गोयनका सम्मान का ‘राम नाम सत्य’

बाबा असहिष्णु आनंद

goenka-awardजैसे विश्व भर में सिनेमा प्रेमियों को, खुद अभिनेता-अभिनेत्रियों को, फिल्म समीक्षकों को और सिनेमा के क्षेत्र में सृजनात्मक काम कर रहे लोगों को ऑस्कर पुरस्कारों की घोषणा का इंतज़ार होता है ; वैसे ही भारत में पत्रकारों को, संपादकों को और पत्रकारिता के क्षेत्र में सृजनात्मक काम करने वालों को हर साल रामनाथ गोयनका पुरस्कारों की उद्घोषणा का इंतज़ार रहता है। जन्म से मारवाड़ी और कर्म से विशुद्ध क्षत्रिय रामनाथ गोयनका के नाम पर पुरस्कार स्थापित करने का विचार किसका था ये तो पता नहीं लेकिन हर बीतते साल के साथ ये पुरस्कार जिस तरह से बांटे जा रहे हैं, उससे रामनाथ गोयनका सम्मान के नाम से जुड़ी प्रतिष्ठा का ‘क्षरण’ बड़ी तेजी से शुरू हो चुका है !
उचित ही है कि इस बार भी जब 2013-2014 के लिए रामनाथ गोयनका पुरस्कारों का ऐलान हुआ तो सोशल मीडिया से लेकर निजी बातचीत तक में लोगों ने पुरस्कार देने वालों और पुरस्कार पाने वालों पर भयंकर कटाक्ष किए। ये बातें सामने इसलिए नहीं आ सकीं क्योंकि ‘ग़म-ए-रोजगार’ का मारा हर कोई है। 1991 में रामनाथ गोयनका के निधन के 8 साल बाद 1999 में शुरू किए गए  पुरस्कार की ज्यूरी हर बार अलग-अलग होती है। इस बार ज्यूरी में 5 लोग शामिल थे। ये कहने में कोई संकोच नहीं कि इन पांचों लोगों ने पुरस्कारों की गरिमा और पत्रकारीय प्रेरणा को अपने चयन से सवालों के घेरे में ला दिया। एक सवाल ये भी है कि आखिर ऐसी ज्यूरी का निर्धारण कौन करता है, जिसका पत्रकारिता से कोई न तो सीधा वास्ता है और न ही उनकी अभिरुचि को लेकर पत्रकारिता जगत के लोग आश्वस्त हैं? 
रामनाथ गोयनका सम्मान के दौरान मंच पर मौजूद सुधीर चौधरी।
रामनाथ गोयनका सम्मान के दौरान मंच पर मौजूद सुधीर चौधरी।

इस बार पुरस्कार जीतने वालों की योग्यता और प्रेरणा का हम विधिवत मूल्यांकन करेंगे, सोदाहरण करेंगे लेकिन इससे पहले उन ‘मी लॉर्ड्स’ के बारे में जानना जरूरी है जो ज्यूरी के सदस्य थे। सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज बी एन श्रीकृष्णा, एचडीएफसी के चेयरमैन दीपक पारेख, एशिया नेट टीवी के संस्थापक शशि कुमार और पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरैशी समेत एक मात्र पत्रकार पामेला फिलिपोज इस बार ज्यूरी के सदस्य थे। पामेला फिलिपोज के अलावा ज्यूरी के बाकी लोगों का नियमित पत्रकारिता से कितना सरोकार रह सकता है, इसे समझने में किसी को लेशमात्र भी दिक्कत नहीं होनी चाहिए। आखिर एक बैंकर किसी स्टोरी की गुणवत्ता, उसके पीछे की प्रेरणा और संघर्षों का फ़ैसला कैसे कर सकता है ? ये कुछ वैसे ही है जैसे क्रिकेट का कोई पुरस्कार देना हो सचिन तेंदुलकर को और ज्यूरी के मेंबर हों फारुक अब्दुल्ला या अनुराग ठाकुर समेत बॉक्सर विजेंदर। (ये और बात है कि क्रिकेट बोर्डों में ऐसे ही लोगों की भरमार है, जो क्रिकेट को लेकर सारे बड़े फ़ैसले करते रहे हैं। )

