रेगिस्तान की रेत से उम्मीदों की बूंद निचोड़ते हैं, मेरे गुरुवर

सुमित शर्मा

प्रोफेसर टी के जैन, जो पढ़ लेते हैं मन।
प्रोफेसर टी के जैन, जो पढ़ लेते हैं मन।चे

गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागू पांव/बलिहारी गुरु आपनौ, गोविंद दियो बताय। आज गोविंद का दिन भी है और गुरु का दिन भी। लेकिन बदलाव पर बात केवल गुरुओं की… गोविंद का बोध कराने वाले गुरुओं की।

हरे पर चमक… होंठों पर मुस्कान और स्नेह से सराबोर आंखें। कोई शख़्स उनसे पहली बार भी मिले तो लगेगा कि जैसे बरसों का नाता है। कुछ ऐसी ही शख़्सियत हैं मेरे गुरु- प्रो. टी के जैन। साझा की गई तस्वीर 2008 की है, लेकिन जैन सर आज भी वैसे ही दिखते हैं। वही चमक, मुस्कान और स्नेह।
कहते हैं जीवन एक यात्रा का नाम है। उतार-चढ़ाव, धूप-छांव, सुख-दुख सब उस यात्रा के हिस्से हैं। जैन सर, मेरी उस यात्रा की वो ठंडी छांव है, जहां बैठकर मैंने थोड़ा आराम किया। रास्ते की पहचान की और मंज़िल की ओर चल दिया। तब मैं 12वीं क्लास में पढ़ता था। बहुत सी आकांक्षाएं मन में कुलाचें मारती रहती थी। हमेशा उड़ने के ख़्वाब देखता था। ग्रेजुएशन पूरा करने से पहले ही करियर की चिंता करने लगा था। उन दिनों एमबीए का बोलबाला था। मेरे क़रीब-क़रीब सभी दोस्त कॉमर्स सब्जेक्ट से थे और जैन सर के घर पढ़ने आते थे। मैंने भी उतावलेपन में बिना सोचे-समझे दोस्तों के साथ MBA की तैयारी शुरू कर दी।
जैन सर खेल-खेल में ही हमें पढ़ा देते। वो हमारे साथ कभी वर्ड-मीनिंग का कम्पीटिशन कराते तो कभी वर्ड कैचिंग गेम खेलते।

हर वीकेंड पर किसी बड़े बिजनेसमैन को बतौर गेस्ट बुलाया करते और ‘स्टूडेंट ऑफ़ द वीक’ चुना करते थे। इन सबमें बड़ा मज़ा आता था। मुझे शुरू से ही पढ़ने का शौक रहा है। और ये शौक कब लिखने में तब्दील हो गया, नहीं पता। कई मौक़ों पर मैं वहां कविताएं सुनाता था। जैन सर, हमेशा मुझे प्रोत्साहित करते थे और तारीफ़ करते कि तुम अच्छा लिखते हो। मुझे याद है वो कई बार झूठी तारीफ भी कर देते लेकिन मैं नासमझ तब भी फूला नहीं समाता था और कविता सुनाने का मौक़ा ढूंढा करता।

गुरुओं के नाम एक दिन

मुझे याद है कि अक्सर सब दोस्तों के जन्मदिन पर मैंने उनके लिए कविताएं लिखी हैं..उनको सुनाई है। इस तरह धीरे-धीरे मेरी लिखते रहने की आदत सी बन गई। उमड़ते-घुमड़ते ख़्याल ख़ुद-ब-ख़ुद कोई कविता का रूप ले लेते थे। सच कहूं तो मुझे एमबीए की पढ़ाई से ज़्यादा लिखना अच्छा लगता था। मेरा मन उसमें ज़्यादा रमता था।

