न्यूक्लियर प्लांट के ‘भयावह’ सच को ‘लीक’ करने की अंतहीन सज़ा

kakrapar

कुछ दिन पहले 11 मार्च को गुजरात में मौजूद काकरापार न्यूक्लियर प्लांट में लीकेज की ख़बर आई थी लेकिन इस ख़बर को मुख्यधारा की मीडिया ने चलते फिरते अंदाज में निपटा दिया। सचाई यह है कि ये फुकुशिमा जैसा ही खतरा हो सकता था जो कुछ संयोगों के चलते टल गया। सवाल ये है कि हमारे न्यूक्लियर प्लांट कितने सुरक्षित हैं ? आज से करीब 22 साल पहले भी एक ऐसा ही हादसा होते-होते रह गया था। इसके बारे में हमें ख़बर भी नहीं होती अगर मनोज मिश्रा नाम के एक शख्स ने देश को आगाह नहीं किया होता। लेकिन आगाह करने की कीमत मनोज मिश्रा को आज तक चुकानी पड़  रही है। एक नौजवान कर्मचारी ने ‘गोपनीयता’ की बजाय सामाजिक जिम्मेदारी को ज्यादा तवज्जो दी। काकरापार परमाणु ऊर्जा केंद्र के बर्खास्त कर्मचारी मनोज मिश्रा से तमाम मसले पर बात की पत्रकार विश्वदीपक  ने।

विश्वदीपकमनोजजी, काकरापार परमाणु केंद्र में हालिया लीकेज के बाद एक बार फिर परमाणु ऊर्जा के ख़तरे की बात चल रही है। ऐसे में आपका जिक्र भी हो रहा है। मैं पूरी घटना के बारे में आपसे जानना चाहूंगा कि आखिर हुआ क्या था?

20160329_152303मनोज मिश्रा मैं 1989 अक्टूबर में  बतौर ट्रेनी मेरा अप्वाइंटमेंट हुआ। दो साल तक मेरा ट्रेनिंग पीरियड चला। न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन का ट्रेनिंग सेंटर मद्रास और कलपक्कम में है। वहां मैंने ट्रेनिंग ली। जब कार्पोरेशन को लगा कि मेरी ट्रेनिंग संतोषजनक है, तब मेरी पोस्टिंग की गई। 1991 अक्टूबर में काकरापार में मेरी स्थायी नौकरी लग गई। शुरुआत भर्ती प्लांट ऑपरेटर के तौर पर हुई। बाद में केमिकल लैब में टेक्नीशियन के तौर पर काम कर रहा था। 1989 अक्टूबर से लेकर 1996 मार्च तक काकरापार में रहा।

1993 में डिपार्टमेंट ऑफ न्यूक्लियर पॉवर कार्पोरेशन द्वारा मान्यता प्राप्त यूनियन में जनरल सेक्रेटरी का चुनाव जीता। मुझे 80 प्रतिशत वोट मिले। मैं ग्रेड थ्री में काम कर रहा था। 15-16 जून 1994 में वहां तेज बारिश हुई। मोतीचेयर लेक में पानी ज्यादा हो गया। टरबाइन बिल्डिंग में 25 फीट पानी भर गया। अच्छा ये था कि उस दिन प्लांट बंद था। यूनियन ने सवाल उठाया कि इतनी बड़ी लापरवाही कैसे हो गई ? मैंने मैनेजमेंट को बोला। इसको पब्लिक करो तो मुझसे कहा गया कि शांत रहो।

विश्वदीपकतो क्या आपने तब चुप्पी साध ली थी? आखिर मैनेजमेेंट इस मामले में पर्देदारी क्यों कर रहा था?

20160329_161510मनोज मिश्रा– दरउसल, उस समय तक चेर्नोबिल की घटना हो चुकी थी और मेरे पास इसकी जानकारी थी। मैं उस अनुभव से डरा हुआ था। मुझे लगा कि पब्लिक को अलर्ट करना जरूरी है। न्यूक्लियर प्लांट है कुछ भी हो सकता है। कोई बड़ा हादसा हो सकता है। सूरत जिले और आस-पास के लोगों को पता लगना चाहिए कि पॉवर प्लांट में हो क्या रहा है?

