नवाबों के शहर में ‘बड़े मंगल’ का बड़ा पैग़ाम

जयंत कुमार सिन्हा

सभी फोटो- जयंत कुमार सिन्हा
सभी फोटो- जयंत कुमार सिन्हा

तमीज, तहजीब के शहर को खूब भाते हैं वीर हनुमान। लखनऊ के मिजाज के बारे में आप जितने अनुमान लगाएं, उससे बीस साबित होता है ये शहर। गंगा-जमुनी से दो कदम आगे बढ़कर है लखनवी संस्कृति। वैसे तो साल के ग्यारह माह ये तेरा, ये मेरा करते गुजर जाएं, जेठ माह ‘हम सबका’ बन जाता है। लखनऊ के बाशिंदों को जेठ मास ले कुछ खास लगाव है। हिन्दू -मुस्लिम के भाईचारा का अनूठा संगम होता है इस माह।

hanuman bhandara-1जेठ माह मतलब बड़ा मंगल। बड़ा मंगल सिर्फ हिन्दू धर्म की आस्था का प्रतीक ही नहीं है बल्कि विभिन्न धर्मों के लोगों की इसमें आस्था है। बड़ा मंगल पर भंडारों की परंपरा सालों से चली आ रही है और इसमें हिन्दू, मुस्लिम, सिख और ईसाई सभी धर्मों के लोग बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं। इस परम्परा की शुरुआत लगभग 400 साल पहले मुगलशासक ने की थी। नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हुआ। उनकी बेगम रूबैया ने उसका कई जगह इलाज कराया लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के पुराने हनुमान मंदिर आईं। पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने कहा, बेगम रूबैया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड़ गयीं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। तब बेगम रूबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। जीर्णोद्धार के समय लगाया गया प्रतीक चांदतारा का चिन्ह आज भी मंदिर के गुंबद पर चमक रहा है। मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ माह में पडऩे वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़धनिया (भुने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद) बंटवाया और प्याऊ लगवाये थे। तभी से इस बड़े मंगल की परंपरा की नींव पड़ी।

hanuman bhandara-3बड़ा मंगल मनाने के पीछे एक और कहानी है। नवाब सिराज-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उसे हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है। सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिये आलिया ने हनुमानजी की मूर्ति मंगवाई। हनुमानजी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी। मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया और फिर उस स्थान से नहीं उठा। आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शरू कर दिया, जो आज नया हनुमान मंदिर कहा जाता है। मंदिर का निर्माण ज्येष्ठ महीने में पूरा हुआ। मंदिर बनने पर मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करायी गयी और बड़ा भंडारा हुआ। तभी से जेठ महीने का हर मंगलवार बड़ा मंगल के रूप में मनाने की परंपरा चल पड़ी। चार सौ साल पुरानी परंपरा पूरी आस्था और विश्वास के साथ जारी है।

hanuman bhandara-2सुबह-सुबह गली, चौक-चौराहे, कॉलोनी… यहाँ तक की सरकारी दफ्तरों के गेट पर पंडाल लगने का सिलसिला शुरु हो जाता है। साउण्ड सिस्टम से हनुमान स्तुति की धुन भंडारे के शुरु होने के संकेत बन गई है। समय के साथ भोग और भंडारे के आयोजन मे परिर्वतन भी होता चला गया। गुड़धनिया चूर्ण की जगह पूरी-सब्जी, चावल-छोला, बुँदी-शरबत, कचौड़ी और सुविधानुसार वस्तुओं ने अपनी जगह बना ली।
लखनऊ की आबो-हवा सबका साथ वाली है। बड़े मंगल का आयोजन अमीनाबाद और नक्खास जैसे स्थानों पर होना आपसी प्रेम और भाईचारे का गवाह है। गैरतलब है कि इन दोनों जगह पर हिंदू -मुसलमान लगभग बराबर की तादाद में है। दोनों समुदायों के सहयोग से चलता है, पूरे जेठ माह के हरेक मंगलवार को भंडारा। और तो और अमीनाबाद के हनुमान मन्दिर में स्थित कुएं से सालो भर पानी लेते हैं हिंदू -मुस्लिम कारोबारी और दुकानदार।  जिला प्रशासन और नगर निगम भी पूरी मुस्तैदी के साथ बड़े मंगल की तैयारी में लगे रहते हैं। अखबार, एफएम रेडियो शहर में होने वाले बड़े आयोजन की सूचना देते हैं।

हनुमान सेतु मंदिर व्यवस्थापक मंडल (जेबी चैरिटेबल ट्रस्ट) ने अमीर-गरीब, जात-बिरादरी को एक सिरे से खारिज कर हरेक जन तक पहुंचने के लिए काम किया। पिछले छत्तीस साल से हरेक मंगलवार को हनुमान दरबार में माथा टेकने आते उमा शंकर शुक्ला जो पेशे से पीएस (भारतीय रेल) हैं, के मुताबिक एक गरीब यहां तक कि रिक्शावाला भी इस विशाल हनुमान मंदिर की सजावट, भगवान के वस्त्र, भोग करवा सकता है। यह जरूरी नही कि रिक्शा चालक लाख-करोड़ लाए। अगर उसका सामर्थ्य सौ रुपये का है, तो वही स्वीकार्य होता है, और उस दिन का भोग या सजावट उसके नाम से की जाती है।

hanuman gandgi26 जनवरी 1967 से स्थापित हनुमान सेतु मन्दिर द्वारा होमियोपैथिक अस्पताल में रोगियों का मुफ्त इलाज, सुबह-शाम गरीब लोगों में मुफ्त भोजन वितरण। वेद कर्म-काण्ड संस्थान के तहत प्रदेश के साथ-साथ अन्य प्रदेशों से आये बच्चों को निशुल्क आवासीय शिक्षा व्यवस्था दी जाती है। बात-चीत के दरम्यान महंतजी ने बताया कि मन्दिर द्वारा रोगियों को आर्थिक मदद भी की जाती थी। डाक्टर या अस्पताल के लिखने पर कई मरीज को 5000 रूपये तक की तत्काल मदद मुहैया कराई गई। परन्तु कुछ लोगों ने फर्जी तरीके से प्रधान, अस्पताल या डाक्टर के पर्चे लाकर गुमराह किया, जिसके बाद आर्थिक सहायता को बंद कर दिया गया।

बहरहाल, बजरंग बली का पूजन और उनका नवाबी घरों से ताल्लुकात, देश ही नहीं दुनिया को श्रद्धा और सौहार्द का संदेश देता है। ये और बात है कि मोहब्बत के इस संदेश में स्वच्छता का पैगाम कई बार अपनी जगह नहीं बना पाता। शहर भर में एक साथ होने वाले बड़े मंगल के भंडारे के बाद प्लास्टिक के ग्लास-प्लेट से चारों तरफ गंदगी फैल जाती है।


jayant profileजयंत कुमार सिन्हा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल के पूर्व छात्र। छपरा, बिहार के मूल निवासी। इन दिनों लखनऊ में नौकरी। भारतीय रेल के पुल एवं संरचना प्रयोगशाला में कार्यरत। 


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One thought on “नवाबों के शहर में ‘बड़े मंगल’ का बड़ा पैग़ाम

  1. Bahut badhiya jayant, aapne andar ke patrakar ko issi tarha jeevit rakhsakte ho. Badhai.

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