पीएम की काशी का पानी ‘काला’ है…

रुही कंधारी

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दुनिया के सबसे पुराने शहरों में एक गंगा के किनारे बसे वाराणसी के सांसद नरेंद्र मोदी ने जब से पीएम का पद संभाला है, शहर का राजनीतिक महत्व और कद भी बढ़ गया। हालांकि शहर की गंदगी इस चकाचौंध पर एक काले धब्बे की तरह ही है। पाइपों में रिसाव के कारण सीवेज वाला पानी, शोधित पानी में मिल जाता है। गंगा का पानी पहले से ही बहुत ज्यादा प्रदूषित है, ऐसे में बनारस के लोग पेट संबंधी अनेक बीमारियों के शिकार हो रहे हैं। साफ और बेहतर  जल आपूर्ति के लिए लोगों को अब केवल केंद्र सरकार की योजनाओं पर यकीन है।

बनारस के दुर्गाकुंड में रहने वाले आकाश अपने बाथरूम के नल से आने वाले गंदे पानी को लेकर बेहद सतर्क हैं। 18 साल के आकाश, थोड़ी देर तक गंदे बदबूदार पानी को नल से बहने के लिए छोड़ देते हैं ताकि साफ पानी आ जाए। ये भी पाया गया है कि वहां आने वाला साफ पानी भी सुरक्षित नहीं है। आकाश के परिवारवालों को एक चिकित्सक ने बताया है कि वहां आने वाले साफ पानी में भी सीवेज से आने वाले बैक्टीरिया की कुछ मात्रा आकाश के बार-बार डायरिया से पीड़ित होने का कारण हो सकता है। प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनाव प्रचार के दौरान गंगा की सफाई का वादा किया था। शहर में कई सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स उनकी योजना में शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि गंगा में पानी की कमी जल प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण है और इस ओर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा है।

शहरी विकास मंत्रालय की अक्टूबर, 2013 में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक शहर में कुल जल आपूर्ति में 38 फ़ीसदी हिस्सेदारी गंगा की है जबकि बाकी आपूर्ति 220 ट्यूबवेल्स के जरिये भूमिगत जल से होती है। रिपोर्ट में ये भी बताया गया है कि तकरीबन 69 फ़ीसदी परिसंपत्तियों में ही पानी के कनेक्शन हैं। वहीं, झुग्गी-झोपड़ी वाले इलाकों में केवल 32,900 कनेक्शन हैं जो इस क्षेत्र का 42 फ़ीसदी है। बाकी लोग 352 सार्वजनिक नलों, 750 हैंडपंप्स, 41 ट्यूबवेल्स और 16 मिनी ट्यूबवेल्स पर निर्भर हैं।

बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में भूगोल विभाग के अनुसंधानकर्ताओं का कहना है कि ‘अध्ययनों से स्पष्ट है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अधिकृत प्रति व्यक्ति जल उपभोग मानक और बनारस में वास्तविक जल आपूर्ति में काफी अंतर है।” Ground water in the City of Varanasi, India: present status and prospects शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट में कहा गया है कि शहर को रोजाना 27 करोड़ लीटर पानी गंगा और भूजल से प्राप्त होता है लेकिन शहर की कुल आबादी के तकरीबन पांचवें हिस्से को अभी तक पीने लायक साफ पानी मयस्सर नहीं है।

पुराना बुनियादी ढांचा एक बड़ी समस्या

राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड 2(सीपीसीबी) और बनारस हिंदू विश्वविद्यालय द्वारा वित्त पोषित गंगा अनुसंधान कार्यक्रम के चेयरपर्सन बी. डी. त्रिपाठी के मुताबिक पाइपों में रिसाव के कारण सीवेज वाला पानी, शोधित पानी में मिल जाता है। उनके मुताबिक-”शहर में जल आपूर्ति की प्रमुख साधन वाटर पाइपलाइन हैं जो कई जगहों पर टूटी हुई हैं और सीवर लाइनें उनके बिलकुल बगल में हैं। दिन के वक्त जल के दबाव के चलते सीवेज, साफ पानी में नहीं मिल पाता लेकिन जब रात में पंप बंद हो जाते हैं, दबाव कम हो जाता है तब सीवर वाला पानी, शोधित पानी में मिल जाता है। इसी वजह से सुबह के वक्त बहुत से घरों में सीवर मिला हुआ बदबूदार गंदा पानी आता है।” जवाहर लाल नेहरू नेशनल अर्बन रिन्यूअल मिशन (जेएनएनयूआरएम) के तहत बनारस के लिए तैयार शहरी विकास योजना में भी जल वितरण को प्रमुख समस्या बताया गया है। एक सदी पहले बनी जल आपूर्ति पाइप लाइनों का संचालन और उनका रखरखाव अब बेहद कठिन हो गया है।

एक मीटिंग के दौरान बनारस के मेयर राम गोपाल मोहले
एक मीटिंग के दौरान बनारस के मेयर राम गोपाल मोहले

बनारस के मेयर राम गोपाल मोहले कहते हैं, जल शोधन संयंत्र की अपर्याप्त क्षमता और पर्याप्त जल भंडारण वाली टंकियों की कमी की वजह से शहर में जल आपूर्ति की समस्या बढ़ गई है। फिलहाल, भेलूपुर स्थित जल शोधन संयंत्र गंगा से प्रतिदिन 250 करोड़ लीटर पानी शोधन करता है। दिसंबर, 2014 से फरवरी, 2015 के बीच द् एनर्जी एंड रिसोर्सस इंस्टीट्यूट (टेरी) द्वारा कराये गए एक सर्वेक्षण के मुताबिक बनारस के 80 फीसदी लोग मानते हैं कि गंगा के पानी स्वास्थ्य के लिए मुफीद नहीं है।

