बुलंदियों की ख्वाहिश में मिटा दिये दरभंगा के पोखर

पुष्यमित्र

लहेरियासराय का बेता गामी पोखर, 2014 में पानी से लबालब।
लहेरियासराय का बेता गामी पोखर, 2014 में पानी से लबालब।
बेतागामी पोखर, अब साल 2016 में कुछ ऐसा दिखता है।
बेता गामी पोखर, अब साल 2016 में कुछ ऐसा दिखता है।

लहेरियासराय के बेता गामी पोखर को इन दिनों आप उसके चारों ओर बने किसी मकान की छत पर चढ़े बगैर नहीं देख सकते। कभी पांच एकड़ जमीन में फैला यह तालाब आज एक छोटे डबरे जैसा दिखता है। आज इसका रकबा मुश्किल से एक एकड़ रह गया होगा। इसकी इस दशा के जिम्मेदार इसके चारों तरफ बने निजी अस्पताल और दूसरी इमारतें हैं, जिसने पिछले चार-पांच सालों में इसे लगभग पूरी तरह निगल लिया है। तालाब में जो थोड़ा बहुत पानी बचा है, वह भी अगले साल साल शायद ही नजर आये। क्योंकि वह जमीन भी पूरी की पूरी बिक गयी है और वहां तेजी से कंस्ट्रक्शन चल रहा है।

बाबा सागर दास तालाब, यह 2014 की तसवीर है।
बाबा सागर दास तालाब, यह 2014 की तसवीर है।
आज कुछ ऐसी दिखती है वह जगह जहां पहले बाबा सागर दास तालाब हुआ करता था।
आज कुछ ऐसी दिखती है वह जगह जहां पहले बाबा सागर दास तालाब हुआ करता था।

एक बाबा सागर दास तालाब है। कुछ महीने पहले जब उसमें कचरा फेंका जा रहा था तो उसे देखने जल पुरुष राजेन्द्र सिंह पहुंचे थे। आज वह तालाब समतल मैदान बन चुका है। कई मकानों के पिलर खड़े हो गये हैं। स्थानीय लोग बताते हैं कि पिछले महीने ही यह सब हुआ है। कबरा घाट मोहल्ले में भी एक तालाब हाल के दिनों में समतल ही गया है, दूसरे को आधा भरा जा चुका है और तीसरे में कचरा फेंका जा रहा है। वार्ड 25 में शाही मनसफी में एक तालाब में इन दिनों हर रात ट्रैक्टर से मिट्टी गिराई जा रही है और इस खतरनाक खेल को रोकने वाला कोई नहीं। गामी पोखर के नाम से ही जाने वाले एक अन्य पोखरे पर तो कई सालों से एक होटल खड़ा है। तालाबों का यह हाल उस दरभंगा शहर में है, जो कभी तालाबों का जिला माना जाता था। पग-पग पोखर यहां की सांस्कृतिक पहचान भी रहे हैं। मगर इन दिनों शहर के लगभग सभी तालाबों के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है।

बेता गामी पोखर बचाने में गयी एक जान

कबरा घाट मोहल्ले का एक तालाब। कागजों में तो यही है, हक़ीकत आप देखिए। फोटो सौजन्य-पुष्यमित्र
कबरा घाट मोहल्ले का एक तालाब। कागजों में तो यही है, हक़ीकत आप देखिए। आलेख के सभी फोटो सौजन्य-पुष्यमित्र

लहेरियासराय में स्थित बेता गामी पोखर (जो इन दिनों तीन चौथाई भर चुका है), के भरे जाने की शुरआत चार-पांच साल पहले हुई थी। 2014 में स्थानीय गरीब तबके के लोगों ने इसे भरे जाने का विरोध किया था। इन लोगों के नहाने-धोने के लिए वही तालाब सहारा था। आन्दोलन भी हुआ। एक दिन इस आन्दोलन में शामिल एक युवक अरुण राम की लाश इसी तालाब में तैरती हुई मिली और उसके साथियों पर ही उसकी हत्या का आरोप मढ़ दिया गया। लोग कहते हैं, उस वक्त अतिक्रमण करने वालों ने वादा किया था कि तालाब को और नहीं भरा जायेगा, और तालाब के किनारे घाट बना दिया जायेगा ताकि लोग नहा धो सकें। मगर हुआ कुछ नहीं। आन्दोलनकारी युवक केस-मुकदमे में उलझ कर रह गये और तालाब के गले पर फंदा कसता चला गया, जो अब दम तोड़ रहा है।

