विकास में पिछड़ते गांव और बढ़ता आर्थिक असंतुलन

शिरीष खरे विशेष तौर पर सत्तर के दशक में गांवों के लिए कई परियोजनाएं और कार्यक्रम चलाए गए। इसके पीछे

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हाइब्रिड बीज का मायाजाल और किसानों की दुर्दशा

ब्रह्मानंद ठाकुर मनकचोटन भाई के दलान पर सांझ होते ही हमेशा की तरह  आज भी टोला के लोगों का जुटान होने

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पशुपालन में छिपा है किसानों की खुशहाली का राज

पुष्यमित्र चार-पांच साल पहले झारखंड के एक गांव गया था । वह गांव सब्जी उत्पादन में अव्वल था । वहां

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ग्रामीण भारत की बदहाली और आर्थिक विकास का लालीपॉप

शिरीष खरे भारत में ग्रामीण और शहरी अंचल के लिए निर्धनता का निर्धारण अलग-अलग तरह से होता है। एक आंकड़े

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गांव की आर्थिक-सामाजिक बुनावट में कितना बदलाव

शिरीष खरे गांव क्या है? अवधारणाओं में जब भी इसे ढूंढ़ने-समझने की कोशिश की तो इससे जुड़ी व्याख्याओं में मुख्य

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