धत तेरे कि… थार में न भात, जुबान पे छै जात !

पुष्यमित्र 

मूढ़ी खाता बच्चा, इसकी मां पिछले साल इसे जन्म देने के बाद गुजर गयी। फोटो-पुष्यमित्र
मूढ़ी खाता बच्चा, इसकी मां पिछले साल इसे जन्म देने के बाद गुजर गयी। फोटो-पुष्यमित्र

 सरकारी आंकड़ों में बिहार में दस में से आठ बच्चे कुपोषित हैं। 26 फीसदी बच्चे अति कुपोषित हैं। 80 फीसदी महिलाएं एनीमिक हैं। किशोरियों का ब्याह हो रहा है। माताएं और बच्चे असमय मौत के चंगुल में फंस जाते हैं। मगर चुनावी शोर में इन सवालों को जगह नहीं मिल रही। न नीतीश के निश्चयों में, न नरेंद्र मोदी के विजन में। और तो और खुद पीड़ितों के लिए भी यह कोई चुनावी मुद्दा नहीं है, उन्हें जात की पड़ी है. मुजफ्फरपुर के हरपुर गांव से यह जमीनी रिपोर्ट।

हम उस गांव खाद्य सुरक्षा की मौजूदा हालात को समझने गये थे। पिछले दिनों पटना में आयोजित एक कार्यक्रम में गांव की पंच द्रौपदी देवी ने बताया था कि इस गांव में 400 से अधिक मांझी परिवार रहते हैं, मगर उनमें से अधिकतर लोगों को अभी तक उजला वाला राशन कार्ड (खाद्य सुरक्षा के लिए) नहीं मिला है। वे लोग काफी गरीब हैं और राशन कार्ड नहीं मिलने की वजह से उनको बहुत दिक्कत होती है। मगर जब हम उस गांव पहुंचे तो हमें रिपोर्ट का विषय बदलना पड़ा।

चुनावी ज़मीन पर मुद्दों की पड़ताल-5

वह हरपुर गांव था, मुजफ्फरपुर जिले के मोतीपुर प्रखंड का। मांझियों की बस्ती में घुसते ही एक खुला आहाता नजर आया, जहां औरतें बैठ कर कुछ काम कर रही थीं और नंग-धड़ंग बच्चों का हुजूम था। कुछ बच्चे खा रहे थे, कुछ खेलने में जुटे थे। मैंने जब उनकी तसवीर लेनी चाही तो बड़े बच्चे शर्मा कर भागने लगे और छोटे भयभीत होकर रोने लगे। उन्हीं में से एक शायद सवा साल का बच्चा था, नाक से पानी बह रहा था और वह सामने थाली में रखी मूढ़ी खा रहा था। पेट उगा हुआ था और बांहें काफी पतली थीं। वह मुझे देख कर चीख-चीख कर रोने लगा था। पड़ोस में बैठी महिला ने बताया, बाबू एकर माय मर गयी है। कब? पिछलका साल अगहने में। कैसे, इसको कौन देखता है? बड़ बहिन हय…
14 साल की किशोरी चमेली, जो चार भाई- बहनों की देखभाल करती है। पिता और पति मजदूरी करने पंजाब गये हैं। फोटो-पुष्यमित्र
14 साल की किशोरी चमेली, जो चार भाई- बहनों की देखभाल करती है। पिता और पति मजदूरी करने पंजाब गये हैं। फोटो-पुष्यमित्र

जब यह बातचीत चल ही रही थी, तभी पीछे से एक 13-14 साल की लड़की आकर खड़ी हो गयी और उसने अपने भाई को झट से उठा कर गोद में ले लिया। मैंने देखा कि उस बच्ची के माथे पर सिंदूर लगा हुआ था… और यह लड़की कितने साल की है? 18-20 के होइहैं बाबू… वहां की महिलाएं उस बच्ची की उम्र छुपाने की कोशिश करने में जुट गयीं। उन्हें शायद बाल विवाह के कानून के बारे में थोड़ी बहुत जानकारी होगी। इस बीच बक से लड़की ने खुद कह दिया कि वह 13-14 साल की है। फिर महिलाओं ने उस परिवार की कहानी सुनानी शुरू कर दी।

पांचवे बच्चे को जन्म देने के बाद इसकी मां मीना देवी जो खुद बमुश्किल 35 साल की होगी पिछले साल गुजर गयी। खून की कमी थी। मां ने अपनी मौत से पहले 13 साल की चमेली की शादी करवा दी। चमेली के पिता और उसका पति दोनों कमाने के लिए पंजाब गये हुए हैं। वह यहां अपने चार छोटे भाई-बहनों की देख-रेख अकेले करती है। मुझे इस उमर की उन लड़कियों की याद आ गयी, जो साइकिल से फर्राटे भरते हुए स्कूल जाया करती हैं। यहां चमेली के लिए स्कूल जाना तो लगभग असंभव है। उसे तो अपनी नयी गृहस्थी को जमाना है और साथ ही अपने ‘टुअर’ छोटे भाई बहनों की भी देखभाल करनी है। क्या उसकी कहानी अपनी मां मीना देवी जैसी ही होगी या उससे भी अधिक क्रूर?
पोषण और कुपोषण की परिभाषाएं इन तस्वीरों से तय होती हैं। फोटो-पुष्यमित्र
पोषण और कुपोषण की परिभाषाएं इन तस्वीरों से तय होती हैं। फोटो-पुष्यमित्र

