कोरोना संकट: शहर में चूके, गांव में मत चूकना

कोरोना संकट: शहर में चूके, गांव में मत चूकना

कोरोना से लड़ने के लिए 25 मार्च से देश में जो लॉकडाउन लगाया गया वो 72 घंटे भी नहीं टिक सका। 27 से 28 मार्च के बीच पलायन को मजबूर लोग दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर हजारों की संख्या में पहुंच गए कर्फ्यू और सोशल डिस्टेंसिंग के सभी नियम कानूनों की धज्जियां उड़ गईं । ऐसे में सबसे बड़ा सवाल यही था कि क्या हमने ऐसी कोई प्लानिंग कर रखी थी कि अगर लॉकडाउन के बाद ऐसी स्थिति आई तो उसको कैसे हैंडल किया जएगा । फिलहाल मौजूदा हालात को देखते हुए बिल्कुल नहीं लग रहा है कि हमारी सरकारों के पास इस हालात से निपटने के लिए कोई ब्लू प्रिंट तैयार था और अगर रहा होता तो पिछले 36 घंटे से जो स्थिति बनी हुई है वो ना होती । ऐसे में सवाल ये है कि अब क्या होगा, सरकारों को अब क्या कदम उठाने चाहिए । लॉकडाउन के बीच उत्पन्न हुई इस भयावह स्थिति से हम कैसे निपटेंगे । इन्हीं सवालों के जवाब तलाशने के लिए मैंने IAS अफसर प्रशांत कुमार से लंबी बातचीत की । उन्होंने कुछ सुझाव भी दिए और दिल्ली सरकार और केंद्र की ओर से उठाए गए कदमों के बारे में भी चर्चा की । प्रशांत जी के साथ हुई बातचीत के कुछ अंश बदलाव के पाठकों के लिए प्रकाशित किया जा रहा है ।

बदलाव- दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर हजारों लोगों का जमावड़ा लगा है उसे आप किस रूप में देखते हैं ?

प्रशांत कुमार- देश की राजधानी में जो तस्वीरें सामने आई हैं उसको देखते हुए ये कहना गलत नहीं होगा कि लॉकडाउन एक तरह से फेल हो चुका है । कहने के लिए ये दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर है, लेकिन ये जहां जाएंगे वहां भी लॉकडाउन को ही चुनौती देंगे ।

बदलाव- आखिर कर्फ्यू के बाद भी इतनी बड़ी संख्या में लोग घरों से कैसे निकले ?

प्रशांत कुमार- देखिए  ये देश का वो वर्ग है जो रोज कमाता है और रोज खाता है । इनमें ज्यातार लोग दिहाड़ी मजदूर हैं, जिनके रहने का भी ठिकाना नहीं है । मुझे लगता है कि हम देश के इस तबके को भरोसा नहीं दिला पाए कि सरकारें आपका पूरा ख्याल रखेंगी, जिस वजह से इनमें असुरक्षा का भाव जागा होगा और ये हर हाल में अपने घर जाने के लिए जान भी दांव पर लगाकर निकल पड़े ।

बदलाव- अब आगे क्या, इस नई चुनौती से कैसे निपटा जा सकता है ?

प्रशांत कुमार- देखिए मेरा सुझाव तो यही है कि सबसे पहले ये जहां हैं वहीं पर इनके रहने खाने का इंतजाम किया जाए और चरण बद्ध तरीके से ट्रेन, बस के जरिए सुरक्षित उनके जिले तक पहुंचाया जाए। ट्रेनों और बसों में ज्यादा संख्या की बजाय सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए कम संख्या रखी जाए । लेकिन उससे पहले उनको बाकायदा भरोसे में लेना होगा कि सरकार उनको सुरक्षित उनके गांव तक पहुंचाएगी । अगर इन लोगों को जबरन रोकने की कोशिश भी हम करेंगे तो आज नहीं तो कल फिर ऐसी स्थिति हमारे सामने खड़ी कर सकते हैं ।

बदलाव- पिछले 48 घंटे में जो तस्वीरें आई हैं उससे तो यही लगता है कि इनमें भी संक्रमण की पूरी संभावना है । उससे कैसे निपटा जाएगा ?

प्रशांत कुमार- देखिए जिसका डर था वही हुआ, लेकिन अब इससे ज्यादा हालात न बिगड़े उसके बारे में तत्काल कदम उठाने की जरूरत है । अभी तक हम लॉकडाउन के जरिए सबकुछ सेंट्रलाइज करने की कोशिश कर रहे थे लेकिन अब उससे काम नहीं चलेगा हमें हालात को देखते हुए पावर को डिसेंट्रलाइज कर तीन स्तर पर काम करने की जरूरत है ।

बदलाव- आपके कहने का आशय क्या है । वो तीन स्तर क्या है ?

