देश के लिए देख लीजिए ‘अनारकली ऑफ आरा’

देश के लिए देख लीजिए ‘अनारकली ऑफ आरा’

पशुपति शर्मा

आज जब सब कुछ देश के लिए ही हो रहा है तो फिर अनारकली एक कप चाय देश के लिए क्यों नहीं पी सकती? कुछ जलेबियां देश के लिए क्यों नहीं खा सकती? देश के लिए अपनी उदासी को खत्म कर अपने साथी के हाथ की बनाई खीर क्यों नहीं खा सकती? खा सकती है न! और फिर चेहरों पर मुस्कान लौट आती है। ये है बॉलीवुड के नए नवेले निर्देशक अविनाश का अंदाज-ए-बयां। और उनकी फिल्म पर बात कुछ आगे बढ़े, उससे पहले उन्हीं के अंदाज में एक गुजारिश हम भी करते चलते हैं- देख आइए न अनारकली ऑफ आरा, अपनी खातिर न सही, देश की खातिर।

अविनाश ने पत्रकारिता से फिल्म का रूख किया है। अपनी पहली ही फिल्म में वो इतने सधे हुए अंदाज में सामने आएंगे, सच कहूं तो मुझे इसको लेकर थोड़ा सुबहा जरूर था। अविनाश ने फिल्म के माध्यम को चुना तो पूरी संजीदगी के साथ, उनका पत्रकार मन उनके फिल्मकार पर हावी न हो सका। फिल्म बनी तो दर्शकों को ध्यान में रख कर। मनोरंजन का हर मसाला यहां मौजूद है, लेकिन उसका बैलेंस कहीं बिगड़ने नहीं दिया है अविनाश ने। फिल्म पहले सीन से लेकर आखिरी सीन तक निर्देशक की पकड़ में रहती है, जो एक अच्छी बात है।

इसमें कोई संदेह नहीं कि पूरी कहानी  जिस अनारकली के ईर्द-गिर्द बुनी गई है और उस किरदार को स्वरा भास्कर ने अपने अभिनय से यादगार बना दिया है। उनका उठना-बैठना, चलना-फिरना सारी अदाएं किरदार को सशक्त करती चली जाती हैं। वो जब मंच पर होती हैं तो कहर बरपाती हैं और जब वीसी साहब की उतारने पर आ जाती हैं, तो वहां भी कहर बन कर ही टूटती हैं। वो इस बात को बड़े पुरजोर तरीके से रखती हैं कि नाचने-गाने वाले को हर कोई जब चाहे तब ‘बजा’ नहीं सकता।

फिल्म के हर किरदार के हिस्से में अपनी छाप छोड़ने का मौका आया है। पंकज त्रिपाठी अनारकली के ईर्द-गिर्द मंडराने वाले ‘छैला’ के रूप में काफी सहज दिखे हैं। उनकी बेबसी फिल्म में ठीक वैसी ही है, जैसी हमारे आस-पास रहने वाले ऐसे किसी शख्स की हो सकती है। वो हर कुछ समझौतावादी तरीके से निपटा ले जाने की ही कोशिश करता है। पंकज त्रिपाठी अनारकली को समझा-बुझाकर वीसी साहब के सामने ले जाते हैं। वो नहीं चाहता कि समाज के दबंगों से कोई पंगा लिया जाए। उसकी पत्नी का भाग जाना, अनारकली की दुत्कार और इस सबके बीच उसका बिंदासपन एक नया किरदार रच जाता है।

फिल्म में वाइस चांसलर की भूमिका में संजय मिश्रा के कई रंग दिखते हैं। वो अनारकली के दीवाने हैं। दीवानगी की हद ये कि वीसी रहते हुए भी वो तमाम मंचों पर उसकी एक झलक पाने को बेकरार दिखते हैं। लेकिन उनके मन में बैठा एक ‘पुरुषवादी दबंग’ उन्हें अनारकली को किसी भी कीमत पर हासिल करने को उकसाता है। शराब के नशे में वो मंच पर चढ़कर अनारकली के साथ बदतमीजी कर बैठते हैं। वहीं अनारकली और उनका नटुआ शुरू में तो इस स्थिति को टालने की भरसक कोशिश करते हैं लेकिन जब वीसी साहब नंगई पर उतर आते हैं तो उनके गाल पर पड़ता है एक झन्नाटेदार तमाचा। इस तमाचे के साथ ही पूरी फिल्म में नया ट्विस्ट आ जाता है।

इसके साथ ही कई छोटे-छोटे किरदार और भी हैं, जिसे अविनाश ने बड़ी बारीकी से गढ़ा है। इनमें पुलिस इंस्पेक्टर साहब भी कमाल के हैं, जो वीसी साहब के ‘लात-जूते’ खाकर भी उन्हें बचाने में अपना सबकुछ दांव पर लगा देते हैं। अनारकली का हौसला तोड़ने के लिए उसे रंडी साबित करने की कोशिश करते हैं। पूरे वक्त तो वीसी साहब की छत्रछाया में ही अपने लिए आसरा तलाशते नज़र आते हैं।

अनारकली के मददगारों में दो किरदार अहम हैं- ढोलकिया अनवर और सीडी सेल्समैन हीरामन। अनारकली का पीछा करते-करते अनवर उसके घर तक आ पहुंचता है। दरवाजे पर सो जाता है। वहां उसकी कुटाई होती है। अनारकली उसे छुड़ाकर घर के अंदर ले आती है। अप्रत्याशित तौर पर उसे एक कप चाय ऑफर करती है। वो उठकर ढोलक बजाने लगता है और तब अनारकली की जुबान से एक संवाद निकलता है- ‘का रे हरामी, पूरा सुर में है’। शब्द इधर-उधर हो सकते हैं लेकिन भाव कुछ ऐसा ही था। इसके साथ ही अनवर को टीम अनारकली में एंट्री मिलती है। वो उसके साथ शहर तक जाता है। अनारकली की करीबी पाते ही अनवर उसका ‘संरक्षक’ बनने लगता है। ‘अब तुम गाओगी नहीं, मैं कमा कर लाऊंगा’। अनारकली और अनवर के बीच बस का एक सीन – अनवर धीरे से अनारकली के हाथ को छूने की कोशिश करता है। अनारकली के संभलते ही नज़रें चुराने लगता है। अनारकली मुस्कराकर मानो कह रही हो- जाय दे।

बिहार के बाशिंदों के लिए एक बार ‘भैया’ कह देने के बाद जो भावुक रिश्ता जुड़ता है वो स्वरा भास्कर और इश्तियाक के बीच नजर आता है। इश्तियाक अनारकली की सीडी बनवाता है। उसे मुसीबत के वक्त में अपने घर में आसरा देता है और जब वो अपने शहर वापस लौटने का फ़ैसला करती है तो उसके ‘इंतकाम’ का इंतजाम भी कर देता है। यमुना की गंदगी से लेकर मन की गंदगी तक सब कुछ लेखक अविनाश गढ़ता चला है, जिसे निर्देशक अविनाश ने बड़ी स्क्रीन पर उतनी ही संवेदनशीलता के साथ दर्ज कर दिया है। फिल्म हर सीन में कुछ कहती है। अविनाश हमसे-आपसे नहीं देश से संवाद करते हैं तो उन्हें इस पहली फिल्म के लिए बधाई तो बनती है भाई।


india tv 2पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।