दीवाली बिहारे में… बूझे काहे नहीं ‘शाह-बुझक्कड़’

शंभु झा

LALU-NITIshबिहार चुनाव के नतीजों पर आपने काफी विश्लेषण और समीक्षाएं अब तक पढ़ ली होंगी। बड़े बड़े राजनीतिक पंडित, जिनके आकलन और अऩुमान चुनाव में धरे रह गए, अब फिर से नहा-धोकर, शैंपू और तेल-कंघी करके भाषण झाड़ने बैठ गए हैं। मैं बड़ी बातें नहीं करूंगा लेकिन एक सीधा और सच्चा दृष्टांत दूंगा, जिससे आपको अंदाज होगा कि बिहार में महागठबंधन ने इतना बड़ा धमाका कैसे किया और बीजेपी फ्लॉप क्यों हो गई?

नाम- इनायतुल्लाह मकतूम। निवासी- मुजफ़्फ़रपुर, बिहार। फिलहाल- दिल्ली में रहता है। नोएडा में नौकरी करता है। इनायत मुसलमान है तो वो बीजेपी का विरोधी होगा, इस निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए किसी डिग्री-डिप्लोमा की जरूरत नहीं है। लेकिन मैं कुछ और कहना चाहता हूं। इनायत वोट डालने बिहार नहीं गया, लेकिन वो दिल्ली में बैठ कर बिहार में बीजेपी को हारते हुए देखना चाहता था और इसके लिए पर्याप्त मात्रा में बेचैन था। मैंने चुनाव के बीच उससे पूछा था कि नरेंद्र मोदी के प्रति पूर्वाग्रह के अलावा कोई और ऐसा तार्किक कारण है, जिसकी वजह से वो नीतीश को फिर से सीएम बनते देखना चाहता है। इनायत का कहना था कि उसके गांव में कब्रिस्तान को लेकर कई दशकों से समस्या थी। नीतीश सरकार बनने के बाद कब्रिस्तान का मेंटनेंस हुआ, चारदीवारी बना दी गई। इनायत ने दूसरी वजह बताई- दादरी कांड के बाद उसके गांव में एक अदृश्य भय का माहौल बना। लोगों को लगा कि अगर गोमांस की अफवाह-मात्र पर भीड़ किसी मुसलमान के घर में घुस कर उसकी हत्या कर सकती है और केंद्र सरकार के मंत्री उसे दुर्घटना बता सकते हैं तो फिर कुछ भी हो सकता है। दादरी की घटना के बाद बीजेपी नेताओं ने बीफ को लेकर निगेटिव कैंपेन चलाया जिसने नीम पर करेले का काम किया। बिहार में, जहां पहले से गौमांस पर प्रतिबंध है और बिहार के आम मुसलमान को गौमांस पर प्रतिबंध से कोई दिक्कत नहीं है तो फिर वहां बीफ को लेकर हल्ला मचाने का कोई तुक नहीं था। पाकिस्तान में पटाखे फूटने की बात कहने का कोई अर्थ नहीं था।

बकौल इनायत गौमांस को लेकर बीजेपी के हल्ला बोल से अल्पसंख्यकों में ये संदेश गया कि बीजेपी अगर पावर में आई तो मुसलमानों के किचन पर भी नजर रखी जाएगी। मैं अपनी बात कहूं तो मुझे बीजेपी के इस बयान को सुन कर वितृष्णा हुई कि अगर महागठबंधन जीता तो बिहार के शहर-शहर में गौमांस की दुकान खुलेगी। मैंने यह उदाहरण इसलिए दिया ताकि बीजेपी के कैंपेन की लाइन और लेन्थ की तस्वीर का एक कम चर्चित पहलू सामने रखा जा सके। दरअसल बीजेपी ये चुनाव अपनी बेतुकी गलतियों की वजह से हारी। जो लोग कहते हैं कि इस चुनाव में धर्मनिरपेक्षता की जीत हुई और सांप्रदायिकता हारी, वे भी होलसेल में झूठ बेच रहे हैं।

