शुक्र है इंसानियत आज भी जिंदा है

शुक्र है इंसानियत आज भी जिंदा है

अर्वित राज

दिल्ली-NCR की भागदौड़ भरी जिंदगी कितनी तनाव पूर्ण होती है ये बात किसी से छिपी नहीं है। ना किसी को अपने लिये वक्त है और ना ही दूसरों के लिए। अब इसे काम का दबाव कहिए या फिर ऑफिस का प्रेशर हम जरूरत मंदों की मदद के लिए चाहकर भी कुछ नहीं करते । फिर भी कुछ लोग हैं जो इस भागमभाग में भी इंसानियत को जिंदा रखे हुए हैं । जरा सोचिए अगर आप बाइक से ऑफिस जा रहे हों और एक्सिडेंट हो जाए लेकिन कोई आपकी मदद करने आगे ना आए तो आपके साथ क्या कुछ हो सकता है । सवाल जिंदगी और मौत का होता है। हम घायल की मदद करने की बजाय देर होने का बहाना बनाकर चलते बनते हैं, लेकिन अर्वित राज उन लोगों में नहीं है। मंगलवार को जब उनके सामने एक शख्स सड़क पर तड़प रहा और लोग मुंह फेरकर आगे बढ़ते चले गए । कोई मदद को आगे नहीं आया, अर्वित ने जब ये सारा मंजर देखा और सुना तो उनके दिल और दिगाम ने पर क्या बीता खुद उनकी जुबानी सुनिए ।

सुना था इंसानियत मर गई है, आज देख भी लिया

वो दर्द भरी चीखती आवाज़ मेरे कानों में अभी तक गूंज रही है। बात मंगलवार सुबह 8 बजकर 50 मिनट (12/06/2018) की है। अक्षरधाम मंदिर से सीधे ITO मोड़ पर बहुत जाम लगा हुआ था, किसी तरह गाड़ी आगे बढ़ रही थी, कुछ समझ नहीं आ रहा था कि आखिर जाम की वजह क्या है ।गाड़ी थोड़ी आगे बढ़ी तो देखा की एक एक्सीडेंट हुआ है और एक लड़की जख्मी हालत में बेसुध पड़ी हुई है। पूछने पर पता चला कि एक गाड़ी वाला स्कूटी सवार को हिट कर के भाग गया और पिछले 30 मिनट वो ऐसी हालत में पड़ी है । लोग वहां से गुजर रही हर एक गाड़ी वाले से हेल्प मांग रहे थे ताकि लड़की को हॉस्पिटल ले जाया जा सके ।लेकिन कोई भी जाने को तैयार नहीं हो रहा था। वहां मौजूद ट्रैफिक पुलिस के एक कांस्टेबल उनका नाम शायद हर्ष सिंह था बहुत देर से कोशिश कर रहे थे की किसी तरह उस लड़की को जल्द से जल्द हॉस्पिटल पंहुचाया जाये पर मर चुकी इंसानियत उनकी हर कोशिश पर हावी थी।

उस वक़्त तक मेरे दिमाग में किसी तरह का कोई भाव नहीं था, मैं लोगों से बात ही कर रहा था तभी कुछ लोग मेरी गाड़ी के पास आये और बोले, ‘एक एक्सीडेंट हो गया है क्या आप अपनी गाड़ी में ले जा सकते है’। मैंने पूछा, ‘साथ कौन चलेगा’ तभी ट्रैफिक पुलिस कांस्टेबल हर्ष बोले, ‘मैं चलूँगा’, पब्लिक भी मेरा इशारा समझ चुकी थी और बिना देरी के उस लड़की को गाड़ी में एक लोकल महिला के साथ बैठाया।

कांस्टेबल हर्ष ने Decide किया की LNJP हॉस्पिटल ले जाना ठीक रहेगा, पीक hour था तो स्वाभाविक था जाम मिलना, लेकिन बिना किसी रेड लाइट की परवाह किये मैं गाड़ी चलाता रहा। कुछ पल के लिए सब कुछ एक फ़िल्मी सीन की तरह लग रहा था।

तभी कांस्टेबल ने लड़की के Father का NO लिया और उनको इस बारे में जानकारी दी। तभी हर एक मिनट के गुजरने के साथ ही वो लड़की पूछती रही की हॉस्पिटल कितनी दूर है, लेकिन वो लड़की जिस तरह से दर्द में चीख रही थी और बोल रही थी की उसका पैर और हाथ दोनों शायद टूट चुके है और वो दर्द भारी चीखे सुन मेरी आँखों में भी पानी उतर आया, और वही एक ऐसा पल था जिसने मुझे बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर दिया।

हर्ष से हुई कुछ पल की बातचीत में उन्होंने बताया की कोई भी उस लड़की को हॉस्पिटल ले जाने को तैयार नहीं हो रहा था किसी को ऑफिस जल्दी पहुँचना था तो किसी को झंझट का काम लग रहा था। बड़े ही दुखी मन से हर्ष ने कहा की ये वही लोग है जो कुछ न करने पर बबाल मचाते है और कुछ करो तो उसमे सहयोग करने से भी मना कर देते है ।

कल पूरा दिन और सोने तक यही मेरे दिमाग में चल रहा था, लेकिन आज रहा न गया और एक सीनियर के कहने पर अपनी बात आप लोगो से Share कर रहा हूँ। दिया हुआ PIC सिर्फ इमेजिनेशन के लिए है इस एक्सीडेंट से रिलेटेड नहीं है।


अर्वित राज/मूल रूप से यूपी के फिरोजाबाद से निवासी । एक दशक से ज्यादा वक्त से लाइव इंडिया, जी न्यूज जैसे बड़े संस्थानों में काम कर चुके हैं। संप्रति नेटवर्क 18 में कार्यरत ।