बंज़र ज़मीन पर लहलहाएंगी उम्मीदें… चलते रहो साथी

योगेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से

ARUN3सूखा महाराष्ट्र और यूपी ही नहीं बल्कि राजस्थान की धरती का सीना भी चीर रहा है । संवेदना यात्रा के साथियों के साथ यूपी के बाद जब राजस्थान की सीमा में दाखिल हुआ तो गांव बेहाल और बेजान नज़र आये । हर तरफ बंजर धरती और टूटे फूटे घर मानों हमारे सरकारी दावों और वादों को कोस रहे हों। महिलाएं पानी के लिए परेशान हैं, वाटर लेवल इतना नीचे चला गया कि कुआं तो दूर बोरिंग करते-करते महीनों बीत जाएं लेकिन पानी शायद ही नसीब हो। इतनी जद्दोजहद के बाद अगर पानी मिल भी जाए तो उसे इंसान तो क्या जानवर भी पीना नहीं पसंद करेंगे । बिल्कुल खारा, फ्लोराइड युक्त, मतलब एक-एक बूंद में बीमारी भरी पड़ी है ।

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खेत तो नजर आते हैं लेकिन बीरान और बंजर । ऊपर से न कोई मुआवजा न कोई मदद, ऐसे में किसान करे तो क्या करे । दौसा में कुछ महिलाएं पत्थर तोड़ी नज़र आईं, पूछने पर पता चला कि ये सभी इसी गांव की हैं । खेती बर्बाद हो चुकी है लिहाजा घर चलाने के लिए मनरेगा के तहत मजदूरी करती हैं, लेकिन पिछले करीब दो साल से एक फूटी कौड़ी नहीं मिली। आलम ये है कि घर का चूल्हा-चौका चलाना मुश्किल हो गया है । पुरुषों की भी हालत अच्छी नहीं है, पलायन हर घर की कहानी हो गई है। सरकारी योजनाएं तो बहुत हैं, लेकिन न तो इनके पास पेंशन है न जॉब कार्ड । गांव के लोग कहते हैं कि पता नहीं कितनी बार आधार कार्ड की फोटो कॉपी करवाई, लेकिन नौकरी का कहीं पता नहीं चला। जाने कौन सी स्कीम है जो फोटोकॉपी भरवाती तो है पर नौकरी और मजदूरी नहीं देती ।

फोटो- योगेंद्र यादव के फेसबुक वॉल से।

गांव-गांव और गली-गली घूमते हुए 14 अक्टूबर की रात संवेदना यात्रा अलवर के किशनगढ़ पहुंची, जहां खोहा गांव के लोग किसान पंचायत लगाये हुए थे,  लिहाजा हम भी इस पंचायत में शामिल हो लिये । बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो पता चला कि गांव के पास एक पहाड़ी है जहां से गांव के गरीब लोग पशुओं के लिए चारा और चूल्हे के लिए लड़की का इंतजाम कर लेते हैं। ऐसे में ये पहाड़ इनके लिए किसी भगवान से कम नहीं है, लेकिन सरकार इनका ये सहारा भी छीनने पर आमादा है । गांव वालों के मुताबिक रक्षा मंत्रालय यहां DRDO के तहत कोई अनुसंधान केंद्र बनाने की तैयारी कर रहा है। इस इलाके में 450 से ज्यादा हरे-भरे पेड़ है जो अपने कटने की बाट जोह रहे हैं । मतलब पहाड़ और हरियाली की जगह कंकरीट की बनी इमारतें बेहाल किसानों पर अट्टहास करने को बेताब हैं । ऐसा नहीं है कि किसानों ने इसके खिलाफ आवाज नहीं उठाई। 2013 में गांव वालों ने आंदोलन किया लेकिन पुलिसिया डंडे के सहारे इनके अधिकार को कुचल दिया गया । 700 परिवार वाले इस गांव में करीब 2400 वोटर हैं । वोट तो जबरन ले लिया जाता है, साथ ही ले लिया जाता है,  उनकी आजीविका का वो साधन जो इनकी आस्था से भी जुड़ा हुआ है ।

अब सवाल ये है कि शहरों में गोल्फ मैदानों के नाम पर पड़ी भारी-भरकम जमीन को छोड़ रक्षा मंत्रालय राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर किसानों की आजीविका का जरिए बने पहाड़ पर आधिपत्य का तुक क्या बनता है। शेरगढ़ गांव की दशा भी कुछ अच्छी नहीं है । सूखा पड़ा है, फसलें बची नहीं, जानवरों के लिए चारा नहीं । लोग बेहाल हैं। अस्पताल है लेकिन डॉक्टर नहीं, स्कूल में शिक्षा नदारद है, प्रधानजी बारिश की बूंदों की तरह कभी-कभार गांव में टपकते हैं। सरकार से बस उम्मीद की बाट में गांववालों का दिन गुजर रहा है। कुछ ऐसा है इक्कीसवीं सदी का म्हारो राजस्थान । सोचिए कितना बदल रहा है राजस्थान ।

samvedna yatra-1रेवारी के गाँवों में घूमते हुए हम संवेदना यात्रा के अंतिम चरण पर पहुँच गए। इस यात्रा में बहुत कष्ट देखे, किसान को हारते देखा, सूखे की भेंट चढ़ते देहात को देखा, बहुत बार मन निराश हुआ। लेकिन यहाँ अपनी बहनों के एक गीत ने फिर मन में जोश भर दिया। देश की स्वतंत्रता के लिए महात्मा गाँधी, लाला लाजपत राय, नेताजी, राजगुरु, सुखदेव, भगत सिंह – सबको नमन करते इस गीत ने हमें भी जैसे वापिस खड़ा कर दिया। चलना है, उस भारत के निर्माण में कितना भी चलना पड़े चलना है – जिस भारत के लिए इन अमर हस्तियों ने अपना सब न्योछावर किया था।


yogendra yadav

योगेन्द्र यादव। स्वराज अभियान के सदस्य। राजनीति की धारा में बदलाव के लिए सक्रिय। सीएसडीएस के साथ मिलकर सामाजिक -राजनीतिक अध्यययन का लंबा अनुभव। अन्ना आंदोलन के दौरान सक्रिय रहे। अरविंद केजरीवाल के साथ आम आदमी पार्टी के गठन में अहम भूमिका निभाई। इन दिनों स्वराज आंदोलन के जरिए राजनीतिक चेतना की नई जमीन तलाश रहे हैं, संवार रहे हैं। 


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