पंचायत चुनावों में बगहा का गांव चर्चा में क्यों है?

पुष्यमित्र

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सर्वसम्मति से चुनी गयीं महिला प्रतिनिधि

जहां इन दिनों बिहार का हर गांव पंचायत चुनाव की गहमा-गहमी में डूबा है, पश्चिम चंपारण के बगहा-2 प्रखंड में रहने वाली थारू जनजाति के लोगों ने अपनी पंचायत के लिए सर्वसम्मति से मुखिया-सरपंच से लेकर वार्ड सदस्य और पंचों तक का चुनाव कर लिया। ऐसा उन्होंने अपनी प्राचीन व्यवस्था के नायकों गुमाश्ता और मलिकारों की मदद से किया है। इस तरह से बगहा का देवरिया तरुअनवां बिहार में दूसरी पंचायत है, जहाँ लोगों ने अपने प्रतिनिधि सर्वसम्मति से चुने हैं। बिहार सरकार ने ऐसे पंचायतों को एक लाख रुपये का इनाम देने की घोषणा पहले ही कर रखी है।

बगहा-2 प्रखंड के थरुअट इलाके में घुसते ही कई जगह तरुअनवां की चर्चा सुनाई देती है। जब हम देवरिया तरुअनवां पंचायत की मुखिया श्रीमती देवी के दरवाजे पर पहुंचते हैं तो आनन-फानन में लोगों का जमघट लग जाता है। लोग बताते हैं कि सुबह ही टीवी वाले आकर गांव की कहानी शूट करके गये हैं। मुखिया के पुत्र संजय कुमार हमें इस सर्व सम्मति की कहानी सुनाने लगते हैं।

देवरिया तरुवनवां पंचायत की नई टीम

मुखिया- श्रीमती देवी. सरपंच – भगवंती देवी. पंचायत समिति सदस्य- रेणु देवी. वार्ड- 1 रोहित राम. वार्ड 2- नील. वार्ड 3-सिमली देवी. वार्ड 4- आशा देवी. वार्ड 5- रुनझुना देवी. 6- चन्द्रावती देवी. 7- आनंद पटवारी. 8- प्रेमनाथ ओजहिया. 9- कृष्ण देव काजी. 10- देवेंदर महतो. 11- बेबी कुमारी देवी. 12- बिरेंदर पटवारी. 13- ब्रह्मदेव महतो.

छह गांवों के गुमाश्ता 

पाडर खाप- हरि काजी. बरवा कला – राजदेव महतो. तरुवनवां – नन्द किशोर महतो. देवरिया- राम केवल काजी. कुनै लक्ष्मीपुर-शेषनाथ बड घरिया. भेलाही- चितरंजन महतो.

वे कहते हैं कि थारू समुदाय के लोग हमेशा से अपने गांव के चयनित नायकों गुमाश्ता और मलिकारों की मदद से अपना-शासन प्रशासन चलाते रहे हैं। हम इनका भी समय-समय पर बैठ कर चुनाव करते हैं, तो इस बार हमने सोचा कि क्यों न पंचायत प्रतिनिधियों का चयन भी इसी तरह कर लिया जाये। चूंकि गांव में थारू समुदाय के लोगों की संख्या काफी अधिक है, इसलिए ऐसा करने में सहूलियत हुई।

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पंचायत की सभा जिसने प्रतिनिधियों को सर्वसम्मति से चुना

इसकी शुरुआत भारतीय थारू कल्याण महासंघ की ओर से हुई। संघ के अध्यक्ष दीप नारायण प्रसाद कहते हैं कि हमने अपील की कि थारू गांव में सर्वसम्मति से पंचायत प्रतिनिधि चुने जाएं, ताकि हमारी एकजुटता नज़र आये। इस अपील का देवरिया-तरुअनवां के लोगों ने स्वागत किया। वे कहते हैं, खास कर देवरिया के लोगों ने इसे प्रण बना लिया और त्याग करते हुए तरुअनवां के लोगों को ही मौका दिया। सरपंच पद की प्रत्याशी लोगों को पसंद नहीं थी। मगर लोगों ने उसे इस वजह से दुबारा मौका दिया कि वह पद छोड़ने के लिए तैयार नहीं थी और कह रही थीं कि वे हर हाल में चुनाव लड़ेंगी।

पंचायत के छह गांवों में पहले गुमाश्ता और मलिकारों ने मिल कर अपने प्रतिनिधि चुने। फिर पंचायत स्तर पर बैठ कर इन गुमाश्ताओं और मलिकारों ने सूची फाइनल कर ली। रोचक यह है कि इन लोगों ने ज्यादातर ऐसे लोगों को ही मौका दिया, जो पिछले चुनाव में जीत कर आये थे। सिर्फ उन्हीं पदों पर नये लोगों को मौका मिला है, रोटेशन की वजह से जो पद आरक्षित या अनारक्षित हो गया हो। जैसे, एक वार्ड सदस्य का पद महिला के लिए आरक्षित हो गया तो पूर्व वार्ड सदस्य की पत्नी को उनकी जगह दे दी गयी।

क्या है गुमाश्ता-मलिकार पद्धति

थारू जाति के लोग हर गांव में अपने लिए एक गुमाश्ता चुनते हैं। वह गुमाश्ता झगड़े और विवादों का निबटारा तो करता ही है, गांव में सामूहिक श्रमदान से कुछ विकास के कार्य भी संपन्न कराता रहा है। गुमाश्ता अपनी मदद के लिये मलिकारों की टीम चुनता है, जिनकी संख्या 20 से 25 तक होती है। रोचक यह है कि गुमाश्ता का पद दूसरे आदिवासी की तरह खानदानी नहीं है। समाज के लोग साल दो साल में परफोर्मेंस के आधार पर गुमाश्ता और मलिकार बदल देते हैं।

आम तौर पर इस फ़ैसले की सराहना हो रही है। इन गांवों के कई लोग भी सहमति जताते हैं और कहते हैं कि चुने गये लोगों ने पिछले टर्म में भी काफी अच्छा काम किया है। मगर बगहा के कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं का कहना है कि ये सही है कि आरक्षण की वजह से कई महिलाओं को जगह मिल गयी है, मगर गुमाश्ता और मलिकारों की निगाह में महिलाओं का अधिक मोल नहीं है। तभी तो आज तक किसी गांव में गुमाश्ता या मलिकार कोई महिला नहीं है। लोग इस बात की भी आशंका जताते हैं कि गुमाश्ता और मलिकारों ने पैसे लेकर फैसला सुना दिया होगा। पिछले विधानसभा चुनाव में भी इन लोगों पर प्रत्याशियों से पैसे लेकर वोट का सौदा करने के आरोप लगे हैं। इस बार जिला परिषद का चुनाव लड़ रहीं कुसुम देवी गुमाश्ताओं की प्रणाली पर सवाल उठाते हुए कहती हैं कि जायज हक की लड़ाई लड़ने की वजह से उन्हें थारू समाज से बाहर कर दिया गया।

(साभार-प्रभात ख़बर)

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पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।


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