प्रशांत कुमार- सबसे पहले तो हमें तत्काल मोबाइल एंबुलेंस की संख्या बढ़ानी होगी, दूसरा प्राइवेट अस्पतालों को चिह्नित कर उन्हें तत्काल सरकारों को अपने कब्जे में लेना होगा और आइसोलेशन का इंतजाम करना होगा । तीसरा और सबसे जरूरी ये है कि हमें अब शहर के साथ साथ गांव के स्तर पर काम करना होगा ।

बदलाव- क्या हमारे पास पर्याप्त संसाधन हैं जिसके जरिए हम गांव तक कोरोना संकट की सुविधाएं पहुंचा पाएं  ?

प्रशांत कुमार- देखिए अगर हम चाहते हैं कि स्थिति और भयावह ना हो तो ये सभी उपाय करने होंगे । हमारे पास वेंटिलेटर की कमी जरूर है लेकिन प्रशासन को डिसेंट्रलाइज कर हम इस संकट से उबरने की कोशिश जरूर कर सकते हैं । इसके लिए ग्राम प्रधान, पंचायत सेक्रेटरी, स्थानीय पुलिस और प्राथमिक स्वास्थ्य टीम को साथ मिलकर काम करना होगा ।

बदलाव- पंचायत और प्रशासन की टीम कैसे काम करे विस्तार से बताइए ?

प्रशांत कुमार- सबसे पहले जो लोग गांव जा रहे हैं उनकी प्राथमिक जांच हो और सभी लोगों को अलग कुछ दिनों तक पंचायत भवन या फिर स्कूलों में गांव और परिवार वालों से दूर रखा जाए । अगर इनमें से किसी को भी कोरोना के लक्षण दिखे तो तुरंत उसकी जांच कराई जाए और कोरोना पॉजिटिव होने पर जिला चिकित्सालय भेजा जाए । इससे अचानक जिला चिकित्सालय पर ज्यादा लोड भी नहीं पड़ेगा और हम गांव को भी सुरक्षित रख पाएंगे ।

बदलाव- क्या आपको लगता है कि गांवों में ये सब करना आसान होगा ?

प्रशांत कुमार- मैं गांवों में रहा हूं इसलिए वहां की स्थिति से अवगत हूं यही वजह है कि मैंने पहले ही कहा कि पुलिस प्रशासन की मदद भी जरूरी है । हालात ना बिगड़े और कोई कुछ गड़बड़ ना करे इसके लिए बीट पुलिस की जिम्मेदारी तय की जाए और गांव के जिम्मेदार लोगों को भी आगे किया जाए ।

बदलाव- क्या दिल्ली सरकार इस तरह के कुछ कदम उठा रही है ?

प्रशांत कुमार- दिल्ली सरकार ने डॉक्टरों की एक टीम बनाकर पहले से ही कई प्राइवेट अस्पतालों को चिह्नित कर लिया है और कुछ में भी काम भी शुरू हो चुकी है । लोगों को खाने और रहने की भी लगातार व्यवस्था की जा रही है, लेकिन सबसे ज्यादा जरूरी ये है कि जो व्यवस्था दी जा रही है वो उचित रूप से लोगों के पास पहुंचे । इसकी सबसे ज्यादा जिम्मेदारी स्थानीय विधायक, सांसद और पार्षद की है । संकट की इस घड़ी में कोई भी जन प्रतिनिधि सिर्फ वोटर देखकर लोगों को फायदा ना पहुंचाए क्योंकि ये राजनीति का नहीं बल्कि मानवीयता का सवाल है ।  सबसे अहम और जरूरी ये है कि जो राहत योजनाएं चलाई जा रही हैं उसमें करप्शन की गुंजाइश भी हो सकती है, लिहाजा उसकी निगरानी सख्ती के साथ करने की जरूत है । उदाहरण के लिए अगर किसी रैन बसेरे में गरीबों को खाना खिलाया जा रहा है तो उसकी निगरानी होनी चाहिए कि जितने लोग खाना खाएं उतना ही रिकॉर्ड में हो कहीं उसमें कोई भी गड़बड़ी ना कर पाए ।

बदलाव- कोरोना को लेकर अभी सबसे बड़ी चुनौती क्या है ?

प्रशांत कुमार- फिलहाल तो सबसे बड़ी चुनौती मेडिकल फैसिलिटी की है, जिसको तत्काल बढ़ाने की जरूरत है, हमें मेडिकल फैसिलिटी की चेन बनानी होगी और सभी निजी अस्पतालों में भी इसकी तैयारी करनी होगी । अस्पतालों और डॉक्टरों को हर किसी को कोरोना मरीज के हिसाब से ट्रीट करना होगा ऐसा ना हो कि कोई मंत्री या नेता अगर अस्पताल में भर्ती हो  गया तो पूरा अमला उसपर फोकस करने लगे । सबको समान रूप से व्यवहार करना होगा ।

बदलाव- उम्मीद करते हैं कि सरकारें आपके दिए सुझावों पर अमल करेंगी और कोरोना के प्रकोप से जल्द से जल्द हम सभी उबर पाएं । बदलव से बात करने के लिए धन्यवाद ।

प्रशांत कुमार- शुक्रिया ।