प्रोफेसर टीके जैन के साथ बच्चे।
प्रोफेसर टीके जैन के साथ बच्चे।

पढ़ाई, खेल और लेखनी..इन सबमें धीरे-धीरे वक़्त बीतता गया। एक साल..दो साल और तीन साल बीत गए। हम सब ग्रेजुएट हो गए। एमबीए का एग़्जाम भी दे दिया। सेलेक्ट भी हो गए। अच्छा कॉलेज भी मिल गया और काउंसलिंग फ़ीस भी जमा हो गई। लेकिन मन में इक अधूरी सी ख़्वाहिश थी। वो क्या थी, ये मुझे ख़ुद भी नहीं मालूम था। इस उधेड़बुन में, मैं परेशान रहने लगा।
एक दिन जैन सर ने अचानक मुझसे कहा, ‘’सुमित, ये मार्केटिंग की पढ़ाई तुम्हारे लिए नहीं है। तुम अपने पापा की तरह जर्नलिज्म क्यों नहीं करते। भई, ये तुम्हारे इंट्रेस्ट का सब्जेक्ट है।’’
मैं तो मानो सन्न। जैसे किसी ने मन की बात पढ़ ली हो। सुनते ही लगा जैसे कोई दबी हुई बात बाहर आ गई हो।
‘लेकिन..मैंने तो एमबीए की काउंसलिंग फ़ीस भी जमा करवा दी है।’ मैंने हिचकते हुए कहा।
‘तो क्या हुआ? काम या पढ़ाई वही करो, जिसमें तुम्हारा मन करे। समझदारी से काम लो। किसी की देखा-देखी ना करो।’ उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा।
मैंने गर्दन हिलाते हुए हामी भर दी। घर पर सबसे बात की और पत्रकारिता के कोर्स में एडमिशन ले लिया। आज मैं ख़ुश हूं (वाकई ?- ये सवाल टीम बदलाव की तरफ़ से) कि मैं वो काम कर रहा हूं, जो मैं करना चाहता था। हालांकि पत्रकारिता पर भी बाज़ारीकरण हावी है, लेकिन मन की मुराद थी, वो तो पूरी हो गई।
खैर, ये सब मुमकिन हो पाया है मेरे उस गुरु की वजह से..जिन्होंने मेरे भीतर वो सब पढ़ लिया जो मैं ख़ुद भी नहीं पढ़ पाया। उनके आशीर्वाद से दो साल पहले मेरा पहला उपन्यास छपा। मैं उनको किताब भेंट करने गया तो बड़े फ़ख्र के साथ अपनी पत्नी से बोले- “देखा मैं न कहता था कि सुमित अच्छा लिखता है।”

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बीकानेर के निवासी सुमित शर्मा ने पत्रकारिता के मोहजाल में फंसकर दिल्ली तक का सफ़र तय किया। रेगिस्तान के बाशिंदे सुमित के मन की माटी दो चार घट से कहां तर हो सकती है। पत्रकारिता के मौजूदा स्वरूप में इससे ज़्यादा की गुंजाइश नहीं, और वो अपनी तलाश अधूरी छोड़ने को राजी नहीं।


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7 thoughts on “रेगिस्तान की रेत से उम्मीदों की बूंद निचोड़ते हैं, मेरे गुरुवर

  1. He is my favourite teacher.. whenever i think of him, don’t know from where the new inspiration comes with shine & smile. Sahaj aur Saadgi ki pehchaan hain T K Jain sir.. Muskaan unki motiyon jaisi hain jaise ki gehre samundar mein se chun-chun ke nikala gaya moti ho.. Sir aap mere mann aur aatma mein basey hain aur mein garv mehsoos karta hoon ki mein aapka student hoon..
    Sumit sharma thank you so much for such a beautiful feelings shared by you and will wait for more your editorials to read which touches the heart. Amazing

    1. Well said Deepak. जैन सर हैं ही ऐसे। he is a grt teacher. U can also share your thought in badalav.com. achchi cheezen dunia k samne aani chahiye..

  2. happy belated teachers’ day!
    Right Sumit! Jain Sir is wonderful as a person and friendly too. I met Jain Sir in bus from jaipur to bikaner. He has a magnetic persona and simplicity is just great. I would be lucky to have a Mentor and a Guru in my life like you. Salute to you Sir. You are just like ‘The Sun’ in our lives.

  3. बहुत अच्छा लगा । वास्तव मेँ प्रोफेसर मात्र प्रोफेसन के लिए काम न करके गुरु बने तभी वह पूज्य भी होता है व कल्याणकारी भी होता है।
    जतनलाल दूगङ

    1. बहुत सही कहा..जतन जी… सर एक उम्दा पर्सनेलिटी हैं.. अपने बच्चों की मदद के लिए हमेशा तैयार.. बीकानेर को गर्व है उन पर..

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