amit shah modiदरअसल, महागठबंधन की राजनीतिक रणनीति जीती, बीजेपी की रणनीति हारी। बात बड़ी सीधी सी है- लालू ने जाति का कार्ड खेला, बीजेपी को लगा कि कास्ट पॉलिटिक्स में वो लालू से जीत नहीं पाएगी। इसलिए उसने धर्म का कार्ड खेला। लालू का कार्ड चल गया। बीजेपी के पत्ते उल्टे पड़ गए। जो लोग लालू से नाराज थे। उन्हें नीतीश के ठोस काम और लो-प्रोफाइल अप्रोच ने बिदकने से रोक लिया। अगर वे जाते भी तो कहां? बीजेपी के पास? जो अंत तक तय नहीं कर पाई कि उसे किस एजेंडे पर इलेक्शन लड़ना है। सवा लाख करोड़ का पैकेज नहीं चला तो तुरंत गियर बदल कर निगेटिव पॉलिटिक्स करने लगे। जंगलराज का डर, गौमांस का डर। लालू बार-बार नीतीश का नाम लेकर ये जताते रहे कि जंगलराज नहीं आएगा, नीतीश का राज चलता रहेगा। गौमांस तो खैर कभी इश्यू था ही नहीं। रही सही कसर आरक्षण वाली ‘भागवत-कथा’ ने पूरी कर दी।

बीजेपी के धुर समर्थक भी आइने के सामने मानते हैं कि बिहार चुनाव में बीजेपी ने अंधे की तरह लाठी भांजी। बीजेपी चुनाव से पहले चुनाव का प्लॉट गंवा चुकी थी। यहां तक प्रधानमंत्री मोदी को भी नहीं मालूम था कि वो क्या बोल रहे हैं। बिहार के जिन गांवों में कांग्रेस और लालू के राज में बिजली के खंबे गाय बांधने के काम आते थे, वहां नीतीश ने बारह-चौदह घंटे तक बिजली सप्लाई करवाई। उन इलाकों में भी मोदी पूछते थे कि बिजली आई कि नहीं? जनता दबी आवाज में बोलती थी—‘आई आई’…लेकिन आत्ममुग्ध प्रधानमंत्री और अति-आत्मविश्वास से परिपूरित अमित शाह बिहार की जनता की आवाज नहीं सुन पाए। कहीं सुन भी लिया तो, समझ नहीं पाए। बिहारी बोली न अमित शाह को मालूम थी, न मोदी को और जिन्हें मालूम थी, वो किनारे कर दिए गए थे।

इसके अलावा बीजेपी ने लाजवाब और हैरान कर देने वाली गलतियां की। केजरीवाल पर पर्सनल अटैक करने का नतीजा दिल्ली में मोदी और शाह की जोड़ी भुगत चुकी थी। इसके बावजूद यही गलती बिहार में दोहराई गई। मोदी-शाह ने बिहार में लालू पर और उनके बेटे-बेटी पर निजी हमले किए। नीतीश के डीएनए तक पहुंच गए। आगे की कहानी आप सब जानते हैं। इसके बाद आठ नवंबर को वही हुआ, जो होना था। जनता ने कहा- अगर आप दिल्ली से आकर बिहार में निगेटिव पॉलिटिक्स ही करेंगे तो इससे अच्छा नीतीश बिहारी है..बाहरी को क्यों चुनें?


sambhuji profile

शंभु झा। महानगरीय पत्रकारिता में डेढ़ दशक भर का वक़्त गुजारने के बाद भी शंभु झा का मन गांव की छांव में सुकून पाता है। फिलहाल इंडिया टीवी में वरिष्ठ प्रोड्यूसर के पद पर कार्यरत। दिल्ली के हिंदू कॉलेज के पूर्व छात्र।

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