हमें सियासी ‘योग’ में ना उलझाओ साहब !

सौ. वशिष्ठ योगा
फोटो- वशिष्ठ योगा

कीर्ति दीक्षित

योग दिवस आने वाला है धीरे-धीरे ॐ के नाम पर विवाद सुलगाने के प्रयास भी आरम्भ हो गये हैं। प्रतिदिन एक ना एक बयान सामने आ जाता है। जैसे ही विवाद दिमाग से निकलने लगता है फिर उसे हवा दे दी जाती है। पिछली बार सूर्य नमस्कार नामक विवाद की मार्केटिंग की गयी थी, इस बार नाम बदलकर उस विवाद का नाम ॐ रख दिया गया है। वो क्या है ना पब्लिक एक ही नाम सुन-सुन के बोर हो जाती है, उसमें उतना रस नहीं रह पाता  इसलिए इस बार ब्रांड नेम बदल देना बेहतर मार्केटिंग कला है । अब प्रश्न ये है कि ये विवाद लाता कौन है? दरअसल राजनीति नामक राक्षसी ने हम समाज में रहने वाले आम लोगो की नस भली भांति पकड़ रखी है। जरा सा आप सुखी होना आरम्भ हुए कि धीरे से दबा दो, आपको पता भी नहीं चला और काम हो गया,  लेकिन क्या वास्तव में ॐ, राम या सूर्य नमस्कार को समुदाय विशेष घृणा की दृष्टि से देखता है। मेरी समझ में तो नहीं । मैंने बहुत से मुस्लिम समुदाय को पढ़ा जो राम के नाम पर अपना जीवन वार देते हैं और बहुत से हिन्दू देखती हूँ जो मजारों पर धागे बांधते दिख जाते हैं ।

सौ. वशिष्ठ योगा
फोटो- वशिष्ठ योगा

रसखान जिनकी कृष्ण भक्ति पर क्या हिन्दू क्या मुस्लिम स्वयं भगवन कृष्ण उंगली नहीं उठा सकते, रसखान कहते हैं-

मानुस हौं तो वही रसखान, बसौं मिलिगोकुल गाँव के ग्वारन।

जो पसु हौं तो कहा बस मेरो,चरौं नित नंद की धेनु मँझारन॥

पाहन हौं तो वही गिरि को,जो धर्यो कर छत्र पुरंदर धारन।

जो खग हौं तो बसेरोकरौं मिलि कालिंदीकूल कदम्ब की डारन॥

हिंदुस्तान में ऊंचे-ऊंचे मंच पर बैठकर राम को गलियां देने वालों से कहीं ऊंचा है  अल्लामा इकबाल का ये कलाम  –

Cc6w4YJVAAALkEoयह हिंदियों की फिक्रे फल करस का है असर

रिफअत में आसमा से भी ऊंचा है नामे हिन्द  ।

है राम का वजूद पै हिन्दोस्तां को नाज

अहले नजर समझाते हैं उसको इमामे हिन्द ।।

पकिस्तान जो राम क्या राम के देश को भी झुलसाने के प्रयास में भले लगा रहे लेकिन वहां  का फ़ाज़िल बाशिंदा पाकिस्तानी शायर शमर शमर जफ़र अली खां राम के गुण गाते नहीं थकता  –

नक़्शे तःजीवे हुनूद अपनी नुमंयाँ है अगर ।

तो वो सीता से है, लक्षमण से है, राम से है ।।

पकिस्तान की ही सहबा अख्तर कहती हैं-

मिलेंगे अब भी बनवासी हजारों

नहीं किस राम के सीने में सीता

सलाम मछली शहरी राम का स्वागत करते हुए झूम उठाते हैं –

चित्र- रवि वर्मा
चित्र- रवि वर्मा

आओ आओ अयोध्या के राजकुमार

करूं में तुझ पर न्योछावर फूलों का हार ।।

हिन्दुस्तान में श्री राम की जड़ों की गहराई सागर निजामी से बेहतर कौन नाप सकता है

हिंदुस्तान में – हिन्दियों के दिल में बाकी है मोहब्बत राम की

मिट नहीं सकती क़यामत तक हुकुमत राम की ।।

समाज की उन्नति के लिए बेकल उत्साही श्री राम से पूछते हैं   –

साकार हो तो भेद बता क्यों नहीं देते

हे राम ! हमे अपना पता क्यों नहीं देते

हम कागजी रावन को जला देते हैं हर साल

तुम भीतरी रावन को मिटा क्यों नहीं देते

मिर्जा हसन नासिर उन्ही श्री राम को फिर से इस धरती पर अवतरित होने का आग्रह करते हैं –

