‘सागर’ की गहराई तो समझो साहब !

1170657_1355912434434312_8714461326102715753_nअरुण यादव

पिछले कुछ दिनों से आशीष सागर दीक्षित का फेसबुल वॉल नहीं देख पाया था, लेकिन जब बदलाव पर आशीष से जुड़ी कल ख़बर पड़ी तो हैरान रह गया । यकीन करना मुश्किल हो रहा है कि कोई इतना नीचे कैसे गिर सकता है कि किसी के ऊपर रेप जैसा घिनौना आरोप मढ़ दे । रेप शब्द कहने में जितना आसान लगता है उसकी परिणति जितनी खौफनाक होती है वो या तो सिर्फ पीड़ित समझ सकता है या फिर जिस पर गलत आरोप लगा हो वो । खैर मैं बात आशीष सागर दीक्षित की कर रहा हूं। बदलाव के जरिए पिछले करीब 8 महीने से मैं आशीष सागर को पढ़ रहा हूं। हालांकि कभी संवाद नहीं हुआ, लेकिन फेसबुक पर उनके पोस्ट पर जरूर नज़र रही है । उनकी रिपोर्ट और उनके काम करने का जो तरीका है उससे ये तो समझ गया कि ये कोई फक्कड़ ही कर सकता है, जिसके भीतर समाज में बदलाव को लेकर कोई जुनून हो। हालांकि ये बात भी उतनी ही सच है कि आशीष जैसे लोगों की जितनी गरीब, दबे कुचले, मजलूम लोगों से बनती है उतनी है तथाकथित शोषण करने वाले लोगों से नहीं बनती । ऐसे लोग अपने काम से जितने चाहने वाले बनाते हैं उससे कहीं ज्यादा अपने ईर्द-गिर्द दुश्मन भी बना लेते हैं । इसको समझने के लिए हमें आशीष के किए कामों को समझना होगा ।

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इंडिया टुडे के 7 अक्तूबर 2015 के अंक की कवर स्टोरी-आजादी के नए पहरुए में जिन 12 योद्धाओं का जिक्र किया गया है, उनमें एक
आशीष सागर दीक्षित भी हैं। पत्रिका ने अवैध खनन के ख़िलाफ़ आशीष सागर की 2009 से चली आ रही जंग को रेखांकित किया है। ये आशीष की सक्रियता का ही नतीजा है कि पूर्व मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दीकी के खिलाफ ईडी की जांच चल रही है और सुप्रीम कोर्ट ने भी मामले में दखल दिया है। खास बात ये है कि जो लोग आशीष के खिलाफ केस दर्ज कराने गए थे उनमें नसीमुद्दीन के रिश्तेदार भी शामिल रहे । मतलब साफ है कि देश के जानेमान समाजसेवी और आरटीआई एक्टिविस्ट के खिलाफ लगाए गए आरोप के पीछे साजिश की बू आ रही है लिहाजा इसकी पूरी जांच की जानी चाहिए । नीचे सामाजिक मुद्दों से जुड़ी आशीष की कुछ और रिपोर्ट्स हैं जिसे पढ़ने के बाद आप आशीष की साफगोई को थोड़ा जरूर समझ सकेंगे । 

बांदा के गांव में जिंदा है ‘ठाकुर का कुआं’dalit-ashish-1-300x200

आशीष सागर दीक्षित ”आइए महसूस करिए ज़िन्दगी के ताप को मैं चमारों की गली तक ले चलूँगा आपको  जिस गली में भुखमरी की यातना से ऊब कर मर गई फुलिया बिचारी एक कुएँ में डूब कर ”  – अदम गोंडवी देश दलित व्यथा से उद्वेलित है। दलित चिन्तक और कामरेड से लेकर अल्पसंख्यक समुदाय मुखर

anndata-ki-akhat-3-300x225गौर करो… वहां एक रोटी की किल्लत है!

आशीष सागर दीक्षित बाँदा सदर की ग्राम पंचायत जमालपुर में ‘ अन्नदाता की आखत ‘ अभियान के तहत सामाजिक कार्यकर्ताओं ने गाँव के अतिगरीब बीस अनुसूचित जाति के लोगों को अनाज का दान दिया। इसमें गाँव के भूमिहीन, बटाईदार (दलित) किसान हैं, जो बड़े कास्तकारों की खेती जोतते हैं।

‘गुलाबी’ खेतों का रंग ‘लाल’ हो रहा है… banda-7-dec-225x300

बाँदा के जसपुरा से आशीष सागर दीक्षित गरीबी और आधे पेट रोटी खाकर अपने खेत की सूखी मिटटी को नम करने की जद्दोजहद में एक और अन्नदाता ने अपने ही खेत में 5 दिसंबर 2015 की दोपहर दम तोड़ दिया। जीवन की आपा-धापी से मुक्त हो गया बाँदा जिले का चालीस साल का किसान।

19-jan-banda-kissan-200x300साहेब, तुमका पूरा गाँव घूमबे का चाही !

आशीष सागर दीक्षित उत्तरप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव अलोक रंजन बुंदेलखंड के दो दिन के दौरे से वापस अपने पंचम तल लौट गए। उनके दौरे के औपचारिक लफ़्ज़ों का शोरगुल थमा भी नहीं है कि राहुल गांधी ने बांदा की भूमि का रूख किया। राहुल गाँधी से बुंदेलखंड के बेहाल किसानों का यक्ष प्रश्न है

गांव की हाट में वो लगा रहा है घरौंदे की बोली

आशीष सागर दीक्षित विकास यादव पुत्र मृतक सुरेश यादव गाँव, बघेलाबारी, बुंदेलखंड। पेशे से किसान। विकास यादव की मां भी जीवित नहीं है। इलाहाबाद के यूपी ग्रामीण बैंक, शाखा फतेहगंज में 2 बीघा ज़मीन गिरवी पड़ी है। पिता ने तीस हज़ार रुपया कर्जा लिया था, जो वे नहीं चुका पाए।

‘घास की रोटी’ का जुमला यूं ही न उछालिए जनाब shirish-banda-01

आशीष सागर दीक्षित ” एक वो है जो रोटी बेलता है, एक वो है जो रोटी सेंकता है ! एक वो है जो न बेलता है,न सेंकता है,सिर्फ रोटी से खेलता है ! मै पूछता हूँ वो कौन है ? देश की संसद मौन है !” बुंदेलखंड में इन दिनों घास की रोटी अहम मुद्दा

banda-medicalबांदा के बंदों की सेहत का ‘रखवाला’ कौन?

आशीष सागर दीक्षित बेदम सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं से कराह रहा है बुंदेलखंड का पूरा क्षेत्र। बिना फार्मेसिस्ट के चल रहे मेडिकल स्टोर, गैर पंजीकृत नर्सिंग होम और झोलाछाप डाक्टरों के आतंक से हलकान है बुंदेलखंड के बाशिंदे। बुंदेलखंड के 6 जिलों बाँदा, महोबा, झाँसी, चित्रकूट, हमीरपुर, जालौन में ( ललितपुर को छोड़कर ) पुराने सरकारी वेबसाइट डाटा

‘वीरों की धरती’… लहूलुहान और वीरान क्यों ?

आशीष सागर दीक्षित उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड का इलाका पिछले कई सालों से प्राकृतिक आपदाओं का दंश झेल रहा है। भुखमरी और सूखे की त्रासदी से अब तक 62 लाख से अधिक किसान ‘वीरों की धरती’ से पलायन कर चुके हैं।

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अरुण प्रकाश। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।