बुलंद कम क्यों है बुंदेलखंड की आवाज़ ?

बुंदेलखंड के किसान के साथ योगेंद्र यादव
बुंदेलखंड के किसान के साथ योगेंद्र यादव

योगेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से

samvedna yatraआंखें देख पाती उससे पहले ही गाड़ी ने हिला-हिला कर बता दिया कि हम बुंदेलखंड पहुँच चुके हैं। ना सड़क में गड्ढा था, ना गड्ढे में सड़क। बस गड्ढा ही गड्ढा था। देह को झकझोर कर मानो आत्मा को भी हिलाये जा रहा था। यह बुंदेलखंड है, यह अफ्रीका में नहीं हमारे अपने देश में है। आने वाले झटकों की तैयारी हो रही थी। स्वराज अभियान के जय किसान आंदोलन के तहत हम कुछ साथी विगत 2 अक्टूबर से देश के सूखाग्रस्त इलाकों की ‘संवेदना यात्रा’ पर हैं। इस सिलसिले में शुरुआती चार दिनों में हमने बाँदा, हमीरपुर, महोबा, चित्रकूट, कौशाम्बी, फतेहपुर, उन्नाव, रायबरेली, कानपुर नगर, कानपुर देहात,  औरैया,  इटावा और आगरा जनपदों के गाँवों में यात्रा की और किसानों से बातचीत की।4

यहाँ आप को सूखा मापने के लिए मौसम विभाग के आंकड़ों की जरुरत नहीं पड़ती। आँख दौड़ते ही चारों तरफ सूखी धरती और खाली खेत दिखायी देते हैं। सूखी नहरें (अगर कभी कभार दिख जाएँ तो), सूखे तालाब, सूखे कुएँ। गाँव मखानपुर जिला बाँदा के बुजुर्ग भागवत विश्वकर्मा कहते हैं कि इतना भारी सूखा कभी याद नहीं पड़ता। लगातार तीसरे साल सूखा है। जीवन में पहली बार नदी की धार टूटी हुई देखी है। हाँ, इस साल एक बार जमकर बारिश हुयी थी, लेकिन उससे भी नुकसान ही हुआ। अतिवृष्टि में खड़ी फसल बर्बाद हो गयी थी।

यह बुंदेलखंड है। यहाँ फसलों के नुकसान का जायजा लेने के लिए आप को बारीक़ समीक्षा की जरुरत नहीं है। किसी भी खेत के पास खड़े हो जाइए और सारी कहानी आप के आँखों के सामने होगी। धान की फसल चौपट हो गयी है। इक्का दुक्का किसानों के पास अपना टयूबवेल और डीजल का इंतजाम है, जिससे फसल बचाई जा सके। उनकी भी आधे से भी कम ही फसल बच पायी है। मूंग, उरद पूरी तरह से ख़त्म हो गयी हैं। आम तौर पर सूखे में टिकने वाला बाजरा भी टिक नहीं पाया है। अगर थोड़ी बहुत बच पाई है तो वो तिल्ली यानी तिल की फसल। वह भी रुपये में 10-20 पैसा।

2यहाँ सूखे के प्रभाव का अध्ययन करने के लिए आप को शोध करने की जरुरत नहीं है। गाँव छेरिहा खुर्द, जिला चित्रकूट की कोल बस्ती में जाते ही कुपोषण का सच आप के सामने आ जाता है। बच्चों की डंडी की जैसी सूखी टांगे, 40 की उम्र में बुढ़िया गई औरतें, चारो तरफ बीमारी का साम्राज्य। गाँव ही नहीं शहरों में भी इसका असर दिखाई देता है। दुकानदार मायूस हैं, व्यापार ठप पड़ा है। इस बार उत्तर प्रदेश में औसत से 45 प्रतिशत कम वर्षा हुई है। कुछ जिलों में तो 20 प्रतिशत से भी कम पानी बरसा है। वर्षा की कमी से देश में सर्वाधिक प्रभावित 30 जिलों में से 17 उत्तर प्रदेश में हैं। प्रदेश के कई इलाकों में लगातार दूसरे या तीसरे वर्ष सूखा पड़ रहा है। कुल मिलाकर अकाल जैसे आसार बन रहे हैं।7

यह बुंदेलखंड है। इस सूखे में यहाँ एक ही चीज है जो दिखायी नहीं देती- सरकार। कुछ साल पहले बुंदेलखंड पैकेज बड़े गाजे-बाजे के साथ घोषित हुआ था। लगता है अभी फ़ाइल में ही पड़ा है। सिंचाई के इंतजाम नदारद हैं। नदियों के नज़दीक के गाँव भी पानी के अभाव से जूझ रहे हैं। पिछली फसल के नुकसान का मुआवज़ा कुछ चुनिंदा लोंगो को मिला है बस। रोजगार गारंटी योजना के तहत कुछ लोंगो को 8-10 दिनों का काम मिला है। राशन के कार्ड तो हैं लेकिन अधिकांश गरीबों के पास गरीबी वाला कार्ड नहीं है। हैंडपंप हैं तो काम नहीं करतें। जानवरों के चारे की तो बात ही छोड़िये। यह बुंदेलखंड है… बस इन दिनों इसकी आवाज़ थोड़ी कम बुलंद है…! 


yogendra yadavयोगेन्द्र यादव। स्वराज अभियान के सदस्य। राजनीति की धारा में बदलाव के लिए सक्रिय। सीएसडीएस के साथ मिलकर सामाजिक -राजनीतिक अध्यययन का लंबा अनुभव। अन्ना आंदोलन के दौरान सक्रिय रहे। अरविंद केजरीवाल के साथ आम आदमी पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई। इन दिनों स्वराज आंदोलन के जरिए राजनीतिक चेतना की नई जमीन तलाश रहे हैं, संवार रहे हैं।


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