‘अफ़सरी’ या ‘मास्टरी’, अखिलेश के मन में कोई दुविधा न रही!

‘अफ़सरी’ या ‘मास्टरी’, अखिलेश के मन में कोई दुविधा न रही!

सामाजिक सरोकारों पर अर्थतंत्र कब हावी हो गया, ये कोई समझ ही नहीं पाया। समाज में आपकी पहचान अब आपके व्यवहार से नहीं आपके पैसे से होती है। यानी आपका रुतबा तभी है जब आपके पास पैसा है या फिर पद है। लेकिन आज के दौर में भी कभी-कभी कुछ लोग ऐसे नजर आ जाते हैं जो पद, पावर और पैसे की अंधी दौड़ से इतर एक उम्मीद जगाते हैं। हम बात कर रहे हैं एक ऐसी शख्सियत की, जिन्होंने बिहार पुलिस विभाग की अफसरी छोड़, शिक्षा की अलख जगाने का संकल्प दिखाया है। अखिलेश कुमार की पहचान हाल तक तक किशनगंज के एसडीपीओ (डीएसपी सिटी) की रही, लेकिन अब वो पटना साइंस कॉलेज में बतौर व्याख्याता नई भूमिका में आ चुके हैं। अखिलेश कुमार के मन में क्या कुछ चल रहा है, इसे समझने की सहज जिज्ञासा के तहत बदलाव टीम से अरुण ने उन्हें कुरेदा तो कुछ बातें सामने आईं।

बदलाव- एक पुलिस अधिकारी का बतौर शिक्षक पहला दिन कैसा रहा?

अखिलेश कुमार- अच्छा रहा, हालांकि पहले दिन तो सिर्फ ज्वाइनिंग की औपचारिकता पूरी की गई।

बदलाव – पहले आप पुलिस यानी मशल्स पावर में थे अब बौद्धिक ताकत के क्षेत्र में हैं, दोनों को आप किस रूप में देखते हैं और दोनों में क्या फर्क है?

अखिलेश कुमार- देखिए इसमें कोई शक नहीं है कि दुनिया बौद्धिक ताकत से चलती है। पुलिस में भी मुख्य रूप से बौद्धिक ताकत का ही इस्तेमाल होता है। बाहर से लोगों को भले ही लगता है कि पुलिस सिर्फ ताकत का इस्तेमाल करती है, लेकिन ऐसा नहीं है, पुलिस को किसी भी हालात से निपटने के लिए बौद्धिक ताकत ज्यादा लगानी पड़ती है। मान लीजिए आप किसी ऑर्गनाइज्ड क्राइम पर काम कर रहे हैं तो वहां लाठी भांजने से काम तो होगा नहीं, ऐसे हालात में आपकी सूझबूझ ही काम आएगी। इसलिए पुलिस सेवा हो या फिर कोई भी क्षेत्र हर जगह बौद्धिक ताकत ही सर्वोपरि है ।

पुलिस सेवा में आखिरी दिन में एक्शन में अखिलेश

बदलाव- पुलिस को लेकर हमारे समाज में एक डर भरा रहता है, ऐसा क्यों?

अखिलेश कुमार- ऐसा नहीं है कि पुलिस को लेकर लोगों की ये सोच आज विकसित हुई है। ये धारणा अंग्रेजों के वक्त से चली आ रही है। गुलामी के दौरान में अंग्रेज पुलिस हर काम के लिए लोगों पर जुल्म किया करती थी, लिहाजा आजादी के बाद पुलिस को लेकर लोगों की सोच नहीं बदली। आज भी लोगों के जेहन में एक डर है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी आगे बढ़ता गया है। हमें इसे बदलना होगा और इसके लिए समाज और पुलिस दोनों को काम करना होगा। इसको इस तरह समझिए कि ज्यादातर लोग छोटे-छोटे नियमों का पालन नहीं करते हैं। ऐसे में पुलिस डर पैदा करती है, जिससे लोगों के भीतर पुलिस को लेकर घृणा का माहौल पनपता है। इसके अलावा पुलिस के प्रति स्थानीय मुद्दे भी काफी हद तक इस डर के लिए जिम्मेदार हैं। इसलिए लोगों को नियमों का पालन करने की आदत डालनी होगी, कायदे-कानून के हिसाब से चलना अपनी आदत में शुमार करना होगा। साथ ही पुलिस और पब्लिक के बीच के रिश्ते को बेहतर बनाने की कोशिश करनी होगी।

बदलाव- पुलिस और समाज के बीच कैसे बेहतर तालमेल बैठाया जा सकता है?

