दलित होने का दर्द… छात्र से प्रोफेसर बनने तलक

रविकांत चंदन

RAVI KANT CHANDAN-1हाल में बिहार शिक्षा (माध्यमिक) बोर्ड के हाईस्कूल और इंटरमीडिएट के नतीजे सुर्खियों में रहे हैं। पहले जिन टाॅपर्स के घरों में खुशियाँ मनायी जा रही थीं, मिठाइयाँ बांटी जा रही थीं, आज ज्यादातर वैसे घरों में मुर्दनी छायी है। कुछ टाॅपर्स फरार बताए जा रहे हैं। दरअसल मीडिया में कैमरे के सामने आने पर उनके टाॅपर्स होने की पोल खुली। मीडिया द्वारा कुछ सामान्य से सवाल पूछे जाने पर कुछ टाॅपर्स बगलें झांक रहे थे या ग़लत जवाब दे रहे थे। मामले के तूल पकड़ने पर बिहार सरकार ने जाँच बिठाकर टाॅपर्स का पुनर्मूल्यांकन करने का फैसला किया। कुछ जाँच में भी फेल हो गए और कुछ टाॅपर्स तो जाँच समिति का सामना करने की भी हिम्मत नहीं जुटा सके। जाँच में फेल होने वाले और फरार टाॅपर्स के खिलाफ प्राथमिकी दर्ज कर कानूनी कार्रवाई की जा रही है। धीरे-धीरे शिक्षा माफिया के पूरे तंत्र का पर्दाफाश हो रहा है। इस पूरे प्रसंग में मुझे 1992 में मेरे साथ घटित हुआ कुछ ऐसा ही वाकया याद आ गया।

बुन्देलखण्ड के दक्षिणी छोर पर स्थित जालौन जिले में चंबल के कुख्यात बीहड़ों और पाँच नदियों (यमुना, चंबल, सिंध, पहूज और कँवारी) के संगम के नजदीक मेरा गाँव स्थित है। आज लगभग दस हजार की आबादी वाला मेरा गाँव जगम्मनपुर कभी एक छोटी-सी रियासत हुआ करता था। आजादी के बाद गाँव के राजा बीरेंद्रशाह, जो उत्तर प्रदेश की पहली विधानसभा के सदस्य भी थे, ने अपने किले में ही पहले हाईस्कूल और बाद में इंटरमीडिएट काॅलेज स्थापित किया। प्रबंधन समिति का वर्चस्व होने के कारण श्रीराजमाता इंटर काॅलेज में ज्यादातर अध्यापक सवर्ण जाति के हैं। उनमें भी सर्वाधिक संख्या ठाकुरों की है।

RAVI KANT CHANDAN-2एक जमाने में मेरे काॅलेज का बहुत नाम था। पिताजी बताया करते हैं कि उनके जमाने के प्रिंसिपल हरिश्चन्द्र शुक्ल के दोनों बेटों ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट में यू0पी0 टाॅपर्स में अपना नाम रोशन किया था। प्रिंसिपल शुक्ला जी का पढ़ाई पर बहुत ध्यान रहता था। सांध्यकालीन कक्षाएँ भी चलती थीं। जो पढ़ने में आनाकानी करते थे उनकी खूब पिटाई भी होती थी। लेकिन धीरे-धीरे माहौल बदलता गया। पढ़ाई का स्तर गिरता गया। नकल के माहौल ने पढ़ने और पढ़ाने वाले, दोनों को कमोबेश निकम्मा और बेईमान बना दिया।

हमीरपुरा प्राइमरी स्कूल में दर्जा 1 से 5 तक मैं अपनी कक्षा में अव्वल रहा। इसके बाद इंटर काॅलेज में दाखिला लिया। इस उम्र में भी मुझे घर का ढ़ेर सारा काम करना पड़ता था। सुबह पाँच बजे उठकर जानवरों के लिए चारा लाना और उसके बाद घर आकर कुँए से चालीस-पचास बाल्टी पानी भरना पड़ता था। मेरे गाँव में उस समय भी पानी का स्तर बहुत नीचे था। सुबह के काम निपटाकर कभी दूध-रोटी तो कभी बिना खाए ही पढ़ने जाता था। शाम को बकरी चराते, खेल-तमाशे करते और गाना गाते हुए मस्त रहता। फिर भी पढ़ाई में हमेशा अव्वल आता।

दुनिया-समाज की बारीक और खुरदुरी सच्चाइयों से अभी या तो ठीक से सामना नहीं हुआ था या महसूस करने की वह गहरी समझ पैदा नहीं हुई थी। जो भी हो। भाव-अभाव के बीच झूलते हुए जिन्दगी आगे बढ़ रही थी। दलित होने का दंश कब डस लेगा, मुझे पता ही नहीं था। कक्षा में हमेशा अव्वल रहने के कारण ज्यादातर सवर्ण और सुन्दर लड़कियों का दुलारा रहता था। हालांकि लड़के इस बात से बहुत चिढ़ते थे। वे कभी गाली देते तो कभी हाथा-पाई पर भी उतर आते थे। जाति के भेदभाव के बावजूद एक-दो को छोड़कर ज्यादातर अध्यापक मुझे बहुत चाहते थे।

