चमकी बुखार के खिलाफ जंग में शामिल साथियों के सुझाव की जरूरत

चमकी बुखार के खिलाफ जंग में शामिल साथियों के सुझाव की जरूरत

पुष्यमित्र

हमारा अभियान लगभग खत्म हो गया है, हालांकि एक टीम लगभग डटी है। आज हिसाब करने सत्यम और सोमू आये थे। हिसाब हुआ तो पता चला कि हमें मेरे, सत्यम के, आनन्द दत्ता के, सोमू के और हृषिकेश के खाते में कुल 5,74,095 रुपये का सहयोग प्राप्त हुआ। और हमारी टीम ने जिसमें तकरीबन 50 साथी थे और जो मुजफ्फरपुर, वैशाली और समस्तीपुर जिले के 11 प्रखंडों के 70 गांवों तक पहुंचे ने इस अभियान में कुल 2,18,550 रुपये खर्च किये। इसमें बड़ा खर्च SKMCH में प्यूरिफायर, पंखा, डस्ट बिन आदि खरीदने में, भोजन की व्यवस्था कराने में हुआ। इसके अलावा थर्मामीटर, ओआरएस आदि खरीदे भी गये और लोगों ने भेजा भी। साथियों के घूमने फिरने और खाने पीने में भी पैसे खर्च हुए। पम्फ्लेट छपवाने और स्पीकर के प्रचार करने में भी पैसे लगे। मगर वह हिसाब अलग है।

MSU समेत 10 से अधिक टीमें अपने संसाधनों से यह काम करती रहीं, उन्हें हमने पैसों का सहयोग नहीं किया क्योंकि ऐसी जरूरत नहीं दिखी। हां, हमलोग एक साथ एकजुट होकर बेहतर समन्वय से काम करते रहे।अब हमारी टीम पिछ्ले तीन दिनों से परेशान है कि 3,55,545 रुपये बच गये हैं इनका क्या किया जाये। पैसे आज भी आ रहे हैं। बहरहाल काफी बातचीत के बाद एक राय बनी है।

शोध और डॉक्टरों के अनुभव बताते हैं कि AES से पीड़ित तकरीबन एक तिहाई बच्चों पर न्यूरोलोजीकल डिसऑर्डर की चपेट में आने का खतरा रहता है। जिसकी रिपोर्ट मैने पिछ्ले पोस्ट में शेयर की है। तो क्यों न इन बच्चों के लिये कुछ किया जाये।मगर हम फुल टाईम कार्यकर्ता नहीं हो सकते और न ही हमारे पास इतने संसाधन हैं कि हम इनके पुनर्वास का काम कर सकें। यह सरकार का काम है।इसलिये हम चाहते हैं कि बचे हुए पैसों से उन सभी 525 घरों में जायें जिनके बच्चे इस साल बिमारी की चपेट में आये हैं। इनमें जिन 175 बच्चों की मौत हो चुकी है वहां मालूम करें कि उन्हें मुआवजा मिला या नहीं और शेष 350 घरों में जाकर बच्चों की स्थिति का जायजा लें। उन्हें कोई परेशानी तो नहीं हो रही।

इनके घरों तक जाकर हम उनकी सामाजिक आर्थिक स्थिति का भी जायजा लें और फिर एक रिपोर्ट बनाकर सरकार को और जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट को सौपे। ताकि इस बीमारी को लेकर और बच गये बच्चों के लिये कोई योजना बन सके।हमारे साथियों को लगता है कि इस तरह इन पैसों का सदुपयोग हो सकता है। मगर यह पैसा हमारा नहीं है, आपका है। इसलिये आपकी राय ज्यादा जरूरी होगी। आपकी सहमति होगी तभी हम इस काम को करेंगे। आपकी टिप्पणियों का स्वागत है।

पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। प्रभात खबर की संपादकीय टीम से इस्तीफा देकर इन दिनों बिहार में स्वतंत्र पत्रकारिता  करने में मशगुल