अखिलेश कुमार- बिहार में इसके लिए काफी काम हो रहा है। किशनगंज के हमारे एसपी साहब कुमार आशीष इसको लेकर काफी चिंतित रहते हैं। कुमार आशीष समाज और पुलिस के बीच तालमेल बिठाने के लिए अलग-अलग तरह के अभियान चलाते रहते हैं। उनकी टीम का हिस्सा होकर हमें काफी कुछ सीखने को मिला और हमने अपने जिले में पुलिस और समाज के बीच डर के माहौल को काफी हद तक कम किया। इसमें थोड़ा वक्त जरूर लगेगा लेकिन इसके लिए पुलिस और समाज दोनों एक दूसरे के लिए जितना बेहतर माहौल बनाएंगे उतना ही डर का माहौल कम होता जाएगा ।

बदलाव-  पुलिस सेवा में रहते हुए आपने इसके लिए क्या कदम उठाए ?

अखिलेश कुमार- इसके  लिए किशनगंज पुलिस ने कई स्तर पर काम किया। पहला तो ये कि लोगों को अपनी समस्या लेकर पुलिस मुख्यालय न आना पड़े इसके लिए हम लोगों ने एसपी कुमार आशीष की अगुवाई में ‘पुलिस आपके द्वार’ नाम से मुहिम चलाई। हर शनिवार पुलिस के अधिकारी जोन वाइज अलग-अलग थानों पर खुद जाया करते थे और लोगों की समस्याएं निपटाते थे। इससे एक तो लोगों को अपनी शिकायत लेकर घर से 70-80 किलोमीटर दूर जिला मुख्यालय नहीं आना पड़ता था। दूसरी बात, थाने पर तैनात पुलिसवालों को भी लगने लगा कि बड़े अधिकारी उन तक पहुंच रहे हैं तो उनका भी आत्मविश्वास बढ़ा। इस तरह पुलिस-पब्लिक के बीच एक संवाद स्थापित होने लगा और लोगों के बीच पुलिस का डर भी कम हुआ ।

इसके अलावा हमलोगों ने फ्री हेल्थ कैंप लगाए। बुजुर्गों के लिए अलग से जन संवाद अभियान चलाया और लोगों को जागरुक करने की कोशिश की गई कि आपकी कोई भी समस्या हो पुलिस के पास आइए। उस पर तत्काल कार्रवाई भी की जाने लगी। इससे लोगों के भीतर ये भावना पनपने लगी कि पुलिस हमारे लिए बेहतर सोच रही है ।

हम लोगों ने एजुकेशनल प्रोग्राम भी चलाए, इसके लिए पुलिस अधिकारी खुद अलग-अलग सरकारी स्कूलों में जाते और बच्चों से संवाद करते। स्कूलों में क्विज शो कराए और दलित बस्तियों में जागरुकता अभियान चलाया कि बच्चों को पढ़ने के लिए स्कूल भेजिए। लोगों का भरोसा मजबूत हुआ कि पुलिस सिर्फ हमारे विवाद सुलझाने के लिए नहीं है, बल्कि हमारी बेहतरी के लिए भी सोचती है। खासकर बच्चों के मन में पुलिस के प्रति डर बैठने से पहले ही खत्म करना जरूरी है। जब पुलिस लोगों के हित की बात करेगी तो लोग पुलिस पर भरोसा जरूर करेंगे। पुलिस भी समाज का हिस्सा है, ये बात पुलिस और पब्लिक दोनों को समझनी होगी।

वैसे बिहार में हर थाने में थाना मैनेजर कि नियुक्ति की जा रही है, जिसका काम जनता की मुश्किलों को समझना है। साथ ही थानों में पब्लिक के लिए पानी, टॉयलेट जैसी सुविधाएं की जा रही है, ताकि थाने पर आने के बाद लोगों को सुविधाएं भी मिले।

बदलाव- पुलिस विभाग में काफी भ्रष्टाचार है, ये एक आम धारणा है। ऐसा क्यों और इससे कैसे निपटा जा सकता है?

