तीन बंदर बापू के

तीन बंदर बापू के

रामानन्द सिंह

 बापू तेरे बंदर तीन
उछल -कूद कर रहे देख लो
हैं कितने अनुशासनहीन
बापू तेरे बंदर तीन

तू ने इन्हें सिखाया
प्यारों, बुरा कभी मत बोलो
बुरा  देखे-सुनो खातिर तुम
आंख-कान मत खोलो
पर , ये गाली बिना न बोले
ऐसे हड़ुपे जोरू और जमीन
बापू तेरे बंदर तीन

धमा-चौकड़ी इनकी देख लो
ये चुनाव लड़ते हैं
जीत मिनिस्टर बन दौलत से
अपना घर भरते हैं
लाखन लाख गरीबों की ये
लेते धोती-साड़ी छीन
बापू तेरे बंदर तीन

इन पर नशा सत्ता का
चरखा तोड़ रहे हैं
घर का धंधा चौपट कर
बाहर से जोड़ रहे हैं
भिखमंगों की सूरत में
यह देश खड़ा दुनिया में दीन
बापू तेरे बंदर तीन।


रामानन्द सिंह/ मुजफ्फरपुर के गोपालपुर, सकरा  के निवासी। हिन्दी , भोजपुरी और बज्जिका के समर्थ गीतकार। धुंध भरल बंसवारी पुस्तक प्रकाशनाधीन।