नई राहों पर कदम दर कदम ‘बदलाव’

कीर्ति दीक्षित के साथ बच्चे और उनके अभिभावक। किस्सागोई का आनंद लेते हुए।
कीर्ति दीक्षित के साथ बच्चे और उनके अभिभावक। किस्सागोई का आनंद लेते हुए।

बदलाव बाल क्लब की गतिविधियों का दौर जून के दूसरे हफ़्ते में भी जारी है। 12 जून, रविवार को बच्चों के बीच थोड़ा वक्त पत्रकार और लेखिका कीर्ति दीक्षित ने गुजारा। कीर्ति दीक्षित ने बच्चों के साथ पहेली का खेल खेला। तो वहीं उन्हें कहानियां भी सुनाईं। कीर्ति दीक्षित ने बच्चों को कुछ रचनात्मक लेखन के लिए भी प्रेरित किया। उन्हें दिल्ली से सटे गाजियाबाद में बाल क्लब की गतिविधियां देखकर खुशी हुई। उन्होंने कहा कि नेट, व्हाट्स एप और टेलीविजन में ज्यादा वक्त गुजार देने वाले इस दौर में बच्चों के साथ सीधे संवाद की ये कोशिश एक सार्थक दिशा में की गई पहल है।

मेरी चारधाम यात्रा- दूसरी किस्त

गौरिका शर्मा, अपने चार धाम यात्रा के अनुभव बाल क्लब के अपने साथियों के साथ साझा करते हुए।
गौरिका शर्मा, अपने चार धाम यात्रा के अनुभव बाल क्लब के अपने साथियों के साथ साझा करते हुए।

यमुनोत्री दर्शन के बाद 24 मई, मंगलवार को हमलोग गंगोत्री की ओर निकल पड़े। वहां से गंगोत्री की दूरी करीब 250 किलोमीटर है। वैसे तो मैदानी इलाके में 5 से 6 घंटे लगते लेकिन पहाड़ी इलाके में इतना ज्यादा वक्त लगेगा, हमें नहीं पता था। हमें तो श्रीनगर में रुकना पड़ा क्योंकि रात बहुत हो गई थी। ड्राइवर अंकल ने बस आगे चलाने से मना कर दिया था।

अगली सुबह 5-6 के करीब हमलोग गंगोत्री के लिए निकले। हम लोगों ने रास्ते में लैंड स्लाइड होते हुए देखा। और तो और हमें लैंड स्लाइड वाले रास्ते से ही गुजरना भी पड़ा। तभी मैंने देखा, एक छोटा सा बादल पहाड़ पर अपने झुंड से अलग होकर फंस गया था। अंधेरा हो गया था। हम लोग लैंड स्लाइड वाले रास्ते पर ही थे। हमारे बगल में एक और बस थी। उसे हमारे बस वाले अंकल ने उसे ओवरटेक करना चाहा। हमलोग एकदम खाई की ओर जाते से लगे, मगर अंकल ने बस को संभाला। एक तरफ का पहिया एकदम किनारे से निकला। हम सब को झपकियां आ रहीं थीं, अचानक सबके मुंह से चीख निकल गई। सब डर गए। उसके बाद तो किसी की भी आंख नहीं लगी।

गंगोत्री पहुंचे तो वहां काफी तेज बारिश हो रही थी। कुछ लोग बरसाती पहुंच कर अपने होटल में आए। हमारे चार कमरे बुक थे। हम अपने-अपने कमरे में जाकर सो गए। हमारे होटल के सामने ही गंगोत्री का मंदिर था। हमने सुबह स्नान कर दर्शन किया। मुझे एक चीज बहुत अच्छी लगी कि वहां चढ़ाई नहीं करनी थी। अगले दिन सभी बड़े लोग और हमारे बड़े भाई लोग गौमुख की ओर चल पड़े। हम सब बच्चे होटल में दादा-दादी के साथ थे। हमने बहुत मस्ती की।

अगले दिन शाम को वो सब लोग वापस आए। उन्होंने हम सब लोगों को सारी बातें बताईं। जितने भी लोग वहां गए थे, वो भोजबासा में रूके। वहां का नाम भोजबासा इसलिए पड़ा क्योंकि वहां भोजपत्र बहुत हैं। सबसे अच्छी और यादगार चीज जो मैं वहां से लेकर आई, वो बालगोपाल के दर्शन थे। जब हम लौट रहे थे, तब शिवलिंग पर्वत को दूर से देख रहे थे, तभी हमें ये दिव्य आकृति नज़र आई। 


गौरिका शर्मा। बदलाव बाल कल्ब की सदस्य। डीएवी पब्लिक स्कूल की क्लास 6 की छात्रा।

रविवार को दूसरे दौर में कीर्ति दीक्षित बदलाव के सीनियर ग्रुप के साथियों से मुखातिब हुईं। उन्होंने कहा कि लेखन के साथ-साथ फील्ड वर्क की ओर भी टीम बदलाव को मुखातिब होना होगा। समस्याओं पर बात करने के साथ-साथ उनके समाधान की पहल भी करनी होगी। उन्होंने इस दिशा में अपनी एक वेबसाइट का भी जिक्र किया, जिस पर वो काम कर रही हैं। ये वेबसाइट जल्द ही आम लोगों के लिए उपलब्ध होगी। इस वेबसाइट का मकसद ग्रामीण क्षेत्र में हो रहे काम को बाज़ार उपलब्ध कराना होगा। कोशिश यही रहेगी कि गांव वालों को उनकी मेहनत का सही मूल्य मिल सके।

कीर्ति दीक्षित के उपन्यास और बदलाव की प्रक्रिया पर परिचर्चा के दौरान साथी।
कीर्ति दीक्षित के उपन्यास और बदलाव की प्रक्रिया पर परिचर्चा के दौरान साथी।

दूसरे दौर की परिचर्चा में सत्येंद्र कुमार यादव, अरुण प्रकाश, पशुपति शर्मा, अमरेंद्र गौरव, आनंद कुमार सिंह, अमर झा, जूली और अंकुर ने भी शिरकत की। आनंद कुमार सिंह ने कहा कि टीम बदलाव को अपना लक्ष्य और ज्यादा स्पष्ट तौर पर सामने रखना चाहिए। उन्होंने वक़्त के बेहतरीन इस्तेमाल पर जोर दिया। भटकाव की गुंजाइश को कम से कम करने की दिशा में सोचने को आनंद ने उद्वेलित किया। पशुपति शर्मा ने कहा कि छोटी कोशिशों को उसी परिप्रेक्ष्य में देखने से हताशा और निराशा से बचा जा सकता है। शुरुआत में अस्पष्टता हो सकती है, लेकिन नीयत कुछ अच्छा करने की हो तो राह खुद ब खुद बनती चली जाती है। उन्होंने कहा कि लोकतंत्रात्मक तरीके से जो समूह आगे बढ़ता है, उसमें ये दिक्कतें हो सकती हैं। बदलाव अभी बनने की प्रक्रिया में है, इसे किसी ढांचे में बांधने से इसका स्वाभाविक विकास बाधित हो सकता है।

अंत में कीर्ति दीक्षित ने अपने उपन्यास ‘जनेऊ’ का जिक्र किया। उन्होंने बताया कि ये उपन्यास ग्रामीण समाज की जातिगत ताने-बाने के ईर्द-गिर्द बुना गया है।


बदलाव बाल क्लब की गतिविधियों से रूबरू होने के लिए क्लिक करें

One thought on “नई राहों पर कदम दर कदम ‘बदलाव’

Comments are closed.