अखिलेश कुमार- भ्रष्टाचार देश के लिए एक बीमारी बन चुका है, ऐसा नहीं है कि ये सिर्फ पुलिस सेवा में है, कोई एक विभाग बता दीजिए जहां भ्रष्टाचार नहीं है। ये एक बड़ी समस्या है और इस पर बड़े स्तर पर काम करने की जरूरत है। इसे दूर करना किसी एक व्यक्ति के बस की बात नहीं, इसके लिए हर किसी को आगे आना होगा। जैसे मान लीजिए कोई पुलिसवाला चालान का डर दिखाकर आपसे रिश्वत मांगता है तो आप रिश्वत देने की बजाय चालान कटवाने की आदत डालिए। इससे दो बातें होंगी एक तो वो पुलिवाला दोबारा आपसे रिश्वत मांगने की हिम्मत नहीं करेगा दूसरे आप जब जुर्माना भरेंगे तो दोबारा नियम नहीं तोड़ेंगे। वैसे भी आजकल सोशल मीडिया का जमाना है, अगर कोई मिसबिहैब करता है तो उसका वीडियो बनाइए और अपलोड कीजिए, देखिए फिर क्या होता है। ये तो मैं एक छोटा सा उदाहरण दे रहा हूं।

 बदलाव-  पुलिस सेवा में एक ईमानदार अफसर के लिए कितनी जगह है, और उनके लिए क्या चुनौतियां हैं?

अखिलेश कुमार- कोई चुनौती नहीं, अगर आपके भीतर ईमानदारी से काम करने की इच्छाशक्ति है तो आपको कोई रोक नहीं सकता। 6 साल के पुलिस सेवा के करियर में मैंने तो कभी इस तरह का कोई तबाव महसूस नहीं किया। जब आप ईमानदारी से काम करते हैं तो ना तो आपका अधिकारी कोई दबाव दे सकता है और ना ही राजनेता। मैंने तो पुलिस सेवा से जुड़े हर काम किए, लेकिन ना किसी से एक पैसा लिया और ना ही दिया और ना ही कोई राजनीतिक दबाव आया। हां नेताओं पर पब्लिक का दबाव जरूर रहता है ऐसे में वो कभी-कभी जनता से जुड़े काम के लिए दबाव बनाते हैं, लेकिन अगर गैरकानूनी काम नहीं है तो जनता भी आएगी तो भी हम वैसे ही काम करेंगे जैसा नेताजी के कहने पर। ये कहना कि ईमानदार अफसर के लिए बड़ी चुनौती होती होगी तो ऐसा नहीं है। इस मामले में मेरा अनुभव तो यही रहा है, दूसरों के बारे में मैं नहीं बता सकता।

बदलाव- शिक्षा विभाग को आपने क्यों चुना, क्या पुलिस की कार्यप्रणाली से खुश नहीं थे?

अखिलेश कुमार- नहीं देखिए, मैं साफ कर दूं कि पुलिस की कार्यप्रणाली से मुझे कोई नाराजगी नहीं रही और ना ही पुलिस की नौकरी से मुझे कोई परेशानी थी , बल्कि मैंने अपने 6 साल के कार्यकाल को पूरी तरह इंज्वाय किया। इसके लिए आप चाहे तो मेरे कामकाज को देख कर समझ सकते हैं कि मैंने कितनी तल्लीनता के साथ अपना काम किया है। मैं चुनौतियों से निपटने में कभी पीछे नहीं रहा, मैं जनता की सेवा के लिए हर पल  तैयार रहता था।

रही बात शिक्षा में आने की तो मुझे लगता है कि मेरे भीतर मोटिवेशनल पोटेंशियल है, जिसका इस्तेमाल मैं समाज की भावी पीढ़ी के लिए कर सकता हूं। युवाओं से जुड़कर उनका करियर संवारने के लिए काफी काम कर सकता हूं। पुलिस सेवा में रहकर ये मुमकिन नहीं हो पा रहा था, लेकिन शिक्षा विभाग में इसके लिए काफी गुंजाइश है। मैं काफी वक्त से इस दिशा में सोच रहा था। आपको बता दूं कि जब मैं 2014 में पुलिस सेवा में आया तो उसी दौरान मैंने लेक्चररशिप का फॉर्म भरा था, लेकिन उसका रिजल्ट आने में करीब 6 साल लग गए। जब नतीजा आया और मेरा चयन पटना साइंस कॉलेज के लिए हुआ। मुझे पुलिस की नौकरी छोड़ने का फैसला लेने में एक मिनट भी नहीं लगा ।

पटना साइंस कॉलेज में अखिलेश कुमार का पहला दिन

बदलाव-  समाज में बदलाव के लिए एक शिक्षक की क्या भूमिका हो सकती है?

