50 साल से परमाणु रेडिएशन की जद में है नंदा देवी !

फोटो- रॉबर्ट टी स्कालर, MD, SL
फोटो- रॉबर्ट टी स्कालर, MD, SL

पुरुषोत्तम असनोड़ा

नंदा देवी में परमाणु डिवाइस के विकिरण से सलामत नहीं हैं पर्वत श्रेणियां। ऑपरेशन ब्लू माउंटेन के तहत नंदा देवी पर्वत पर एक न्यूक्लियर डिवाइस रखा गया था। 2006 में अमेरिकन पर्वतारोही पेट टाकेडा नंदा देवी से सैंपल ले गए थे। बोस्टन डाटा कॉर्पोरेशन ने जांच कर विकिरण की पुष्टि की। परमाणु डिवाइस से निकलने वाली विकिरण से लोगों को कैंसर, विकलांगता जैसी बीमारियां होने की आशंका है। जानकर हैरानी होगी कि जो दल इस डिवाइस को लगाने नंदा देवी पर्वत गया था, उनमें से दो की मौत कैंसर की वजह से हुई। 1966 से 2009 तक डिवाइस की खोज हुई। 18 खोजी अभियान के बावजूद डिवाइस का पता नही चला। 2009 के बाद से इस खतरनाक डिवाइस की तलाश लगभग ठप है।

नंदा देवी कैसे पहुंचा डिवाइस?

फोटो- द नंदा देवी अफेयर
फोटो- द नंदा देवी अफेयर

1962 में चीन के हमले के बाद भारत और अमेरिका के गुप्तचर संगठनों IB और CIA ने चीन की गतिविधियों पर नज़र रखने के लिए भारत की सबसे ऊंची चोटी नंदा देवी में न्यूक्लियर डिवाइस लगाने का फ़ैसला किया। 8 सदस्यों के दल ने 20 अक्टूबर 1965 को डिवाइस लगाने का काम शुरू किया। कैंप चार तक पहुंचने के दौरान भारी तूफान में 8 सदस्यों का दल फंस गया। तूफान और बिगड़ते मौसम की वजह से न्यूक्लियर डिवाइस को वहीं एक पत्थर से बांधा कर दल नंदा देवी की चोटी से नीचे लौट आया। फिर मई 1966 में उस डिवाइस तक पहुंचने की कोशिश हुई लेकिन कैंप चार में जिस जगह डिवाइस रखी गई थी, वहां नहीं मिली। उसी समय से प्लूटोनियम 238 और 239 से लैस न्यूक्लियर डिवाइस से परमाणु विकिरण का ख़तरा बना हुआ है।

इस ख़तरे का आभास तब हुआ जब 2006 में अमेरिकी पर्वतारोही पेट टाकेड़ा ने नंदा देवी क्षेत्र से लिए सैंपल की जांच कराई। जांच में प्लूटोनियम 238 और 239 का विकिरण पाया गया, जो नंदा देवी में 1965 में रखे गए डिवाइस में से मौजूद तत्वों में से एक था। 4 अगस्त 2009 में आई रिपोर्ट के बाद इस बात की जानकारी सरकार को दी गई लेकिन सरकार ने कोपेनहेगेन में नंदा देवी विकिरण का मुद्दा नहीं उठाया। उस वक्त के गढ़वाल सांसद सतपाल महाराज ने तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को चिट्ठी लिखी और मामले की सही जानकारी पता लगाने की अपील की, लेकिन कोई ठोस कदम नहीं उठाए गए। उस वक़्त के लाता ग्राम के प्रधान धन सिंह राणा ने भी सरकार से जांच की अपील की थी। तत्कालीन ग्राम प्रधान धन सिंह राणा ने कहा इस सीमांत क्षेत्र में हम पर्यावरण संबंधी प्रतिबंधों और जलविद्युत परियोजनाओं की दोहरी मार से पहले ही त्रस्त हैं, और हमारे अवचेतन में इस परमाणु डिवाइस की घड़ी हमेशा टिक-टिक करती रहती है।

अंतर्राष्ट्रीय मंच पर नंदा देवी का नाम 1978 में आया। उस समय के समाचार पत्रों में नंदा देवी के बार में लिखा जा रहा था। सेन फ्रांसिस्को से प्रकाशित पत्रिका “आउट साइड” ने एक सीआईए जासूस के बयानों पर आधारित ‘नंदा देवी कैपर’ के नाम से इसका खुलासा किया। इस रिपोर्ट में चीन द्वारा तिब्बत में मिसाइलों की तैनाती की जासूसी के लिए नंदा देवी में परमाणु ऊर्जा से चलित यंत्र लगाने संबंधित विस्तृत जानकारी थी।

हिमालय में आरोहण से जुड़ी किताब हिमालयन हैंडबुक में पर्वतारोहण इतिहासकार जयदीप सरकार ने इसका ज़िक्र करते हुए लिखा कि 20वीं शताब्दी के छठे दशक के मध्य भारत और अमेरिका के एक गुप्त अभियान के तहत नंदा देवी में परमाणु ऊर्जा चालित एक जासूसी उपकरण स्थापित करने का प्रयास किया गया। सिर्फ किताबों और समाचार पत्रों में इसका जिक्र है। भारत सरकार ने नंदा देवी में कभी भी कोई परमाणु डिवाइस होने की पुष्टि नहीं की।

सरकार मौन थी लेकिन 1978 में यूएस टुडे के खुलासे के बाद संसद में जमकर हंगामा हुआ। तत्कालीन प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई ने डिवाइस खोजने का आश्वासन दिया। हालांकि उस समय विपक्ष में बैठी कांग्रेस के शासन काल में ही ये डिवाइस रखी गई थी। तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने दावा किया था कि डिवाइस एक साल के अंदर खोज ली जाएगी और ख़तरा टल जाएगा। लेकिन सरकार के आश्वासन के बाद भी 45 साल से परमाणु डिवाइस नंदा देवी इलाके में दबी पड़ी है।

