अपने केश धोने के बाद पांचाली को भी नहीं हुआ होगा जितना आज इन्हे हुआ है। मेरी मित्र मंडली 40 से लेकर 55 साल की उम्र के कई लोगो ने योगी आदित्यनाथ के कुछ कथित बयान शेयर किये हैं, जिनमें एक समुदाय विशेष के बारे में बेहद अभद्र और अपमानजनक टिप्पणियां की गई हैं। मेरी जानकारी के मुताबिक योगी ने ऐसे बयान नहीं दिये हैं, कम से कम मुख्यमंत्री बनने के बाद तो कतई नहीं। लेकिन जिन लोगो ने ये कथित बयान जारी किये हैं, उनके फेसबुक वॉल पर ढेरो लाइक हैं और अश्लील किस्म से ताली पीटती फूहड़ टिप्पणियां भी, देखो अभी से टाइट कर दिया वाले अंदाज़ में। ये सब गंभीर किस्म के मनोरोग के लक्षण हैं।

एक दूसरा तबका है। बीजेपी का मध्यमवर्गीय वोटर तबका। सभ्य, शिक्षित, सुसंस्कृत। उसे सीएम कोई और चाहिए था। लेकिन वो सिर्फ इस खुशी में बावला है कि देखो.. उनकी कैसे जल रही है, या फट रही है। पूरे दिन में मुझे एक भी ऐसा बीजेपी सपोर्टर नहीं मिला जिसने ये कहा हो कि मुझे यूपी में कमल चाहिए था लेकिन सीएम कोई और। आमतौर पर लोकतांत्रिक समाज में अलग-अलग राय होती है। लेकिन असहमत होने या अलग सोचने के विकल्प अब खत्म हो चुके हैं। अलग-अलग कंपार्टमेंट हैं। आपको कोई एक ही चुनना होगा, अगर नहीं चुनेंगे तब भी आपको जबरन किसी कंपार्टमेंट में धकेल दिया जाएगा।

एक तीसरा तबका है जो ऑब्जेक्टिव बने रहने की कोशिश करता है और हर तरफ से गालियां खाता है। सुबह एक पोस्ट उज्ज्वला स्कीम की तारीफ में लिखता है तो जयजकार होती है और शाम को गलती से पूछ ले कि नोटबंदी में कितना पैसा आया तो पाकिस्तान का ट्रिप स्पांसर करने वाले कई लोग सामने आ जाते हैं। मजबूरन इस तबके के ज्यादातर लोग खामोश हैं। ये खामोशी भी किसी स्वस्थ समाज की निशानी नहीं है।

सियासी सवालों पर अलग-अलग राय हर समाज में होती है। भारत में भी हमेशा से रही है। लेकिन समाज इस कदर विभाजित कभी नहीं रहा। मंडल और कमंडल के दौर में भी नहीं। आखिर बहुसंख्यक तबके में इतना डर क्यों है? आप देश में भी बहुसंख्यक हैं और राजनीतिक व्यवस्था में भी। फिर कौन सी चीज़ है, जो आपको इतना डरा रही है? ऐसा नहीं है कि यह डर सिर्फ भारत में हैं। अमेरिका का साधन संपन्न श्वेत समुदाय भी अश्वेतों और अप्रवासियों से डरा हुआ है। डर दूर करने के लिए ट्रंप आये, लेकिन उनके आने के बाद यह डर इस कदर बढ़ गया कि अप्रावासियों की हत्या की जाने लगी।

नफरत की बुनियाद पर बने पाकिस्तान में मुसलमान बहुसंख्यक ही नहीं बल्कि लगभग शत-प्रतिशत हैं। लेकिन पाकिस्तान के बनते ही उन्हे डर सताने लगा कि इस्लाम खतरे में है। इस्लाम के दुश्मनों का चुन-चुनकर सफाया किया जाने लगा। हिंदू, ईसाई, अहमदिया जिनसे भी डर था, वो बेचारे मिटा दिये गये। डर फिर भी दूर नहीं हुआ। अब वे एक-दूसरे की गर्दने उतार रहे हैं। इसके बावजूद पाकिस्तानी अब तक तय नहीं कर पाये हैं कि उनका असली दुश्मन कौन है?

योगी आदित्यनाथ एक राजनीतिक प्रक्रिया से मुख्यमंत्री बने हैं। नरेंद्र मोदी का प्रधानमंत्री बनना जितना स्वभाविक था, आदित्यनाथ का मुख्यमंत्री बनना भी उतना ही स्वभाविक है। राजनीतिक बातों को थोड़ी देर के लिए भूल जायें और सिर्फ देश भर में चल रही प्रतिक्रियाओं को देखें। कहीं ये मास हीस्टीरिया का लक्षण तो नहीं है। जैसा कि मैने शुरू में बताया था, ये पोस्ट मेरे निजी अनुभवों पर आधारित है। आपके अऩुभव मुझसे अलग हो सकते हैं। सभ्य और शालीन भाषा में अनुभव शेयर कीजिये। अगर कहने कोई बात हो वो भी कीजिये।

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राकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय । खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ, टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।