बिहार में बाढ़ की आपदा और कुछ मौजूं सवाल

बिहार में बाढ़ की आपदा और कुछ मौजूं सवाल

पुष्यमित्र

लगभग पूरा उत्तर बिहार इन दिनों भीषण बाढ़ की चपेट में है। नेपाल से सटे उत्तर प्रदेश के इलाके भी ऐसी ही स्थितियों का सामना कर रहे हैं। ज्यादा असर अररिया-किशनंगज के सीमांचल वाले इलाके और पश्चिमी चंपारण के नरकटियागंज और आसपास के इलाकों में है। यानी गंडक और महानंदा उफनाई हुई है। कोसी भी कम पावर में नहीं है, वहां भी ढाई लाख क्यूसेक से अधिक बहाव लगातार है। कमला में भी खूब पानी है। आप जहां जायेंगे वहां तेजी से बहता पानी खेतों, झोपड़ियों, सड़कों को रौंदता नजर आयेगा। हालांकि दबाव घट रहा है। जमीन में जनता त्राहि-त्राहि कर रही है, नेता मंत्री हवाई दौरा कर रहे हैं।

इस बीच एक बात परेशान किये हुए है। बाढ़ एक ऐसी आपदा है, जिसका पूर्वानुमान सबसे आसानी से लगाया जा सकता है। उत्तर बिहार की बाढ़ के बारे में तो एक हफ्ते पहले तक भी पता चल सकता है, मगर हमें यह जानकारी 12 अगस्त को मिली जब सीमांचल और चंपारण के कई इलाके तेजी से डूबने लगे। सरकार ने ठीक-ठाक रेस्पांड किया, मगर क्या हमारे प्रशासन को पहले से इस बात का अंदाजा था कि बाढ़ आने वाली है?

शायद नहीं, होगा भी तो महटिया दिया गया होगा। अब मैं आपको बताता हूं, 4 अगस्त को स्काईमेट वेदर डॉटकॉम ने चेतावनी दे दी थी कि नेपाल के इलाके में भारी बारिश हो रही है, यूपी और बिहार के इलाकों में बाढ़ का खतरा है। 9 अगस्त के आस-पास भूटान की सरकार ने भी अपने इलाके में होने वाली भारी बारिश की सूचना भारत सरकार को दी थी। इतना ही नहीं 10 और 11 अगस्त को दार्जिलिंग-सिलिगुड़ी और आसपास के इलाके में भीषण बाढ़ का कहर बरपा। सौ से अधिक चाय बगान तबाह हो चुके हैं। जाहिर है वहां का पानी बह कर महानंदा नदी के रास्ते सीमांचल के इलाके को तबाह करने वाला था।

नेपाल की भीषण बारिश ने गंडक, कोसी, बागमती, कमला और उनकी सहायक नदियों को लबालब कर दिया। हमें यह समझना पड़ेगा कि उत्तर बिहार की बाढ़ यहां होने वाली बारिश की वजह से नहीं आती। नेपाल, सिक्कम-भूटान यानी हिमालयी क्षेत्रों में होने वाली बारिश दो-चार दिन बाद उत्तर बिहार के इलाके को परेशान करती है। यानी हमारे पास दो से चार दिन का वक्त हर हाल में होता है। दूसरी बात हिमालयी इलाकों में हुई तेज बारिश अक्सर नदियों के रास्ते हमारे इलाके में पहुंची है। बारिश के महीने में ढेर सारी मिट्टी और गाद लेकर फुल स्पीड में क्योंकि यह पानी पहाड़ों से उतर रहा होता है। आप कुछ इस तरह समझिये कि जब सीढ़ी के ऊपर पानी गिराया जाता है तो पानी जितनी तेजी से नीचे आता है, वही बात होती है। तराई वाले लोगों को यह झेलना ही है।

मगर हमारी सरकारों ने इस समस्या के बचने के लिए क्या तरीके निकाले हैं? कुछ तटबंध बना दिये गये हैं, बाढ़ आती है तो राहत बांट दी जाती है। क्या इतना काफी है? क्या कभी यह सोचने की जरूरत होती है कि ऐसी परिस्थितियों से मुकाबला करने के लिए लंबी अवधि की रणनीति बने। तटबंध और बांध तभी तक कारगार होंगे जब तक पानी में इन्हें तोड़ने की ताकत नहीं होगी। जिस दिन पानी इन्हें तोड़ डालेगा, वह सुनामी का दिन होगा। जैसा 2008 में हुआ था या उससे भी भयावह। वह बहुत मजबूत उपाय नहीं है। हमें नदियों को इतना सक्षम बनाना चाहिये कि वह तेजी से आ रही इस जल राशि को संभाल सके और इसके लिए हमें कुछ करने की जरूरत नहीं है। कुदरत ने तमाम इंतजाम खुद कर रखे हैं, जिसे हमने अपना दिमाग लगाकर उसे बिगाड़ दिया है ।