‘राजी राठी डांडी-कांठी ऋतु बौड़ली तब’। लोक गायक नरेंद्र सिंह नेगी ने इस बात को रेखांकित किया कि डांडी-कांठी की कुशलता को सरकार की गंभीर लापरवाही ने रौंदने का काम किया। नंदा देवी शिखर से निकलने वाली ऋषि गंगा अलकनंदा की सहायक नदी है। अलकनंदा और भागीरथी ही गंगा बनकर हिमालय से गंगा सागर तक पचास करोड़ लोगों की पानी की ज़रूरतों को पूरा करती हैं। एक अरब से अधिक लोगों की धार्मिक आस्थाओं के काम आती हैं। गंगा जल को अमृत मानने वाले लोग जब परमाणु विकिरित जल इस्तेमाल करेंगे तो उसका परिणाम भयावह होगा। रोजाना इस्तेमाल का जल ही अगर विकिरित हो तो जीवन पर क्या प्रभाव पड़ेगा?

क्या है परमाणु डिवाइस?

फोटो- विकीपीडिया
फोटो- विकीपीडिया

साल 1962 में चीन से हारने के बाद भारत बहुत अधिक सशंकित था और अमेरिका इस मौके का लाभ उठाना चाहता था। अक्टूबर 1964 में चीन द्वारा लोपनूर के पास पहले परमाणु परीक्षण ने वियतनाम में उलझे अमेरिका की चिंता बढ़ा दी थी। चीन ने फिर 1965 में तिब्बत के जिनजियांग क्षेत्र में परमाणु परीक्षण किया। चीन की बढ़ती ताकत पर निगरानी के लिए अमेरिका ने प्रस्ताव रखा। इसी प्रस्ताव के तहत नंदा देवी में परमाणु डिवाइस लगाया गया। परमाणु डिवाइस में उस वक़्त के विकसित कैमरे लगे थे, जो तिब्बत में चीनी गतिविधियों की जानकारी भारतीय खुफिया तंत्र को उपलब्ध कराते। डिवाइस में परमाणु चालित बैटरी लगी थी और उसके ऊपर एक एंटिना लगा था। डिवाइस प्लूटोनियम 238, 239 था जो रेडियोधर्मी विकिरण पैदा करता है, जो मानव के लिए घातक है। पचास साल बाद भी डिवाइस से परमाणु विकिरण निकल रही है।

प्लूटोनियम के खतरे!

कुमाऊं विश्वविद्यालय, नैनीताल के भौतिकी विभाग के अध्यक्ष डॉ एच सी चंदोला ने बताया कि सभी रेडियोएक्टिव तत्वों की तरह प्लूटोनियम के कई समस्थानिक लगातार रेडियोएक्टिव विकिरण करते रहते हैं। रेडियोएक्टिव पदार्थ से अल्फा, बीटा, गामा और एक्सरे जैसे हानिकारण विकिरण उत्सर्जित होते रहते हैं। जिन्हें ना रोका जा सकता है और ना उनकी विकिरण की गति को कम किया जा सकता है। प्लूटोनियम एक चांदी के रंग का रेडियोएक्टिव धातु है, जिसका नाम प्लूटो ग्रह के नाम रखा गया है। यह 1940 के दशक में यूरेनियम 238 पर न्यूट्रॉन की वर्षा के द्वारा उत्पन हुआ। प्लूटोनियम 239 भी यूरेनियम 233 की तरह उन चंद धातुओं में से है, जिसका परमाणु एक से अधिका भागों में टूट कर नाभिकीय विस्फोट कर सकता है।रेडियो एक्टिव किरणों से सबसे ज्यादा नुकसान मानव को होता है। कैंसर, अनुवांशिक व्युत्पन्नता, विकलांगता जैसी बीमारियां हो सकती हैं। नंदा देवी मिशन पर गए आठ सदस्यों में से चार की मौत हो चुकी है। उनमें से दो की मौत कैंसर की वजह से हुई।

नंदा देवी न्यूक्लियर डिवाइस अभियान के सदस्य

अभियान दल में आईबी के चीफ बी एन मलिक, एविएशन रिसर्च सेंटर निदेशक आर एन, सीआईए विशेषज्ञ कैनथ कानवो, एवरेस्ट विजेता एम एस कोहली, पर्वतारोही हरीश रावत और टॉम फोस्टर थे। माना कि पहले हमारे पास सेटेलाइट की विकसित व्यवस्था नहीं थी लेकिन अब तो है। जब विकसित संसाधन हमारे पास हैं तो परमाणु डिवाइस को खोजने में देरी क्यों हो रही है? हमारे भविष्य के साथ सरकार इतनी बड़ी लापरवाही क्यों कर रही है? क्या सरकार किसी बड़े हादसे का इंतज़ार कर रही है?                           (साभार- रीजनल रिपोर्टर)


पुरुषोत्तम असनोड़ा। आप 40 साल से जनसरोकारों की पत्रकारिता कर रहे हैं। मासिक पत्रिका रीजनल रिपोर्टर के संपादक हैं। आपसे [email protected] या मोबाइल नंबर– 09639825699 पर संपर्क किया जा सकता है।


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One thought on “50 साल से परमाणु रेडिएशन की जद में है नंदा देवी !

  1. Arvind Yadav -Whatever bad is happeing in this world has only one reason… USA. Nanda Devi is one of the most beautiful part in India and even in whole world but radiation has stopped people from entering this place. No-one is allowed to enter core area of biosphere reserve but blessing in disguise is that it has restricted human entry which had kept nature intact.

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