साहब! सोचा तो यही है… गांव बदलेंगे

सत्येंद्र कुमार यादव

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सातबीं बार में यूपीएससी का किला फतह। साहब बन कर गांव भूल न जाना रमेश।

बदलाव पर आईएएस इम्तिहान में कामयाबी हासिल करने वाले युवाओं के साक्षात्कार की एक सीरीज हमने चलाई थी। इसी कड़ी में हमने रमेश सिंह यादव से भी बात की थी। कल के प्रशासक आज गांव के बारे में क्या सोचते हैं, ये आलेख (रमेश यादव से बातचीत के आधार पर) उसे समझने की एक कोशिश भर है।

रमेश सिंह यादव सातवें प्रयास में संघ लोक सेवा आयोग की सिविल परीक्षा पर फतह हासिल की। आजमगढ़ जिले की निजामाबाद तहसील क्षेत्र के लालपुर गांव को रमेश की इस कामयाबी पर नाज है। इसके पहले वो जिला विकलांग अधिकारी के तौर पर इलाहाबाद में कार्य रहे थे।

रमेश एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। मां घरेलू महिला हैं और पिता राधेश्याम यादव प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक। खेती पर निर्भरता कम रही क्योंकि खेती के लिए सिर्फ ढाई बीघा जमीन है जो जरुरतों के लिहाज से कम ही पड़ती रही। बचपन में गांव के प्राथमिक स्कूल में पढ़ाई की। 12वीं तक की शिक्षा गांव के स्कूल से ही ली। रमेश चाहते हैं कि उनकी तरह गांव में पढ़ने वाले दूसरे युवा भी बुलंदी तक पहुंचे। इसके लिए वो जानकार लोगों से सलाह लेने की नसीहत देते हैं। कई बार गरीब छात्र शहर में जाकर कोचिंग नहीं कर सकते इसलिए उन्हें कोचिंग करने वाले छात्रों के संपर्क में रहना चाहिए ताकि अपडेट मिलता रहे। इंटरनेट का इस्तेमाल करें।

रमेश की माने तो गांव में सबसे बड़ी समस्या ये है कि यहां तैयारी करने वाले लड़कों का ग्रुप नहीं मिलता। आसपास के गांव के बच्चे जो तैयारी कर रहे हैं उन्हें मिलकर ग्रुप बनाना चाहिए। बिजली, इंटरनेट की सुविधा तो बहुत जरूरी है। गांवों में लाइब्रेरी नहीं होती है, अच्छे शिक्षण संस्थानों और शिक्षकों की कमी है।

कामयाबी की चंद बातों के बाद टीम बदलाव ने बातचीत का सिलसिला गांवों की ओर मोड़ा। पंचायतों का जिक्र करते ही रमेश ने पारदर्शिता की कमी गांवों के विकास में एक बड़ी बाधा बताया। प्रधान, लेखपाल, जूनियर इंजीनियर जो विकास कार्यों से जुड़े होते हैं, उनमें तालमेल होना चाहिए। लोगों को भी जागरूक बनाने की ज़रूरत है। ग्राम पंचायतों में क्या योजनाएं आ रही हैं? ग्राम प्रधान क्या कर रहा है, इसकी जानकारी लोगों को होनी चाहिए। एक ग्राम प्रधान चुपचाप पांच साल का समय गुजार देता है और विकास के नाम पर एक दो नाली या सड़क बना कर चलते बनता है। इस चीज को बदलना बहुत जरूरी है तभी गांव का विकास संभव है।

रमेश सिंह डिजिटल इंडिया मिशन को एक बड़ी शुरुआत मानते हैं। उनकी माने तो अगर इस योजना की पहुंच गांव-गांव तक हो जाए तो घर बैठे लोगों को सारी सूचनाएं मिलती रहेंगी। छात्रों को भी परीक्षाओं की तैयारी में आसानी होगी। ग्रामीण लड़कों का पलायन शहरों की ओर कम हो जाएगा। एक रेल टिकट के लिए लोगों को छोटे कस्बों तक आना पड़ता है। जब तक हर गरीब और गांव तक इंटरनेट की पहुंच नहीं होगी तब तक डिजिटल इंडिया मिशन की कामयाबी नहीं मानी जाएगी। गांव और शहरों के बीच डिजिटल खाई है। अगर पीएम मोदी इस खाई को पाट देंगे तभी उनका अभियान सफल माना जाएगा।

प्रधानमंत्री की गांव से जुड़ी योजनाओं पर बातचीत का सिलसिला स्किल इंडिया तक पहुंचता है। रमेश कहते हैं, स्किल इंडिया के तहत ITI और पॉलिटेकनिक पर ज्यादा जोर दिया जा रहा है। ये मिशन तभी सफल होगा जब इसके बारे में गांव तक सूचना पहुंचे। डिजिटल इंडिया इस काम को पूरा करेगा। जब तक दोनों की पहुंच गांव-गांव तक नहीं होगी, इन योजनाओं की सफलता और गांव में बदलाव की उम्मीद नहीं की जा सकती।

गांव पर चर्चा हो और खेती का जिक्र न आए, ये तो शायद मुमकिन नहीं। रमेश ने इजरायल के उदाहरण के जरिए एक नज़ीर सामने रखी। रेगिस्तानी इलाका होने के बावजूद इजरायल में अच्छी खेती होती है। टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर वहां के किसान खुशहाल हैं। हिंदुस्तान में अच्छी मिट्टी होने के बावजूद पैदावार ठीक नहीं होती है। जरूरत इस बात की है कि हम इजरायल जैसे देशों से सीखें। खेती को आधुनिक बनाकर और किसानों के लिए बाज़ार मुहैया कर ही गांवों का भला हो सकता है।

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सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।


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