अखिलेश कुमार- देखिए शिक्षक के बिना तो समाज में कोई बदलाव आएगा ही नहीं। शिक्षक ही तो है जो समाज के भीतर बदलाव ला सकता है। चाहे वो शिक्षा के स्तर पर हो या फिर संस्कार के स्तर पर। जैसे अभी हम देखें तो शिक्षा के स्तर में काफी गिरावट आई है, खासकर उच्च शिक्षा में सबसे ज्यादा गिरावट देखने को मिल रही है। जिस समाज में शिक्षा का स्तर गिरेगा उस समाज में निगेटिव चीजों को पनपने का मौका मिलेगा, जैसा कि आजकल दिख भी रहा है।

उदाहरण के रूप में मान लीजिए अगर आपने नैतिक मूल्यों के साथ बेहतर शिक्षा ली है (व्यावसायिक शिक्षा नहीं) तो आप जहां कहीं भी रहेंगे, वो आपको गलत काम करने से रोकेगी । लेकिन जब आपको सिर्फ पैसे कमाने की मशीन बनाया जा रहा हो तो ऐसे में आप एक बेहतर इंसान और बेहतर समाज की उम्मीद कैसे कर सकते हैं। जिस शिक्षा व्यवस्था में नैतिक मूल्यों का पतन हो उसमें पढ़ा-लिखा युवा ना तो एक बेहतर किसान बन सकता है और ना ही एक बेहतर कारोबारी और ना ही एक बेहतर अधिकारी। बेहतर शिक्षा से मेरा मतलब सिर्फ डिग्री से नहीं है बल्कि एक ऐसी शिक्षा, जिसमें नैतिक मूल्य भी हों और इंसानियत भी हो, जैसे पहले हुआ करती थी। पहले शिक्षकों ने एक बड़ी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है, उनके संपर्क में जो भी आया एक चिंतनशील इंसान बना, जिस समाज में चिंतन-मनन का दौर खत्म हो जाएगा उस समाज का पतन तय है ।

बदलाव- क्या हमारी शिक्षा प्रणाली को बदलने की जरूत है ?

अखिलेश कुमार- बिल्कुल, शिक्षा-व्यवस्था में बदलाव की सख्त जरूरत है और वो भी प्राइमरी सेक्शन से लेकर उच्च शिक्षा तक। बदलाव भी ऐसा हो जिसका कड़ाई से पालन हो। हर स्तर पर बदलाव होना चाहिए खासकर शिक्षा व्यवस्था की पुरानी चीजों की ओर लौटने की जरुरत है। मौजूदा दौर में शिक्षकों के सामने ही सबसे ज्यादा चुनौती भी है और जिम्मेदारी भी। शासन के स्तर पर देश में समान शिक्षा की व्यवस्था करनी होगी, आप चाहे तो राज्यों के स्तर पर रिजनल लैंग्वेज को तवज्जो दे सकते हैं लेकिन आपको पूरे देश में शिक्षा का एक मॉडल अपनाना होगा। ऐसी व्यवस्था लानी होगी जिसमें अमीर-गरीब हर बच्चा एक जैसी शिक्षा ग्रहण कर सके।

बदलाव- अपनी नई पारी के लिए क्या आपने कोई खास रूपरेखा तैयार की है?