RAVI KANT CHANDAN-31992 में एक नए अध्यापक आए। नाम था- ऊदल सिंह राठौर। दर्जा आठ की अर्द्धवार्षिक परीक्षा की हिन्दी की काॅपियाँ राठौर साहब ने ही जाँची थीं। उत्तर पुस्तिकाओं को लेकर वे मेरी कक्षा की ओर आए। सर्दियों के दिन थे। अधिकांश अध्यापक काॅलेज के मैदान में अलग-अलग बैठकर कक्षाएँ ले रहे थे। राठौर साहब ने आते ही मेरी कक्षा के एक छात्र काजू का रोल नम्बर पुकारा। काजू के हाजिर होते ही दो-तीन अध्यापक उसकी पिटाई करने लगे। दरअसल उसने अपनी काॅपी पर लिखा था कि ‘गुरु जी अगर आपने मुझे पास कर दिया तो आप हमारे जीजा जी और अगर फेल कर दिया तो हम आपके जीजा जी!’ काजू की पिटाई हो ही रही थी कि तभी मेरा रोल नम्बर बुलाया गया। मैं डरते-सहमते अध्यापकों के पास पहुँचा। राठौर साहब ने हाथ उठाया और मेरी पीठ पर दे मारा। मुझे लगा कि आज बहुत मार पड़ेगी। लेकिन यह क्या! राठौर साहब मेरी प्रशंसा कर रहे थे। उन्होंने मुझे पचास में से सर्वाधिक तैंतालीस अंक दिए थे। देखते ही देखते काॅलेज के सभी अध्यापक जमा हो गए। सब मेरी प्रशंसा कर रहे थे।

गुप्ता जी को नाकाबिले बर्दाश्त हुआ। बोले, इसने नकल की होगी। प्रधानाचार्य भदौरिया जी भी मुझसे कुछ चिढ़ते थे। दरअसल उस साल नकल पर बहुत सख्ती थी और उनके सुपुत्र हाईस्कूल में ही फेल हो गये थे। हाईस्कूल और इंटर दोनों ही नतीजों में इस वर्ष मेरे काॅलेज का नाम ही नहीं आया था। माने, कोई भी पास नहीं हुआ था। अध्यापक मेरी प्रशंसा करते हुए कहते थे कि ये लड़का काॅलेज का नाम रोशन करेगा। भदौरिया जी ने गुप्ता जी की बात को पकड़ लिया। बोले, लड़के को बुलाओ और काॅपी पर लिखे हुए सवाल पूछो।

RAVI KANT CHANDAN-4मुझे तत्काल बुलाया गया। काॅलेज में चारों तरफ छात्र-छात्राएँ जमा हो गए। कुछ तो इस उम्मीद में थे कि आज इसकी मजामत होगी। बड़ा होशियार बनता है! बारी-बारी से अध्यापक सवाल पूछ रहे थे और मैं तुरंत जवाब देता जाता था। सोनी जी ने पूछा, ‘अधिक बोलने वाले को क्या कहते हैं? मेरे मुँह से अनायास निकला ‘वाचाल’। लेकिन जवाब देने के साथ ही मैं अंदर तक सिहर गया। दरअसल, मुझे इस प्रश्न का जवाब आता ही नहीं था। परीक्षा के दौरान मेरे एक अध्यापक मिश्राजी उर्फ बाबूजी ने मुझे इसका जवाब बताया था। मैंने सिर्फ ‘कम बोलने वाले’ (मितभाषी) का ही एक शब्द पढ़ा था।

RAVI KANT CHANDAN-5खैर उस दिन मुझे अपनी याद्दाश्त पर भरोसा हुआ लेकिन मामला यहीं खत्म नहीं हुआ। बात पाठ के अंशों की व्याख्या पर आई। मैं व्याख्या को शब्द-दर-शब्द नहीं बता सका। बताया भी नहीं जा सकता। मैं फिर से व्याख्या करने की कोशिश कर रहा था। ज्यादातर अध्यापक संतुष्ट थे। लेकिन गुप्ता जी मुझे सबक सिखाने के मूड में लग रहे थे। अब उनकी जुबान पर जाति आ गई थी। उन्होंने फिर जोर से कहा कि व्याख्या जरूर नकल से की गई है। लेकिन अब उनकी बात किसी ने नहीं मानी। राठौर साहब ने उन्हें फटकारते हुए कहा, ‘लड़के को जाति से नहीं ज्ञान से परखिए मास्साब!’ बात आई-गई हो गई। लेकिन गुप्ता जी ने अपने ‘अपमान’ (अहंकार) का बदला अगले साल लिया। एक सवर्ण (ब्राह्मण) लड़की को उन्होंने सिखा-पढ़ाकर मेरे ऊपर आरोप लगवाया कि मैंने उससे बदतमीजी की है। खुद ही गवाह, खुद ही मुख्तार और हाकिम भी खुद ही गुप्ताजी हो गए। फिर उन्होंने मुझे इतना मारा कि उस वाकये को याद करके आज भी अंदर तक कांप जाता हूँ।

ravikant profile-2


जवाहर लाल नेहरु यूनिवर्सिटी के शोधार्थी रहे रविकान्त इन दिनों लखनऊ विश्यविद्यालय में सहायक प्रोफेसर (हिन्दी विभाग) हैं। उनसे E-Mail : [email protected] या मोबाइल- 09451945847 पर संपर्क किया जा सकता है। 


अजीत सलाखों में कैसे गुन लेते हो हसीन सपने…. रविकांत का लिखा पढ़ने के लिए क्लिक करें

One thought on “दलित होने का दर्द… छात्र से प्रोफेसर बनने तलक

  1. सर… अगर आज गुप्ताजी होंगे तो अपने इसी काम पर शर्मिंदा होंगे…
    ये समय का न्याय है…।

Comments are closed.