‘चौथा इतवार’ में जले उम्मीदों के शब्द-दीप

‘चौथा इतवार’ में जले उम्मीदों के शब्द-दीप

आप दिवाली में ऐसा क्या विशेष करते हैं जो समाज के लिए संदेश बने, समाज में सौहार्द की भावना को बढ़ाए, पर्यावरण को संतुलित रखे, मनुष्य को स्वस्थ रखे? यह सवाल था चौथा इतवार- साहित्य समागम की मंच संचालिका डॉ नीलू अग्रवाल का।

दीपावली की पूर्व संध्या पर ‘चौथा इतवार- साहित्य समागम’ कार्यक्रम की चौथी कड़ी का आयोजन ऑनलाइन किया गया। त्योहार की व्यस्तता के बावजूद साहित्य प्रेमियों ने कार्यक्रम में बढ़ चढ़कर हिस्सा लिया। सभी ने अपनी कविता और कथा के माध्यम से समाज के लिए संदेश प्रेषित किया और यह भी बताया कि इस बार वे अपनी दीपावली मैं ऐसा क्या कर रहे हैं जिससे समाज का भला हो।

अलग-अलग प्रदेशों से जुड़े सभी साहित्यकारों ने एक से बढ़कर एक प्रस्तुतियां दी। शुरुआत अपूर्व कुमार ने की। ‘तमसो मा ज्योतिर्गमय/ कुबेर धन धान्य भरे/ अपूर्व काम ना करें’।’ गीतकार मधुरेश ने कहा कि ‘दीपावली चलो मिलकर मनाएं/ दीपों से घर घर को सजाएं।’संगीता मिश्रा ने ‘दीपों की लडियाँ /हाथों में फूलझड़ियाँ/ अमावस्या की रात में /आओ रौशन करें गालियाँ।’ अलका वर्मा ने आह्वान किया कि ‘समाज सुधार की पहल/करनी होगी घर से/ बेटे को भी बताना होगा /यह ग़लत है यह ग़लत है।’ सिद्धेश्वर जी ने संदेश दिया कि ‘संचित गिले -शिकवे को/ दूर हमें भगाना है/वर्तमान के दहलीज पर एक दीया जलाना है।’ सुधा पांडे ने ‘मिष्टान्नों में एक मिठाई /थाली सजी दी दिखाई।’ डॉ अनुज प्रभात ने बचपन को याद करते हुए सुनाया कि ‘खेत हो गये अब सूने भुट्टे के/सूनी हो गई गलबाहियाँ/खेलूँ किसके साथ कहाँ अब/न बाग कहीं न वो गलियां।’पूनम सिन्हा श्रेयषी ने वैसे लोगों का दुख उजागर किया जिनके लिए त्योहार का कोई मतलब नहीं है ‘नैन पनीले सपन कटीलें/दुख का बोझा भारी रे/घाव – घाव है पाँव हमारा/काटे सुख को आरी रे!’ वरिष्ठ कवयित्री इंदू उपाध्याय ने सुनाया कि ‘माना की मेरे भीतर यादों का शहर रहता है /माना कि मेरे भीतर दर्द का समंदर बसता है/ये मेरा है!’
उत्तराखंड से जुडी समाज सेविका एवं कवयित्री माधुरी भट्ट ने दीपावली के मौके पर पर्यावरण की चिंता कुछ इस प्रकार जाहिर की ‘आओ हम सब मिलकर वृक्ष लगाएं पर्यावरण को प्रदूषण मुक्त बनाएं।’ मनुष्य के स्वभाव की पड़ताल करते हुए दिल्ली से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार पशुपति शर्मा ने सुनाया कि ‘वो बता रहे थे कि कौन किससे है बेहतर/वो बता रहे थे कि किसकी क़ीमत है ज्यादा/वो बता रहे थे कि कौन है सबसे अहम/यही दुनिया है/अपने-अपने अहम हैं, अपने-अपने वहम।’ बनमनखी से जुड़ी डॉ प्रभा नंदा ने ऋषि की विरह वेदना को इस तरह बना किया दीपावली में भी जो तुम ना आए /मैंने तुम्हारी यादों के दीए जलाए।’ साथ ही उन्होंने एक सुंदर लघु कथा नियोजित शिक्षक का पाठ भी किया राज प्रिया रानी अपनी कविता के माध्यम से ऐसा दीया जलाने जलाना चाहती हैं जो दूर तलक अविरल जले।कार्यक्रम की संचालिका डॉ नीलू अग्रवाल ने अपनी कविता के माध्यम से समाज में रोशनी का दीया जलाने का संदेश दिया।

कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ,वरिष्ठ पत्रकार पशुपति शर्मा ने सभी साहित्यकारों को बधाई देते हुए कहा कि दो घंटे का समय कैसे निकला पता ही नहीं चला। उन्होंने जोड़ा कि कार्यक्रम स्वागत योग्य है । इस तरह के कार्यक्रम आयोजित होते रहने चाहिए, जिससे समाज को दशा एवं दिशा मिलती रहे। कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए अंत में फारबिसगंज से जुड़े वरिष्ठ कथाकार डॉ अनुज प्रभात ने सभी साहित्यकारों की भूरी भूरी प्रशंसा करते हुए निवेदित किया जाए ताकि पटना से बाहर के लोग भी लाभान्वित हो सकें। कार्यक्रम के सफल संचालन के लिए डॉक्टर नीलू अग्रवाल को बधाई दी।