अखिलेश कुमार- इसमें कोई शक नहीं कि मैं पूरी तैयारी के साथ आया हूं। वक्त है, विकल्प है, लोग हैं बस जरूरत है तो एक्शन की, जिसको बहुत जल्द अमल में लाने की कोशिश करूंगा। देखिए साल 2000 के बाद पहली बार बिहार में इतने बड़े पैमाने पर उच्च शिक्षा में व्याख्याता की भर्ती हुई है। यूं समझ लीजिए एक पीढ़ी आगे बढ़ चुकी है। जो नई पौध सामने आई है वो उस दौर को झेल चुकी है, जिसमें शिक्षा सबसे निचले स्तर पर थी। मैं करीब 200 नये प्रोफेसर्स के संपर्क में हूं, मेरी सबसे बात भी हुई है। यकीन मानिये इसमें मुझे कोई ऐसा नहीं मिला जिसकी पहली प्राथमिकता सिर्फ पैसे कमाना और गाड़ी-घर हो। हर कोई बिहार की शिक्षा को लेकर चिंतित है और कुछ करना भी चाह रहा है। आपको अगले 3-4 साल में बदलाव जरूर दिखने लगेगा। एक बात और मेरा दरवाजा हर गरीब और प्रतिभाशाली छात्रों के लिए 24 घंटे खुला है और मैं उन्हें अपना भविष्य संवारने के लिए हर स्तर पर मदद को तैयार हूं।

बदलाव- पहले एक शिक्षक, फिर पुलिस अधिकारी और अब फिर शिक्षक, जीवन में इतने उतार चढ़ाव की कोई खास वजह ?

अखिलेश कुमार- बस प्रयोगधर्मी आदमी हूं और प्रयोग करते रहना मेरा लक्ष्य है। प्रयोग करने में हमें कभी पीछे भी नहीं रहना चाहिए, मेरा मानना है कि हम क्या लेकर आए थे और क्या लेकर जाएंगे, ये हमें खुद तय करना होता है। इसलिए जितना प्रयोग करेंगे उतना ही समाज के लिए कुछ बेहतर कर सकते हैं।

बदलाव- पढ़ाई के दौरान भी सुना है आप इसी तरह के उतार चढ़ाव से गुजरते रहे हैं, क्या उस बारे में कुछ साझा करना चाहेंगे?

अखिलेश कुमार- हंसते हुए, हां वेटनरी में कुछ दिन पढ़ाई की थी, लेकिन अच्छा नहीं लगा तो छोड़ दिया, फिर जो कुछ हुआ आपके सामने है।

अखिलेश कुमार को पुलिस से विदाई देते एसपी कुमार आशीष (बीच में)

बदलाव- पढ़ाई पूरी करने के बाद भी आप एक शिक्षक की भूमिका निभा चुके हैं, उस बारे में कुछ बताएं ?

अखिलेश कुमार- देखिए उस दौरान जो भूमिका थी, वो एक प्राइवेट संस्थान में टीचिंग की थी। तब मैं कोचिंग में पढ़ाता था। वो एक व्यावसायिक शिक्षण का काम था, मुझे जॉब की तलाश थी। मैं कोचिंग में काम करता था वो मुझे पैसा देते थे। उस दौर में भी मेरी कोचिंग डायरेक्टर से इस बात को लेकर बहस हुआ करती थी कि हम लोग इस तरह की कोचिंग खोलकर समाज के लिए अच्छा नहीं कर रहे हैं, क्योंकि उस दौर में कोचिंग से हमें मोटी सैलरी मिलती थी, जो कि बच्चों से ही वसूली जाती थी। इस बात को ऐसे समझिए, मेरी जो काबिलियत है मैं कोचिंग के जरिए सिर्फ उन बच्चों तक पहुंचा पा रहा था जिनके पास पैसा है, गरीब बच्चे हमारे अनुभव से वंचित रह जाते थे। उस वक्त भी मेरे भीतर काफी जद्दोजहद चला करती थी। वो दौर अलग था, वहां आपके पास ज्यादा कुछ करने के लिए नहीं था। अब हमें सरकार सैलरी देगी और हम अपने ज्ञान और सामर्थ्य का जितना चाहे उतना इस्तेमाल कर सकते हैं। खास बात ये कि अब गरीब बच्चे भी उससे वंचित नहीं रहेंगे ।

बदलाव- ऐसे में एक शिक्षक के सामने आज बड़ी चुनौती है ?

अखिलेश कुमार- बिल्कुल, बच्चा शिक्षक की बात ज्यादा समझता भी है और उसपर अमल भी करता है, ऐसे में शिक्षकों की जिम्मेदारी ज्यादा है। इसको ऐसे समझिए शिक्षक बच्चों में जितना बेहतर संस्कार देगा समाज में पुलिस का रोल उतना ही कम होगा और पुलिस का रोल कम होना हर समाज के लिए बेहतर होता है ।

बदलाव-  शिक्षा आपका आखिरी पड़ाव है या फिर आगे कुछ और बदलाव आनेवाला है?