बढ़ता गया गंगा में प्रदूषण

 गंगा की धारा में सफाई गुणवत्ता  संकेतक कोलीफॉर्म बैक्टीरिया जनवरी1988 में प्रति 100 मिलीग्राम पानी में 14,300 मापा गया था। यह बढ़कर जनवरी 2008 में 140,000 हो गया और जनवरी, 2014 में यह 24 लाख के बेहद उच्च स्तर तक पहुंच गया।

जल गुणवत्ता का एक अन्य मानक बॉयोकेमिकल ऑक्सीजन डिमांड (बीओडी) है। बीओडी, कार्बनिक पदार्थों को तोड़ने के लिए जरूरी घुलित ऑक्सीजन की वह मात्रा है, जिसकी जैविक प्राणियों को  जरूरत होती है। अपशिष्ट जल शोधन संयंत्रों की प्रभावशीलता जांचने या किसी जलाशय में कार्बनिक प्रदूषण, जैसे सीवेज की मात्रा का पता लगाने में इसे एक मापक के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। आदर्श रूप में, बीओडी पीने वाले पानी के स्रोत के रूप में कीटाणुशोधन के बिना प्रति लीटर पानी में 2 मिलीग्राम से कम होना चाहिए। इस साल अप्रैल में दर्ज आंकड़ों के हिसाब से गंगा जब वाराणसी में प्रवेश करती है तब बीओडी प्रति लीटर पानी में 2.8 मिलीग्राम है और गंगा जब वाराणसी से बाहर निकलती है तो ये बीओडी बढ़कर प्रति लीटर 4.9 मिलीग्राम पाई गई। इससे पता चलता है कि बहुत बड़ी मात्रा में शहर का अशोधित सीवेज नदी में डाला जाता है। शहर की आबादी बढ़ने के साथ-साथ भूजल पर निर्भरता भी बढ़ती जा रही है। साथ ही जल प्रदूषण भी बढ़ता जा रहा है। दिक्कत ये है कि घरों और उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्टों को शहर के निचले हिस्सों में नष्ट किया जाता है जहां भूजल को दोबारा रिचार्ज करने वाले कई टैंक और तालाब मौजूद हैं। इन अपशिष्ट से निकलने वाले खतरनाक रसायन और बीमारी फैलाने वाले बैक्टीरिया धीरे-धीरे भूजल में समाहित हो रहे हैं।

इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस, बीएचयू में असिस्टेंट प्रोफेसर ललित प्रशांत के मुताबिक हर हफ्ते डायरिया से पीड़ित कई मरीजों उनके पास इलाज के लिए आते हैं। ”इन मरीजों में सबसे बड़ी समानता ये होती है कि ये सभी अशोधित पानी के शिकार हैं। दूषित पानी के कारण दस्त तक का इलाज तो स्थानीय चिकित्सक कर लेते हैं लेकिन ज्यादा परेशानी होने पर वे  इंस्टीट्यूट रेफर कर देते हैं।”  ये सभी बैक्टीरिया के इंफेक्शन से ग्रस्त होते हैं। बनारस में पीने से होने वाली बीमारियों से बचने के लिए लोग निजी जल शोधन प्रणाली अपनाने पर मजबूर हो गए हैं। वाराणसी में निजी तौर पर जल शोधन का काम करने वाले सागर का कहना है, एक दशक पहले यहां केवल दो कंपनियां लोगों को साफ पानी सप्लाई कर रहीं थीं, अब तकरीबन 30 कंपनियां ये काम कर रही हैं।

वैसे, मेयर मोहले ने वाराणसी महानगर पालिका को निर्देश दिया है कि वो शहर के बुनियादी ढांचे की बेहतरी के लिए निजी कंपनियों के साथ मिलकर प्रस्ताव तैयार करें जिसमें जल आपूर्ति, सीवरेज और स्टार्म वाटर ड्रेन्स शामिल हैं। केंद्र सरकार ने भी हाल ही में जापान सरकार से बनारस में बुनियादी सुविधाओं के आधुनिकीकरण में सहयोग मांगा है। अगस्त-सितंबर, 2014 में प्रधानमंत्री मोदी की जापान यात्रा के दौरान वाराणसी और क्योटो के बीच एक पार्टनर सिटी एफिलिएशन एग्रीमेंट पर हस्ताक्षर हुए। आधुनिकीकरण में जल प्रबंधन और सीवेज सुविधा को उन्नत करना, अपशिष्ट प्रबंधन और शहरी परिवहन शामिल हैं।

साभार- http://www.thethirdpole.net

ruhi kandhariरुही कंधारी। द इकॉनामिक टाइम्स, तहलका, डाउन टू अर्थ के बैनर के साथ पत्रकारीय संबंध रहे हैं। दिल्ली यूनिवर्सिटी, एशियन स्कूल ऑफ जर्नलिज्म (चेन्नई) से पढ़ाई। लंदन स्कूल ऑफ इकॉनामिक्स एंड पॉलिटिकल साइंस की स्टुडेंट रही हैं।


गंगा का आंगन बुहारती पूर्वोत्तर की बेटियां