बेटियों की चीख और तड़प

बेटियों की चीख और तड़प

वो चीख रही थी
और मैं सोच रहा था
ये चीख किस मजहब की है
वो दर्द से तड़प रही थी
और मैं सोच रहा था
ये तड़प किस धर्म की है

बेटी ने पूछा-
क्या सोच रहे हो पापा?
मैंने उसे प्यार से देखा
समेट लिया अपने आगोश में

बेटियों की चीख का कोई मजहब नहीं होता
बेटियों की तड़प का कोई धर्म नहीं होता।

पशुपति शर्मा