द्रौपदी देवी सूचना दे रही थीं कि किशोरियों को बंटने वाला आयरन टेबलेट एक सवा साल से बंटना बंद है। दवा घोटाले के शोरगुल में सरकारी दवा की खरीद ही पूरे राज्य में ठप है। मुझे वे आंकड़े याद आ गये, जिसके मुताबिक बिहार में 80 फीसदी से अधिक महिलाएं एनीमिक हैं। तभी 40-45 साल की एक महिला कांति कुमर गोद में सात-आठ साल के अपने पोते को लिए आकर खड़ी हो गयीं। शायद उन्हें किसी ने बताया था कि राशन कार्ड का पता लगाने लोग आये हैं। आते ही उन्होंने अपनी राम कहानी शुरू कर दी। मगर मेरी निगाह उनकी गोद में टंगे सात-आठ साल के लड़के पर थी। क्या नाम है? किशन मांझी। क्या हुआ इसको? खड़ा नहीं हो पाता है। काहे? कमजोर है… अतिकुपोषित है। पीछे से द्रौपदी देवी ने कहा। हम कहे कि इसको एनआरसी सेंटर में भरती करवा दो, मगर इ लोग माने तब न। पिछले साल इ टोला से 17 ठो अतिकुपोषित बच्चा को एनआरसी सेंटर में भरती करवाये थे। सब की माय दस दिन, बारह दिन में भाग के आ गयी।

17 बच्चे यहां अतिकुपोषित हैं? मेरे सवाल पर द्रौपदी देवी चौंक गयी। बोलीं, 17 ही ठो थोड़े है। हर घर में है। 400 परिवार का इ टोला है, आप जिस घर में जाइयेगा आपको कुपोषित बच्चा मिलेगा। 500 से कम बच्चा यहां थोड़े है। सब गरीब-गुरबा है, खाने का इंतजाम नहीं है। आंगनबाड़ी में 40 बच्चों का एडमिशन हो सकता है। बांकी बच्चा कहां जाये। और आंगनबाड़ी में भी पोषाहार दो महीना से बंद है। मुझे वे आंकड़े याद आ गये, कि बिहार में हर दस में आठ बच्चे कुपोषित हैं और इनमें 26 फीसदी बच्चे अतिकुपोषित हैं। पिछले दिनों जिज्ञासा संस्था के लोगों ने मुजफ्फरपुर के चार प्रखंडों में बेसलाइन सर्वे करवाया तो पता चला कि यहां 30 हजार से अधिक बच्चे कुपोषित हैं और 12 हजार अतिकुपोषित।
 मैंने महिलाओं से पूछा, चुनाव प्रचार के लिए जब नेता लोग आते हैं तो उनसे यह सब बातें नहीं करते। इस पर महिलाओं ने कहा, अभी तक एक भी नेता यहां नहीं आया। तो…? तो क्या जब सब लोग जाते देख रहा है तो हमलोगों को भी तो अपना जात पकड़ना पड़ेगा न। यानी, किशोरी ब्याहताओं और अति कुपोषित बच्चों की इस बस्ती में और कुछ हो न हो लोगों की अपनी जात का खयाल जरूर है। जात का स्वाभिमान भी है। द्रौपदी देवी ने बताया, पिछले दिनों इस गांव के एक चरवाहे की हत्या हो गयी थी तो यह खबर उड़ी थी कि जीतनराम मांझी आयेंगे, वे तब बिहार के सीएम थे। ( हालांकि वे आये नहीं)
कुपोषण की फिक्र को खेल में उड़ाते चले... फोटो-पुष्यमित्र
कुपोषण की फिक्र को खेल में उड़ाते चले… फोटो-पुष्यमित्र

422 घर की इस बस्ती में हर जगह एक जैसा माहौल था। खदखदाते बच्चे, काम करती औरतें और बीड़ी पीते बूढ़े। जवान लोग कहां गये? पैंजाब.. कमाने गये हैं। क्या करें, पहले भात का इंतजाम होगा, तब न भोट डालेंगे। आगे सात साल का अनुल मांझी मिला। अपने दादा के साथ मकई का सत्तू खा रहा था। बिल्कुल नंगे बैठा था। दादा ने कहा, असवारी हुई है, देवी आई है। तीन दिन से बोखार है। द्रौपदी देवी ने कहा, चेचक। टोले में आधे दर्जन से अधिक बच्चों को चेचक हुआ है। राम प्रवेश मांझी के बेटे की तो मौत भी हो गयी है। परसाल भी दो बच्चा खराब हो गया था, चेचक के कारण। हर साल बच्चे मरते हैं। इलाज नहीं कराते? अस्पताल नहीं ले जाते? अनुल मांझी के पिता डांगर मांझी ने कहा, पैसा नहीं है बाबू। डागदर बहुत पैसा मांगता है. सरकारी अस्पताल में डॉगडर मिलता कहां है… ? वोट डालेंगे? हां, बाबू। नेताजी आयेंगे तो कुछ मांगेंगे… ? ‘हां बाबू, मांगेंगे काहे नहीं, हमरे गांव तक आने के लिए रोड नहीं है। रोड यहां का सबसे बड़ा मुद्दा है।’

 (पुष्यमित्र की ये रिपोर्ट साभार- प्रभात खबर से)

PUSHYA PROFILE-1


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।


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