तटबंध बना दिये इससे दो नुकसान हुआ। पहला नदियां गाद से भर गयीं, क्योंकि तटबंध की ऊंची दीवारों की वजह से गाद को फैलने, हमारे खेतों तक पहुंचने में बाधा आ गयी। गाद सीमित क्षेत्र में भरते रहे। अब जब नदियों का पेट पहले से ही गाद से फुल है, तो वह बाढ़ का पानी कैसे संभाले, कितना संभाले। अगर तटबंध नहीं होते, तो नदियां गाद मुक्त होतीं। उसमें गहराई होती और फिर वह पानी की बड़ी मात्रा को संभाल लेती।

दूसरा नुकसान। नदियों का संपर्क अपनी सहायक धाराओं से कट गया। मतलब यह कि तटबंध बन गये तो इन नदियों से जुड़ी छोटी-छोटी धाराएं इनसे कट गयीं। अब इन धाराओं का महत्व समझिये। जैसे ही नदियां ओवर फ्लो होती थी, अतिरिक्त पानी इन धाराओं में भरने लगता था। मेरे घर के पास से एक हिरण धार बहती थी। आज वह समतल हो गयी और वहां खेती हो रही है। बचपन में हर बारिश में मैंने उस धार को भरते हुए देखा है। ऐसी हजारों धाराएं थीं, चंपारण से लेकर किशनगंज तक फैले उत्तर बिहार के इलाके में। 90 फीसदी धाराओं के सिर्फ नाम बच गये हैं।

आप यही समझिये कि हम उत्तर बिहार की आठ-नौ नदियों का नाम जानते हैं, मगर इस इलाके में आज भी सेटेलाइट मैप से 208 धाराएं दिखती हैं। मगर इनमें से भी अधिकांश मृतप्राय हैं। भू-माफियाओं की इन पर नज़र है। कुछ साल पहले पूर्णिया के पास से बहने वाली कोसी की सहायक नदी सौरा की जमीन पर प्लाटिंग करके लोगों को बसा दिया गया था। मगर शुक्र है पिछले साल की बाढ़ का की मरी हुई सौरा नदी जी उठी और जिन लोगों ने भू-माफियाओं से जमीन खरीदी थी, उन्हें उजड़ना पड़ा। नदी का इलाका छोड़ना पड़ा। मगर हर धारा के साथ ऐसा नहीं हुआ है। अब जब धाराएं ही सूख जा रही हैं, उन्हें खेत और मकान के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। उनका संपर्क मुख्य नदी से कट गया है तो वे अतिरिक्त जल कहां से ले पायेंगी।

इसी तरह कभी पूरे उत्तर बिहार में बड़े-बड़े चौर थे। उनका भी यही काम था। बाढ़ के दिनों में नदियों का अतिरिक्त जल संभालना। बड़हिया का टाल और बेगुसराय का कांवर झील, इसी तरह के चौर थे। कोसी-गंडक बागमती नदियों के भी अपने-अपने चौर थे। मगर अब चौर कहां हैं? जमीन की लालसा में हमने इन चौरों को खेतों में बदल दिया, तो अब तो भुगतना पड़ेगा ही।

माफ कीजियेगा, जब लोग भीषण बाढ़ झेल रहे हैं, ठहार तलाश रहे हैं, राहत की मांग कर रहे हैं तो मैं ऐसी उपदेशात्मक बातें लिख रहा हूं। मेरी भी लाचारी है, ऐसी बातें भी लोग इसी मौसम में पढ़ते हैं। दूसरे मौसम में नहीं। दूसरी बात यह आश्वस्ति भी है कि इस बार राहत का काम ठीक-ठाक चल रहा है और जहां दिक्कत है, वहां लोग जल्द से जल्द एक्टिव हो जा रहे हैं। 2008 के बाद न सिर्फ पत्रकार बल्कि आम लोग भी बाढ़ के मसले को लेकर काफी सजग हैं।

जब तक सरकार और समाज इन तमाम बातों के बारे में नये सिरे से नहीं सोचेगा। बाढ़ आपदा बनी रहेगी और एक बार प्राकृतिक संतुलन ठीक हो गया तो यही बाढ़ आपको ठीक लगने लगेगी। नदियां जीवन दायिनी होती हैं, वे खेतों को सिंचाई के साथ-साथ बाढ़ के मौसम में उपजाऊ मिट्टी का उपहार देती हैं। बाढ़ आती है तो पूरे इलाके का भू-जल स्तर बरकरार रहता है। अगले साल गरमियों में हैंडपंप नहीं सूखते। मछुआरों को मछलियां मिलती हैं और आप किसी आजाद नदी के किनारे बैठते हैं तो सुकून मिलता है। मगर जब आप नदियों को तटबंधों से घेर देते हैं तो आस-पास के लोगों को नदियों से सहज मिलने वाले वरदान से वंचित कर देते हैं। उसकी प्राकृतिक व्यवस्था को ध्वस्त कर देते हैं। जाहिर है, फिर कभी बाढ़ की तबाही आती है, तो कभी सुखाड़ की।


PUSHYA PROFILE-1पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।