50 साल से खेतों में ही है उसका बसेरा

जमीन की रखवाली करती जेठिया बाई
जमीन की रखवाली करती जेठिया बाई

बरुण के सखाजी

छत्तीसगढ़ के चिल्पीघाटी की पश्चिमी तलहटी में धबईपानी के पास 80 वर्षीय महिला जेठिया बाई अपने पूर्वजों के खेतों को कब्जे से बचाने के लिए करीब 50 सालों से खेतों में ही रह रही है। न जंगली जानवरों का डर न मौसमी थपेड़ों का। कंपकंपाने वाली ठंड हो या लू के थपेड़े, जेठिया अपने खेत की झोंपड़ी नहीं छोड़ती। नजदीक में ही एक नाला है, जो बारिश में इतना भर जाता है कि जेठिया की झोंपड़ी से पानी लग जाता है। तब वह अपनी झोंपड़ी छोड़कर जंगल की तरफ थोड़ी ऊंचाई पर चली जाती है। बारिश कम होते ही नाला उतर जाता है, तो वह वापस अपनी झोंपड़ी में आ जाती है।

ऐसा नहीं है कि जेठिया को इस तरह की दुर्गम और दूभर जिंदगी जीने का शौक है, दरअसल यह जेठिया अपने पूर्वजों की 6 एकड़ जमीन को बचाने के लिए कर रही है। वह कहती है ‘अगर मैंने यह अपने भाई-भतीजों के लिए छोड़ दी तो वे मुझे गांव ले जाएंगे। गांव में मुझे पूछने वाला कोई नहीं होगा। अभी मैं कम से कम अपनी जमीन पर तो हैं। मरूंगी भी यहीं।

बचपन में ही शादी के बाद तलाक और फिर दूसरी शादी। कोई बच्चे नहीं। विडंबना ये कि 25 साल की उम्र तक आते-आते गृहस्थी बसी भी और उजड़ भी गई। ऐसे में सहारा थी अपने पिता की यह जमीन, जिस पर अन्य रिश्तेदारों की नजरें गड़ी हुईं थी। जेठिया ने तय किया कि वह अब खेतों में ही रहेगी और तब से खेतों में यह जीवन रुक-रुककर ही सही, पर चल रहा है। किस्सागोई सी जेठिया की यह कहानी शहरी चकाचौंध में असंभव सी जान पड़ती है, लेकिन हकीकत में इस बीहड़ में वह आबादी से ज्यादा मजे में लगती है। जेठिया ने टीवी कभी नहीं देखा। वह बस में भी सिर्फ सामान लेने चिल्पी आने के वक्त ही बैठती है। मनोरंजन के लिए उसके पास भूतों से जुड़ी कुछ कहानियां भी हैं, तो कुछ जानवरों के हमलों की सत्य और असत्य से मिश्रित कथा।

कुछ देर अपनी हांडी में पक रहे चावल को देखने के बाद जेठिया की कहानी जंगली जानवरों की तरफ मुड़ती है। वह कहती है, आसपास के जंगलों में उसने कइयों बार शेर (जेठिया बाघ को ही शेर कहती है) को देखा है। भालू, हिरण, लकड़बग्घे तो जैसे उसके आसपास कइयों बार आए। जेठिया से जब पूछा कि आप इस उम्र में इतना संघर्ष क्यों कर रही हो? तो वह मुस्कुराती हुई कहती हैं, मेरे पिता ने यह जमीन बड़ी मेहनत करके तैयार की थी। इस पर अपने जीते जी किसी का कब्जा न होने दूंगी। यह कहते-कहते वह डंडा हाथ में उठा लेती है। जेठिया का अभी तक न तो राशनकार्ड में नाम था न ही मतदाता सूची में। स्थानीय पत्रकार महेश मानिकपुरी के सहयोग से जेठिया का नाम अब राशनकार्ड में भी जुड़ गया और मतदाता सूची में भी। कवर्धा और मंडला की सीमा पर बने जेठिया के खेतों का एक हिस्सा मध्यप्रदेश की सीमा है। यानी खेत की दूसरी मेड़ से बिछिया तहसील का मौंजा शुरू हो जाता है। जेठिया हमें खेत की मेड़ तक छोडऩे आती है।


 

BARUN K SHAKHJEE

बरुण के सखाजी, माखनलाल पत्रकारिता विश्वविद्यालय से पत्रकारिता की पढ़ाई। किताब-‘परलोक में सैटेलाइट’। दस साल से खबरों की दुनिया में हैं। फिलहाल रायपुर में पत्रिका न्यूज के सिटी चीफ।


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