बॉलीवुड के लिए अमेरिका की कारोबारी दुनिया को बाय-बाय

बॉलीवुड के लिए अमेरिका की कारोबारी दुनिया को बाय-बाय

एपी यादव

एक दौर ऐसा था जब युवाओं को अमेरिका, ब्रिटेन जैसे देश अपनी ओर आकर्षित करते रहे। जिस किसी को विदेश जाने का मौका मिलता वो ‘उड़ान’ भरने में जरा भी देर न लगाता। हालांकि आज भी ऐसे युवाओं की कमी नहीं है जो विदेश में जाकर बसना पसंद करते हैं, लेकिन एक युवा ऐसा है जो अमेरिका में अपना करोड़ों का कारोबार छोड़कर हिंदुस्तान चला आया। ये सब उसने सिर्फ इसलिए किया क्योंकि वो अपने काम से संतुष्ट नहीं था। हम बात कर रहे हैं बॉलीवुड फिल्म अ डेथ इन द गूंज के को-प्रोड्यूसर नील पटेल की। 32 साल के नील पटेल अमेरिका में अपने पिता के होटल उद्योग को नई ऊंचाई पर पहुंचाने के बाद अचानक उसे छोड़कर हिंदुस्तान लौट आए। आखिर कौन सी चीज थी जो उन्हें मुंबई खींच लाई। इन तमाम पहलुओं पर नील से एपी यादव ने की बात।

बदलाव- अमेरिका में बना बनाया कारोबार छोड़कर इंडिया आने की वजह क्या थी ?

नील पटेल- देखिए, अमेरिका में मेरे पास सब कुछ था। बंगला, गाड़ी, पैसा और बिजनेस सब कुछ। फिर भी एक बात का मलाल हमेशा बना रहता था और वो थी आत्म-संतुष्टि। जो मुझे उस कारोबार में कभी नहीं मिली।

बदलाव-क्या पिता के होटल कारोबार में मन नहीं लगता था  ?

नील पटेल, को-प्रोड्यूसर, फिल्म ‘अ डेथ इन द गूंज’

नील पटेल- नहीं ऐसा नहीं है। 2012 में पिता की होटल इंडस्ट्रीज को संभालने से पहले मैंने बाकायदा अमेरिका में MBA की पढ़ाई की और 4 साल के भीतर ही पिता के 4 होटल के कारोबार को 16 होटल तक पहुंचा दिया। फिर भी ऐसा लगता था जैसे मेरी मंजिल ये नहीं है।

बदलाव- फिर आपकी मंजिल क्या थी जिसने आपको अपना कारोबार छोड़ने पर मजबूर कर दिया ?

नील पटेल- हाहाहाहा…बॉलीवुड इंडस्ट्री।

बदलाव-क्या आपका सपना एक्टिंग में हाथ आजमाने का था ?

नील पटेल- नहीं, मैंने तो कभी एक्टिंग की ही नहीं और ना ही कभी थियेटर गया। ये अलग बात है कि जब मैं छोटा था तो बॉलीवुड की फिल्में बहुत देखता था और उसकी कहानी मुझे बहुत अच्छी लगती, लेकिन अमेरिका में पढ़ाई-लिखाई के दौरान धीरे-धीरे वो सब कुछ छूट गया, लेकिन मन में मायानगरी के प्रति आकर्षण बना रहा।

बदलाव- आप मुंबई कब आए और आपका आगे का एजेंडा क्या है ?

नील पटेल- मैं जब 2016 में मुंबई आया तो यहां मेरे लिये सब कुछ नया था। लिहाजा मैंने सबसे पहले सीखने का फ़ैसला किया। मुझे ये तो पता था कि मुझे करना क्या है लेकिन ये नहीं पता था कि कैसे करना है। लिहाजा, मैंने सबसे पहले फिल्म निर्माण की बारीकियों को सीखने का फैसला किया। करीब एक साल तक मैंने बॉलीवुड में अलग-अलग प्रोडक्शन हाउस के चक्कर काटे। फिल्म निर्माण से लेकर स्टार कास्ट तक की बारीकियों को समझा और फिर फिल्म प्रोडक्शन की दुनिया में उतरने का फैसला किया।

बदलाव- सुना है आप कोंकणा सेन के साथ फिल्म बना रहे हैं ?