धर्म की होने लगी फिर हार ‘नासिर’

पाप के बढ़ने लगे हैं वार ‘नासिर’

अवतरित होने को हैं फिर राम भू पर

दिख रहे हैं कुछ ऐसे ही आसार ‘नासिर’

फोटो- वशिष्ट योगा
फोटो- वशिष्ठ योगा

आसिया खातून सीताराम सीताराम बोलकर समाज को समरसत्ता का पैगाम देते हुए कहती हैं –

वन्दित रसूल रहमान में रहीम में है

यीशु प्रभु में है वाही शक्ति अनमोल रे ।

गीता बाइबिल , गुरुग्रंथ में वाही विवेच्य

कलमा कुरआन में वाही है अनमोल रे ।

ज्ञान के नखों में मूढ़ता की ग्रंथियों को खोल

भेद-भावना का विष जग में न घोल रे ।

अंतर टटोल, भक्ति-वीथिका में डोल-डोल

सीताराम सीताराम बोल रे ।

अब्दुल रशीद खां श्री राम केवट प्रसंग का ऐसा चित्रण प्रस्तुत करते हैं जिसका कोई सानी नहीं  –

पाव न पान पवन की राज को गज शीश पै क्षार चढ़ावत

जहीन सों तारी गई ऋषि नारी सोई जग खोज थक्यो नहीं पावत

वाहे निषाद बसी हिय सों, प्रभु प्रेम वशी तट नाव न लावत

ढीठ ढिठाई को जोर कठोर, कठौती में नाथ के पांय धोवावत ।।

yoga 6कौन हैं ये लोग क्या इस समाज से अलग हैं, या इन्हें किसी और मिटटी से बनाकर भेजा है ऊपर वाले ने, क्या ये किसी और मजहब के लोग हैं, सम्मान का अर्थ केवल पाना नहीं देना भी होता है, ये भेद, ये घृणा, समाज में सुलगाई जाती है, और हम सुलग जाते हैं, लेकिन याद रखिये समाज हम से है इसलिए जिम्मेदारी हमारी ज्यादा बनती है कि राजनैतिक रोटियां सेकने वालों को ऐसा ही उत्तर दें –

ना हिन्दू दिखता है , ना मुसलमान दिखता है ।

हमें तो पेट से लड़ता इंसान दिखता है ।  ।

कौन हैं वे लोग जो धर्माधीश बने बैठे हैं ।

हमें तो फावड़ों में गीता, हथौड़ों में कुरआन दिखता है  ।  ।

कौन हैं ये दुरभिसंधिज्ञ जो ईश बने बैठे हैं ।

हमें तो भूख से मरता किसान दिखता है  ।  ।

ना जाने कौन सा रंग, कौन सा ईमान दिखता है ।

हमें तो पसीने में डूबा भगवान् दिखता है ।  ।


कीर्ति दीक्षित। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के राठ की निवासी। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रहीं। पांच साल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों में नौकरी की। वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता। जीवन को कामयाब बनाने से ज़्यादा उसकी सार्थकता की संभावनाएं तलाशने में यकीन रखती हैं कीर्ति।

 

2 thoughts on “हमें सियासी ‘योग’ में ना उलझाओ साहब !

  1. पूरी दुनिया में योग दर्शन को प्रचारित और प्रसारित करने में योग दिवस एक सार्थक क़दम है। योग विज्ञान भी है और कला भी और दोनों का संप्रदायों या कौम से कोई लेना-देना नहीं। विवाद करने वाले संकीर्ण सोच के साथ योग की असल खूबियों से लोगों को दूर कर रहें हैं।

    योग से तन-मन को अच्छी सेहत मिल रही है, तो फिर विवाद करके लोगों को योग के लाभ से आप महरुम कर रहे हैं। पूरी दुनिया में ऊं के साथ योग पद्धति की शुरुआत होती है, कहीं कोई विवाद नहीं, यू-टूब पे लाखों योग के वीडियो ऊं के साथ दिख जाएंगे। ऊं हीलिंग की प्रणाली है, इसको लेकर राजनीतिक डीलिंग ना करें

Comments are closed.