अखिलेश कुमार- फिलहाल तो शिक्षा-व्यवस्था में बदलाव लाना लक्ष्य है और काम करने की अपार संभावना है। मेरी खुद के लिए कोई बड़ी महत्वाकांक्षा नहीं अगर कुछ है तो वो समाज के लिए कुछ बड़ा करने की। मैं छोटी-छोटी योजनाएं बनाता हूं और उसपर अमल करने की कोशिश करता हूं, इसलिए फिलहाल अभी तो सिर्फ और सिर्फ शिक्षा पर ही पूरी तरह फोकस करना है।

बदलाव- मौजूदा राजनीति को आप किस रूप में देखते हैं, क्या समाज के लिए ये बेहतर है?

अखिलेश कुमार- देखिए आजकल कैसी राजनीति हो रही है वो हर कोई जानता है। सिर्फ प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, मंत्री, सांसद, विधायक बनना ही राजनीति नहीं होती, 90 के दशक के पहले की सोचिए, उस वक्त नेता कौन बनता था, जो समाज के लिए सोचता था, समाज के लिए जीता- मरता था, समाज के हर सुख-दुख में खड़ा रहता था। ऐसे लोगों को लोग खुद नेता चुन लेते थे, आजकल तो लोग नेता पद और पैसे के लिए बन रहे हैं। ऐसी राजनीति देश के लिए मैं तो कतई अच्छी नहीं मानता ।  

बदलाव- देश की राजनीति में बदलाव के लिए शिक्षक क्या भूमिका निभा सकता है ?

अखिलेश कुमार- शिक्षक ही वो विकल्प है जो हर चीज में बदलाव ला सकता है। बेहतर शिक्षा हमें वाद से बचाती है, चाहे वो जातिवाद हो, क्षेत्रवाद हो या फिर व्यक्तिवाद, इन सभी बंधनों से हमें शिक्षा बचाती है। यहां शिक्षा से मेरा मतलब सिर्फ परसेंटेज वाली शिक्षा से नहीं बल्कि मूल्यपरक शिक्षा से है। अगर आप अच्छे शिक्षक के सान्निध्य में रहेंगे तो बेहतर इंसान बनेंगे। बेहतर इंसान बनेंगे तो समाज में ऊंच-नीच, अमीर-गरीब का भेद आपके लिए मायने नहीं रहेगा। तो जाहिर है ऐसे लोग एक बेहतर समाज बनाएंगे, और जब बेहतर समाज बनेगा तो राजनीति अपने आप साफ-सुधरी होगी।

बदलाव- क्या आप जैसी सोच रखने वालों के लिए राजनीति में कोई जगह देखते हैं?

अखिलेश कुमार- हम एक आदर्श समाज की बात करते हैं, ऐसे में मुझ जैसी सोच रखने वालों के लिए मौजूदा राजनीति में कोई जगह नहीं, क्योंकि आप देख रहे हैं कि आजकल किस ग्राउंड पर वोट मांगें जा रहे हैं कैसे चुनाव लड़ा जा रहा है । फिलहाल मेरा मकसद राजनीति नहीं बल्कि मेरे भीतर एक बेहतर मेंटर की जो क्वालिटी है उसे पूरी तरह बच्चों तक पहुंचाना है और मेरा पूरा फोकस भी उसी पर है।

बदलाव- उम्मीद है कि आप जिस मूल्य परक शिक्षा को लेकर आगे बढ़ना चाहते हैं उसमें जरूर कामयाब होंगे । बदलाव से बात करने के लिए शुक्रिया।

अखिलेश कुमार- धन्यवाद ।

One thought on “‘अफ़सरी’ या ‘मास्टरी’, अखिलेश के मन में कोई दुविधा न रही!

  1. आप जैसे सजग नागरिक जहां रहेंगे वही से देश को सुदृढ़ करेंगे । वैसे आपने इसके लिए प्रशासनिक सेवा छोड़ शिक्षा को चुना है जो अहम है। अब के समय में समाज को नीचे के पायदान से ही ठीक किया जा सकता है जिसके लिए आप जैसे लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में आना बहुत जरूरी है। आप और भी कई लोगों के प्रेरक बने है जो शिक्षा के क्षेत्र में काम करना चाहते है । आपको बहुत धन्यवाद ।

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