इस बीच इस तालाब के अतिक्रमण के खिलाफ एक मुकदमा हुआ। मगर कहा जाता है कि जिला प्रशासन ने मुकदमे में ठीक से तथ्य नहीं रखे, क्योंकि वहां कई प्रभावशाली लोग जमीन पर काबिज थे। प्रशासन मुकदमा हार गया। तत्कालीन डीएम ने फिर सुप्रीम कोर्ट जाने की बात कही। मगर इसके तत्काल बाद उनका तबादला हो गय। सुप्रीम कोर्ट में फैसले के खिलाफ अपील नहीं की जा सकी है। रोचक तथ्य यह है कि इस तालाब के ठीक पीछे पुलिस थाना है, उसे भी गामी तालाब की बेआवाज चीख सुनाई नहीं देती।

तालाबों का शहर दरभंगा

दरभंगा को तालाबों का जिला कहा जाता है, यहां तकरीबन 65 सौ तालाब हैं। जिनमें दो हजार तालाब सरकारी कब्जे में हैं। इनमें से ज्यादातर तालाब 200 से 900 साल पुराने हैं। 1964 में प्रकाशित गजेटियर के मुताबिक दरभंगा के शहरी क्षेत्र में तीन सौ से अधिक तालाब थे। 1989 में प्रो. एसएच बज्मी ने शहर के तालाबों का सर्वेक्षण किया था। उस सर्वे के मुताबिक तब शहर में 213 तालाब थे। उन्होंने इस सर्वेक्षण में उक्त तालाबों का रकबा भी दर्ज किया था, साथ ही एक नक्शा बना कर उसमें तालाबों की स्थिति दिखायी थी। इस साल नगर निगम ने जानकारी दी है कि शहर में तालाबों और डबरों की कुल संख्या 84 है।

न अतिक्रमण हटा, न सौंदर्यीकरण हुआ

झीलनुमा बड़े तालाब जैसे गंगा सागर, दिग्घी, हराही और मिर्जा खां तालाब जो शहर की शान माने जाते रहे हैं, पर भी भू-माफियाओं की निगाह है। साल 2010 में दिग्घी तालाब के सौंदर्यीकरण की एक योजना बनी थी। एक करोड़ पैंसठ लाख का बजट उपलब्ध कराया गया था। मगर इस बीच कुछ वार्ड पार्षदों ने कहा कि पहले शहर के तालाबों को अतिक्रमण मुक्त कराया जाये। कमिश्नर के आदेश पर शहर के इन चार बड़े तालाबों पर हुए अतिक्रमण को चिह्नित करने के लिए एक जांच कमेटी बनी। पहले तीन तालाबों की नापी करायी गयी और अतिक्रमणकारियों को नोटिस जारी किया गया। उन लोगों ने अपील की कि पुनः नापी करायी जाये। इस बीच डीसीएलआर का तबादला हो गया और यह पूरी जांच तो रुक ही गयी, सौंदर्यीकरण का मसला भी ठंडे बस्ते में चला गया।

मछली मार्केट अपना,  मछलियां बाहर की 

गंगा सागर तालाब के निकट का ये मछली बाज़ार। अब यहां आंध्रप्रदेश से मछली पहुंचती है।
गंगा सागर तालाब के निकट का ये मछली बाज़ार। अब यहां आंध्रप्रदेश से मछली पहुंचती है।

इन दिनों नौ सौ साल पुराने गंगा सागर तालाब के किनारे होलसेल फिशर मार्किट खड़ा कर दिया गया है. रोचक यह है कि इस मार्किट में 95 फीसदी मछलियाँ आंध्र प्रदेश से आने वाली मछलियाँ हैं. होलसेल फिश मर्चेंट एसोसियेशन के चेयरमैन उमेश सहनी कहते हैं, 65 सौ से अधिक तालाब वाले और दो बड़ी नदियों से घिरे दरभंगा जिले के लिए यह सचमुच शर्म की बात है. मगर हम क्या करें. तालाबों में जब कचरा डाला जायेगा तो मछलियाँ कहाँ से मिलेंगी. उन्होंने कुछ साल पहले गंगा सागर तालाब का ठेका लिया था. मछलियों का जीरा भी गिराया मगर सारी मछलियाँ बड़ी होने से पहले मर गयीं. उन्हें 20 लाख रुपये का नुकसान हो गया. शहर के तालाबों में कभी अलग-अलग किस्म की लोकल मछलियां मिलती थीं, अब तो इनमें से ज्यादातर वेराइटी नष्ट हो गयी. नुकसान मछुआरों को हो रहा है. उनकी रोजी-रोटी खत्म होती जा रही है.