पानी भरने के तीन दिन बाद 18 जून 1994 जनरल सेक्रेटरी की हैसियत से मैंने मीडियो को पूरे हालात के बारे में ब्रीफ कर दिया। मीडिया को लिखित में पूरी जानकारी दे दी। मीडिया की टीम 20 तारीख को प्लांट पहुंची लेकिन अधिकारियों ने मीडिया वालों से बात नहीं की और पूरे मामले को दबा दिया। नियम के मुताबिक अगर साइट इमरजेंसी होती है जो कि इस केस में 15 जून को की गई थी तो डीएम को इसकी जानकारी देनी होती है। 22 जून को गुजरात समाचार में ये स्टोरी आई। तब जाकर सूरत के कलेक्टर को इस बारे में पता लगा। जबकि होना ये चाहिए था कि 15 जून को ही कलक्टर को बताया जाना चाहिए था।

विश्वदीपकआपने अधिकारियों की मर्जी के ख़िलाफ़ जाकर जो बयानबाजी की, उसका असर क्या हुआ?

मनोज मिश्रा– होना क्या था? इसके बाद  सस्पेंड कर दिया गया मुझे कि आपने मीडिया को लेटर लिखकर क्यों दिया ? उस वक्त डायरेक्टर जे बी कलैया थे। जी वामन राव के सिग्नेचर से मैं सस्पेंड हुआ था। वो सीनियर मैनेजर personal and relationship) थे।

मीडिया से बिना अधिकार के बात करने और गोपनीयता के उल्लंघन के आरोप में मेरे ख़िलाफ़ जांच बिठा दी गई। सरकारी एजेंसीज मेरे ख़िलाफ़ लग गईं। अगले डेढ़ साल तक मुझे बहुत तंग किया गया। उस वक्त के सीएमडी वाईएस आर प्रसाद से मैंने बात की। उन्होंने कहा कि पहले यूनियन से रिजाइन करो, फिर कुछ करते हैं। मैंने परेशान होकर जैसा प्रसाद ने कहा वैसा ही किया। उस वक्त मेरी उम्र 26 साल के करीब थी। शादी वगैरह की बात चल रही थी तो मैंने भविष्य को ध्यान में रखते हुए प्रसाद की बात मान ली। उन्होंने मुझसे कहा कि चार्ज स्वीकार कर लो। तब हम जांच में लीनिएंट (नरम) रवैया अपनाएंगे।मार्च 1996 में जांच कमेटी की रिपोर्ट आई, चूंकि मैंने चार्ज स्वीकर कर लिए थे इसलिए मुझे टर्मिनेट कर दिया गया।

विश्वदीपक–  काकरापार न्यूक्लियर प्लांट के मैनेजमेंट ने आपको खिलाफ़ जो कार्रवाई की उसे लेकर आप कोर्ट में गए ?

20160329_161555मनोज मिश्रा– मुझे ट्रैप किया गया था। डिपार्टमेंटल अपील के बाद मैं सीधे गुजरात हाईकोर्ट गया। ये मेरी गलती थी। पहले मुझे लेबर कोर्ट में जाना चाहिए था। अप्रैल 1997 में केस एडमिट हुआ और 31 जनवरी 2007 को हाईकोर्ट का फैसला आ गया। यहां पर भी मेरे वकील ने मुझे धोखा दिया। मुझे बताए बग़ैर मेरे वकील ने फैसले की तारीख फिक्स कर ली थी। जाहिर सी बात है मेरे ख़िलाफ़ फैसला आया। इसके बाद मैं सुप्रीम कोर्ट गया। मई 2010 में सुप्रीम कोर्ट में मामले की अपील पर सुनवाई शुरू हुई। यहां भी बहस चलती रही लेकिन कोर्ट ने मेरे ख़िलाफ़ फ़ैसला दिया। सुप्रीम कोर्ट ने भी यही कहा कि अगर आपने चार्ज स्वीकार कर लिया है तो फिर क्या सुनवाई की जाए? 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने भी मेरे खिलाफ फ़ैसला सुनाया।

विश्वदीपकये एक बड़ी लड़ाई आपने लड़ी जो आप लगभग हार चुके हैं? अब एक बार फिर लीकेज की ख़बरें आ रही हैं। आपके जेहन में शायद कई बार पुराने दिन कौंधते हों?

