‘जंजीर ‘ से ‘चीनी कम’ तक खयाल आता है…

‘जंजीर ‘ से ‘चीनी कम’ तक खयाल आता है…

प्रवीण कुमार

अमिताभ तमाम खूबियों के बीच दृढ़-संकल्प, सहज , हर मौसम में काम करने वाले इंसान के कारण अजीज लगते हैं. वह पुरुषार्थ का जीता-जागता उदाहरण है. उनकी असफलता, सफलता और लोकप्रियता के पीछे कई कारण हो सकते हैं, लेकिन इनमें से सबसे बड़ा कारण उनका दुर्लभ, विशिष्ट व्यक्तित्व ही है. यही कारण है कि उनकी संघर्ष और सफलता की कथा जितनी आश्चर्यजनक है, उतनी ही रोमांचक भी. जितनी अविश्वसनीय है, उतनी ही सम्मोहक भी. आज बच्चन साहब के जन्मदिन के अवसर पर सोच रहा हूं कि अमिताभ का मतलब क्या है. यदि वह ऐसे न होते तो क्या न होता?

सबसे पहले शायद किसी हिंदी प्रदेश के किसी रचनाकार का लड़का हीरो बनने का सपना नहीं पालता. यह भी संभव था कि कोई हद से ज्यादा लंबा लड़का हीरो बनने के बारे में सिर्फ सोचकर ही रह जाता। हर शहर में बच्चन की नकल करते हुए लोग नहीं होते. संभवतः वह दर्जी निठल्ला होता, जो जींस के दौर भी चौड़े बॉटम वाली पैंट सिलता है। बच्चन नहीं होते, तो ‘आनंद ‘ के राजेश खन्ना के बाद अगला सुपरस्टार सीधे शाहरुख खान होते. न ही मोबाइल के दौर में भी लोग ‘कौन बनेगा करोड़पति’ देखने टीवी पर टकटकी लगाए होते. इस तरह चालीस सालों तक कोई कमर्शियल एंटरटेनमेंट को सधे अंदाज में नहीं साध पाता। हॉलीवुड के रॉबर्ट डि नीरो, अल पचीनो जैसे अभिनेता का जवाब देने के लिए मुंबई के पास कोई हीरो नहीं होता. न ही हम कभी आईने के सामने खड़े होकर ‘शराबी ‘ की तरह बहक लेते. ना ही पान खा कर ‘गंगा किनारे ‘ गुनगुना पाते , न ही बुढ़ापे में ‘होली खेले रघुवीरा अवध में’ गा पाते. कुछ आरोप के बावजूद हर निर्देशक किसी एक अभिनेता को अपनी फिल्म में लेने को आतुर नहीं होता. भले ही विश्लेषक इस बात की चर्चा ही करते रहें कि अभिनय विधि है या प्रकृति।

बच्चन नहीं होते, तो पकी हुई फ्रैंच-कट दाढ़ी कभी यह अहसास नहीं करवाती कि ‘बूढ़ा होगा तेरा बाप.’ न ही ‘कभी कभी ‘ की तर्ज पर सफेद शॉल फैशन बन पाती. मुंबई आने पर कोई टैक्सी वाला यह न कहता कि पास में ही ‘जलसा ‘है, थोड़ी दूर पर ‘प्रतीक्षा ‘ भी, ले चलूं क्या. अगर ये लंबा लड़का न होता, तो बदलते वक्त में खुद को बदलने की क्षमता रखने वाले कलाकार से महरूम रहते. न ‘चीनी कम’ का चोटी वाला वेज वेटर देख पाते, न ही ‘ब्लैक ‘ का जिद्दी टीचर , न ही नई पीढ़ी से बात करते हुए ‘पिकु ‘ के पापा से परिचय हो पाता और भी बहुत कुछ … री-इनवेंट कैसे किया जाता है एक्टिंग में, फिल्म टेलीविजन के क्लासों में शायद इस बात की चर्चा नहीं होती, क्योंकि कोई उदाहरण देने के लिए नहीं होता। शायद हम यह नहीं समझ पाते कि चुनाव लड़ना क्यूं हर कलाकार के लिए नहीं है.’ तंगी ‘ से गुजरने के बाद भी फिर से खड़े होने का हुनर भी नहीं जान पाते। बहुत बाद में यह भी नहीं होता कि किसी सफल अभिनेता का ‘बेटा ‘शायद अभिनेता नहीं होता. होता भी तो वह यह साफ -सााफ नहीं कह पाता कि उसे प्रोड्यूसर बनने में, कबड्डी में, एक्टिंग करने से ज्यादा खुशी मिलती है।

यह भी नहीं होता कि किसी हीरो की रोचक जिंदगी, रोमांचक जवानी और उसके संघर्ष पर विचारोत्तेजक पुस्तकें दिल थाम कर पढ़ी जाने योग्य लिखी जा रही हो, फिर भी वह इनसे प्रभावित हुए बिना सिर्फ और सिर्फ नई चुनौती स्वीकार कर रहा होता। बातें और भी हैं, पर आज इतना ही..
अमिताभ की ‘जंजीर ‘ की कथा लिखने वाले सलीम खान कहते हैं अमिऔताभ की दैहिक भाषा, व्यक्तित्व और आत्मविश्वास से ही उनकी ‘एंग्री यंग मैन’ की तस्वीर लोगों के दिल में बैठी है.

और अंत में
आज जेपी जी का जन्म दिवस है. पापा की पाठशाला में जेपी के विचारों पर एक पुस्तक मिली थी. उसी का एक अंश। जयप्रकाश नारायण मानते थे कि जनता को संघ सेवक या प्रहरी की भूमिका निभानी चाहिए. ‘वो कहते थे यह हमारी गलतफहमी है कि कोई बाहरी संगठन जनता की समस्याओं का समाधान कर सकता है. जनता को खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी चाहिए और अपनी समस्याओं का समाधान खुद ही करना चाहिए.’

प्रवीण कुमार। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढाई। संप्रति रांची में कार्यरत। साधारण बने रहने की चिर आकांक्षा से ओत-प्रोत प्रवीण कुमार ने अपनी एक अलग ही जीवन शैली और संवाद शैली बनाई है। आपकी खामोशी में संवाद की अनंत संभावनाएं हैं।

4 thoughts on “‘जंजीर ‘ से ‘चीनी कम’ तक खयाल आता है…

  1. सहज व सुंदर अभिव्यक्ति. नये ढंग से अमिताभ से रू-ब-रू करवाता है यह आलेख.

  2. जैसा अमिताभ का व्यक्तित्व वैसा ही परिचय. सरल भाषा में बेहतर लेख.

  3. लेखन की नयी शैली अच्छी लगी, लेकिन अमितजी के पूरे व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला जाना चाहिए।

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