रामनाथ गोयनका केवल एक अखबार के मालिक नहीं थे बल्कि वो एक प्रेरणा स्रोत थे। प्रतीक उन आदर्शों और मूल्यों के जो आज के दौर की पत्रकारिता में लगातार छीजते जा रहे हैं। वो एक योद्धा की तरह देखे जाते रहे हैं, जो सचाई के लिए अपना सब कुछ कुर्बान कर सकता था। वो ऐसे इंसान थे जो सत्ता के विरुद्ध तैयार की गई सान पर ही पत्रकारिता की कसौटी तय करते थे, उसे परखते थे। उनके मीडिया घराने ने आपातकाल का आतंक झेला, बोफोर्स का भंडाफोड़ किया और न जाने कितने-कितने कीर्तिमान स्थापित किए। जाहिर है उनके नाम पर दिए जाने वाले पुरस्कारों को जीतने वाले शख्स से इन गुणों की अपेक्षा की जाएगी। लेकिन हाल के कुछ वर्षों में जिन लोगों को ये पुरस्कार मिला है, उनमें कई ऐसे चेहरे हैं, जिनका जीवन और कार्य रामनाथ गोयनका की समस्त चेतना की कसौटी पर खरा नहीं उतरता।

पत्रकारिता में व्याप्त जिस दलाली के विरोध में रामनाथ गोयनका ने जिंदगी भर संघर्ष किया उन्हीं के नाम पर स्थापित पुरस्कार जब ज़ी न्यूज़ के संपादक सुधीर चौधरी को दिया गया तो बरबस खयाल आया कि उन लोगों पर क्या बीती होगी जो रामनाथ गोयनका को पत्रकारिता क्षेत्र में आदर्श मानते रहे हैं? ये पत्रकारिता में विश्वास की आखिरी कड़ी के टूट जाने जैसा ही है। भारतीय पत्रकारिता के हालिया इतिहास में सुधीर चौधरी शायद ऐसे पहले ‘बड़े’ संपादक हैं, जो दलाली के आरोप में जेल की हवा और रोटी दोनों खा चुके हैं। उनके जेल जाने की खबरें राष्ट्रीय मीडिया में बहस का मुद्दा बनीं थी, फिर भी चौधरी साहब को रामनाथ गोयनका पुरस्कार दिया गया। आखिर क्या मजबूरी थी क्या ज्यूरी के लोगों को श्रीमान चौधरी के बारे में पता नहीं रहा होगा दलाली में जेल जाना तो एक मुद्दा है ही, चौधरीजी उमा खुराना स्टिंग मामले में भी ‘चैनल ऑफ एयर’ की सज़ा पा चुके हैं। ये और बात है कि वो अब हर रात अपने शो DNA में देश को नैतिकता का पाठ पढ़ाते हैं और दर्शकों को ये शो (टीआरपी के लिहाज से) काफी पसंद भी आ रहा है। तो क्या अब टीआरपी से तय होने लगा है रामनाथ गोयनका अवॉर्ड? हालांकि आपको ये भी बता दें कि सुधीर चौधरी को रामनाथ गोयनका अवार्ड ‘निर्भया कांड’ के बाद निर्भया के दोस्त के इंटरव्यू को लेकर दिया गया, जिसकी उस वक़्त अपनी अहमियत जरूर थी।
रामनाथ गोयनका सम्मान करतीं बरखा दत्त।
रामनाथ गोयनका सम्मान ग्रहण करतीं बरखा दत्त।

अब आते हैं दूसरे  बड़े नाम पर। वो नाम है बरखा दत्त का। एक दौर था जब न्यूज़ और पत्रकारिता में रुचि रखने वाली हर लड़की बरखा दत्त बनाना चाहती थी। कारगिल युद्ध के दौरान युद्ध भूमि से ‘कवरेज’ के जरिए बरखा ने खूब सुर्खियां बटोरीं। बेहद कम उम्र में बरखा देश की बड़ी पत्रकार बन गईं। टेलीविजन पत्रकारिता को इसके लिए धन्यवाद दिया जाना चाहिए लेकिन नीरा राडिया दलाली कांड में बरखा का नाम आने के बाद भी उन्हें रामनाथ गोयनका पुरस्कार दिया गया, ये अपने आप में ‘अद्भुत’ है। आरोप हैं कि DMK प्रमुख करुणानिधि की बेटी कणिमोझी से मिलकर बरखाजी यूपीए-2 के दौरान मंत्री पद की दलाली कर रही थीं। महरूम विनोद मेहता ने तो आउटलुक ’ में बकायदा ‘उस ख़ास’ बातचीत की पूरी स्क्रिप्ट भी छापी थी, लेकिन हाय रे रामनाथ गोयनका की प्रतिष्ठा के रखवाले उन्हें ये ‘दलाली कथा’ न दिखाई पड़ी, न सुनाई दी।