20160329_152232मनोज मिश्रा– काकरापार प्लांट में दो रिएक्टर लगे हुए हैं, 220 मेगावाट के। उस समय यूनिट –2 चल नहीं  रही थी।  पानी भरने के वक़्त किन्ही कारणों से प्लांट बंद था। सब मिलाकर 1100-1200 कर्मचारी होंगे उस वक़्त। आज भी लगभग यही संख्या होगी। स्थायी कर्मचारी रहे होंगे करीब 700-800। तीन किलेमोटर के दायरे के बाद गांव शुरू हो जाते हैं। पेडुमल कस्बा वहां से थोड़ी दूर है, जहां पर कर्मचारी रहते हैं।

उस समय लीकेज नहीं हुआ था लेकिन इस बार जो हो रहा है वो लीकेज है। जैसे 11 मार्च 2011 को फुकुशिमा में हुआ था, वैसे ही 11 मार्च 2016 को काकरापारा में सुबह 8.30 बजे PHT (PRIMARY HEAT TRANSFER SYSTEM) में हाईवाटर लीकेज हुआ। प्रेशर ट्यूब और कलेंडियर ट्यूब के बीच में रोल ज्वाइंट होता है। वहां ही लीकेज हुआ। जबकि कुछ पूरा कूलिंग सिस्टम बदला गया था।

11 मार्च 2011 को हुए फुकुशिमा हादसे के बाद तत्कालीन मनमोहन सिंह सरकार ने सेफ्टी रिव्यू कमेटी बनाई। इसके बाद मार्च 2011 में बनी रिव्यू कमेटी ने हर साइट का दौरा किया। रिव्यू के दौरान कमेटी ने माना कि 1994  में काकरापार में बाढ़ थी और उसकी वजह से बड़ा हासदा हो सकता था। मेरा मानना है कि न्यूक्लियर प्लांट में करप्शन होता है। कौन सामान कितने का आया, कितने का लगा, कब तक उससे बिजली बनेगी और बनेगी भी या नहीं – ये किसी को नहीं पता। गोपनीयता के नाम पर नहीं बताया जाता। ये गलत है। आपको बताएं कि करीब-करीब 500 से 600 करोड़ का खर्चा आता है कूलिंग सिस्टम बदलने का। जब एक बार कूलिंग सिस्टम बदला जाता है तो माना जाता है कि कम से कम 20 साल तो चलेगा ही।  लेकिन यहां तो पांच-छह साल में ही लीेकेज हो गया। इसका मतलब है कि सामान घटिया लगाया गया था। मेरा सवाल यही है कि लीकेज हुआ कैसे ?

विश्वदीपकअब आपका अगला कदम क्या होगा ?

मनोज मिश्रा– मैं एक बार फिर से कोर्ट में जाने के बारे में विचार कर रहा हूं। वकीलों से सलाह ले रहा हूं। क्यूरेटिव पिटीशन दायर करने के बारे में भी सोच रहा हूं। मैं मानवाधिकार आयोग जाऊंगा, मंत्रालयों में जाऊंगा, पीएमओ में शिकायत दर्ज कराऊंगा। मेरी रोजी रोटी छिन गई है। मेरे बच्चे दो कमरे के घर में रहते हैं। उनकी पढ़ाई लिखाई तबाह हो गई है। मेरी और मेरे परिवार की जिंदगी तबाही के कगार पर पहुंच चुकी है। बताइए मैं क्या करूं ? मुझे इंसाफ़ चाहिए और मैं तब तक इसके लिए लड़ता रहूंगा जब तक ये नहीं मिलता। मैंनेे देश की भलाई के बारे में सोचा और उसकी सज़ा मुझे ही भुगतनी पड़ रही है।


VISHWA DEEPAK-1विश्वदीपक। आईआईएमसी के पूर्व स्टुडेंट। डॉयचे वेले, बीबीसी जैसे अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों से जुड़े रहने का अनुभव। आजतक, न्यूज़ नेशन जैसे चैनलों में काम किया। जनसत्ता, अहा ज़िंदगी, द कारवां समेत कई अख़बारों, वेबसाइट, पत्रिकाओं में जनपक्षधर मुद्दों पर लेखन। कन्हैया की गिरफ़्तारी और जेएनयू को देशद्रोही ठहराए जाने के ख़िलाफ़ वैचारिक प्रतिरोध जताते हुए ज़ी न्यूज़ से इस्तीफ़ा।


 

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