लड़ कर बचाया अपना डबरा

छोटन कुरैशी। दरभंगा, जिला अकलियत सेल के महासचिव।
छोटन कुरैशी। दरभंगा, जिला अकलियत सेल के महासचिव।

शाह सुपन में वार्ड 24 में एक डबरा है। पहले तालाब ही रहा होगा। पिछले कई सालों से मोहल्ले के लोग उसमें अपने घरों का दूषित जल गिराते हैं, क्योंकि वहां जलनिकास की कोई दूसरी व्यवस्था नहीं। पिछले दिनों एक भू-माफिया की निगाह उस डबरे पर पड़ गयी। इस साल की पहली जनवरी को वहां मिट्टी गिराना शुरू कर दिया गया। डबरा भर जाता तो लोगों को अपना गंदा पानी बहाने के लिए कोई जगह नहीं मिलती।  इसलिए मोहल्ले के लोगों ने विरोध किया। उनकी अगुआई एक राजनीतिक दल के कार्यकर्ता छोटन कुरैशी ने की। उन्होंने सरकारी स्तर पर शिकायत की तो 5 जनवरी से वहां मिट्टी गिराया जाना बंद हो गया। मगर 24 मार्च को फिर मिट्टी गिराई जाने लगी। फिर शिकायत की, विरोध जताया। बंद हुआ, मगर फिर 11 अप्रैल को वही बात। इस बार सभी लोगों ने मिल कर जोरदार प्रतिरोध किया। एक मंत्री को भी सूचना दी गयी। लिहाजा अब वहां मिट्टी गिराने का काम बंद है। हालांकि छोटन कुरैशी कहते हैं, उन्हें पैसों का लालच दिया जा रहा है, डराया भी जा रहा है। वे राजद के अकलियत सेल के जिला महासचिव हैं।

जलस्तर गिरा, सूख गये सारे चापाकल

इन तालाबों को खत्म करने की वजह से सबसे बड़ा नुकसान यह हुआ है कि शहर इन दिनों भीषण जल संकट की चपेट में हैं। जलस्तर 187 फीट से भी नीचे चला गया है। चापाकल नाकाम हो गये हैं, 1 एचपी का बोरिंग भी काम नहीं कर रहा। 2005 में शुरू हुआ पाइप लाइन बिछाने का काम आज तक पूरा नहीं हुआ है। शहर में सिर्फ चार टैंकर हैं, जो दरभंगा जैसे बड़े शहर के लिए ऊंट के मुंह मे जीरा साबित हो रहे हैं। अब ले देकर अधिक गहराई वाले कुछ सार्वजानिक हैण्ड पम्प हैं जो काम कर रहे हैं। कवि एवं पूर्व पत्रकार अमिताभ बचन कहते हैं कि दुखद है, शहर फिर भी नहीं चेत रहा।

हताश होकर बैठ गये हैं आंदोलन करने वाले

शहर के एक सामाजिक कार्यकर्ता नारायणजी चौधरी ने 2013 में तालाब बचाओ अभियान की शुरुआत की थी। उन्होंने शहर के तालाबों से संबंधित आंकड़े जुटाए। गरीब तबके के लोग जो इन तालाबों पर सबसे अधिक आश्रित थे, वो इस आंदोलन में शरीक हुए। मगर आज तीन साल बाद, वो हताश होकर कहते हैं, हम लोग एक भी तालाब को नहीं बचा पाये। मेरी निगाह के सामने कम से कम 25 तालाबों को भरा गया। मैंने डीएम से लेकर कमिश्नर तक को, एक-एक घटना की लिखित और तसवीर के साथ जानकारी दी। मगर दुर्भाग्यवश एक मामले में भी कार्रवाई नहीं हुई। नारायणजी चौधरी कहते हैं कि अगर जल संरक्षण का तर्क समझ नहीं आता तो लोग कम से कम धरोहर मान कर ही इनकी रक्षा करें। इनमें से कोई तालाब सौ साल से कम पुराना नहीं। कई तो सदियों पुराने। अगर पुराने भवनों की सुरक्षा महत्वपूर्ण है तो तालाब की क्यों नहीं।

(साभार-प्रभात ख़बर)



पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।


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