रामनाथ गोयनका गैलेक्सी ऑफ एक्सीलेंस इन जर्नलिज्म के ये चंद नगमात हैं। अगर साल दर साल की लिस्ट खंगाली जाए तो ऐसे लोगों की सूची में कुछ और नाम जुड़ सकते हैं। बहुत से चेहरे ऐसे हैं जो हर दूसरे साल ये पुरस्कार जीतते हैं। एनजीओवादी पत्रकारिता के मशहूर और संस्थापक संपादक तरुण तेजपाल के दुस्साहसी कदाचारी हरकतों के लिए बदनाम तहलका के दो-तीन पत्रकार ऐसे हैं जो कई बार ये पुरस्कार हासिल कर चुके हैं। साथ ही NDTV के कुछ चेहरे ऐसे हैं जो घूम फिरकर अलग-अलग कैटेगरी में हर साल विजेता के रूप में कलम लहराते दिख जाते हैं। अब तो एक नया ट्रेंड ये भी देखने में आ रहा है कि जो जितना दिखता है उसे उतनी बार और उतनी जल्दी पुरस्कार मिलता है। ऐसे में बहुत से लोगों को ये लगना बहुत स्वाभाविक है कि रामनाथ गोयनका के नाम पर दिए जाने वाला पुरस्कार भारत की दलाल पत्रकारिता का एक और एक्सटेंशन तो नहीं बनता जा रहा ! रामनाथ की आदर्शों की पोटली कहीं स्वर्ग में टंगी है और उनके नाम पर दलाली का एक और खेल पत्रकारिता के रंगमंच पर खेला जा रहा  है !


 (लेखक की इच्छा का सम्मान करते हुए हम उनका नाम प्रकाशित नहीं कर रहे। आपकी प्रतिक्रियाओं का स्वागत है। हम उसे भी उतने ही सम्मान के साथ प्रकाशित करने की कोशिश करेंगे।)


प्रतिरोध की संस्कृति को सलाम करने का वक़्त… पढ़ने के लिए क्लिक करें

11 thoughts on “गोयनका सम्मान का ‘राम नाम सत्य’

  1. Vinod K. Chandola- लेख शिकायत भर लगता है- विश्लेषण नहीं। पुरस्कार खुले बाज़ार वाली अर्थव्यवस्था के इस समय में जन-सम्पर्क गतिविधि भी हो सकते हैं और कुछ समाचारपत्रों का प्रसार या टीवी चैनलों की टीआरपी बढ़ाने के उपस्कर भी।

  2. Pushya Mitra -आप ठीक कहते हैं विनोद जी। मगर रामनाथ गोयनका समेत कई पुरस्कारों की अब तक उस रूप में प्रतिष्ठा नहीं थी।

  3. Vinod K. Chandola- पूँजीवाद और भूमंडलीकरण ला रहा है बड़े बदलाव। उस मीडिया के बस का कुछ नहीं जो विदेशी पूँजी निवेश पर चलता है।

  4. Anu Singh Choudhary- मैं इसे एक पत्रकार और एक मीडियाकर्मी के बीच की लड़ाई मानती हूं।

  5. Pushya Mitra- मीडिया कर्मियों में भी कई लोग पत्रकार हैं अनुजी।

  6. Ravi Shankar Singh -मित्रों दोस्तों और आम जनता का प्यार इन रीढ़ वालों को जरूर भरपूर नसीब होता है।

  7. Manoj Kumar -पत्रकारिता भी चापलूसी की हाई स्पीड ट्रैक बन गई है, इस पर जो सवार हुआ वो तेज गति से आगे निकल गया। वो बीते दिनों की बात हो गई जब लोग ये कहते थे मेहनत इस कदर करो कि सफ़लता शोर मचा दे, मगर यहा मेहनत तो दिखती नहीं, पर सफ़लता शोर जरूर मचा जाती है।

  8. Arun -Pushy Bhai media jab bazaar ban gaya to kharid farokhat lajmi hai, Kya pata award dene wale soche hon ki Bhai aise aadami ko do Jo lautane ke layak ki na ho.

Comments are closed.