नील पटेल- जी हां। कोंकणा सेना की नई फिल्म अ डेथ इन द गूंज में मैं बतौर को-प्रोड्यूसर जुड़ा हुआ है। मैं इसे अपने लिए एक बड़ी उपलब्धि मानता हूं, क्योंकि अभी मैं बॉलीवुड के लिए बिल्कुल नया हूं। मुझे अपना प्रोडक्शन हाउस खोले 6 महीने भी नहीं बीते हैं और इन 5 महीने के भीतर ही हमारी पहली फिल्म बड़े पर्दे पर रिलीज को तैयार है।

बदलाव- फिल्म कब रिलीज हो रही है और इस फिल्म में ऐसी क्या खास बात है ?

नील पटेल- दरअसल अ डेथ इन द गूंज  एक ड्रामा थ्रिलर फिल्म है। जिसकी कहानी एक फैमिली ट्रिप से जुड़ी है जो झारखंड के मैक्कुलमगंज छुट्टियां मनाने गया और अचानक उनका आत्माओं से आमना सामना हो गया। आगे की कहानी आप 2 जून को फिल्म देखकर खुद समझ जाएंगे । सच कहूं तो इस फिल्म में पैसा लगाने की असल वजह इसकी कहानी थी जो मुझे बिल्कुल अलग लगी।

बदलाव-फिल्म में कोंकणा सेन का क्या रोल है ?

नील पटेल-दरअसल बतौर निर्देशक कोंकणा सेना शर्मा की ये पहली फिल्म है और खास बात ये है कि फिल्म की पटकथा भी कोंकणा सेन शर्मा ने ही तैयार की है। संगीत सागर देसाई का है। इस फिल्म के मुख्य निर्माता अभिषेक चौबे, हनी त्रेहान और आशीष भटनागर हैं।

बदलाव- मान लीजिए अगर फिल्म नहीं चली तो आप क्या करेंगे ?

नील पटेल-देखिए, मैं हार मानने वालों में से नहीं हूं। मेरे माता-पिता (किरीट भाई पटेल-विलास बेन पटेल ) ने मुझे एक सीख दी है कि आपको जिसमें खुशी मिले वहीं काम करो और मुझे इस काम में मजा आ रहा है। लिहाजा नुकसान का तो सवाल ही नहीं उठता। हो सकता है कि आर्थिक रूप से कभी नुकसान हो भी जाए लेकिन मानसिक रूप से फिर भी मैं धनवान ही रहूंगा। क्योंकि मुझे ये सुकून तो रहेगा कि मैंने जीवन में वहीं कर रहा हूं जो मैं करना चाहता हूं।

बदलाव- आप अमेरिका में पले-बढ़े हैं, फिर भी जानने की इच्छा हो रही है इसलिए पूछ रहा हूं कि आपको शहर अच्छा लगता है या फिर गांव?

नील पटेल- सच कहूं तो मुझे गांवों में काफी अच्छा लगता है। वहां शांति है, सुकून है। अच्छी बात तो ये है कि जब कभी गांवों में जाना होता है और वहां फोन का नेटवर्क नहीं मिलता तो कुछ ज्यादा ही सुकून महसूस करता हूं। हालांकि गांव जाने का मौका ज्यादा नहीं मिलता, क्योंकि गुजरात के आणंद में जहां हमारा पुश्तैनी घर है वो भी शहर में है। नाना-नानी का घर गांव में है, लिहाजा कभी-कभी वहां जाते रहते हैं।


एपी यादव। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।