ज़मीन अधिग्रहण अध्यादेश को अलविदा

सत्येंद्र कुमार

फिर नहीं आएगा भूमि अधिग्रहण अध्यादेश। ‘मन की बात’ में पीएम मोदी ने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को चौथी बार नहीं लाने का ऐलान किया। किसानों के हित के नाम पर 13 केंद्रीय कानूनों को भूमि अधिग्रहण एक्ट से जोड़ने की बात की। केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग, पुरातत्व अधिनियम और रेलवे अधिनियम जैसे 13 केंद्रीय अधिनियमों को भूमि अधिग्रहण अधिनियम के दायरे में ला दिया है। इन अधिनियमों के तहत जमीन अधिग्रहण के लिए भूमि अधिग्रहण कानून के प्रावधान लागू होंगे। केंद्र सरकार के अधिकारियों के अनुसार इससे उन लोगों को लाभ होगा, जिनकी जमीन इन 13 कानूनों के तहत अधिग्रहीत की जाएंगी। इस नए आदेश से केंद्रीय कानूनों के तहत भूमि अधिग्रहण के सभी मामलों में उचित मुआवजा, पुनर्वास और पुनर्स्थापन संबंधित प्रावधान लागू होंगे। भूमि अधिग्रहण अधिनियम में यह व्यवस्था नहीं थी। पीएम के ऐलान के बाद सरकार विवादास्पद भूमि अधिग्रहण अध्यादेश अब नहीं लाएगी।

हमने एक अध्यादेश जारी किया था, 31 अगस्त को अध्यादेश की सीमा समाप्त हो रही है, और मैंने तय किया है, इसे समाप्त होने दिया जाए। इसमें एक काम अधूरा था, और वो था – 13 ऐसे बिंदु, जिसको एक साल में पूर्ण करना था और इसलिए हम अध्यादेश में उसको लाये थे, लेकिन इन विवादों के रहते वो मामला भी उलझ गया। अध्यादेश तो समाप्त हो रहा है, लेकिन जिससे किसानों को सीधा लाभ मिलने वाला है, उन 13 बिंदुओं को, हम नियमों के तहत लाकर आज ही लागू कर रहे हैं ताकि किसानों को नुकसान न हो, आर्थिक हानि न हो। और इसलिए जिन 13 बिन्दुओं को लागू करना पहले के कानून में बाकी था, उसको आज हम पूरा कर रहे हैं- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

भूमि अधिग्रहण कानून में 13 नए बिंदु लागू
1.प्राचीन स्मारक एवं पुरातत्व धरोहर अधिनियम-1958
2. परमाणु ऊर्जा अधिनियम- 1962
3. दामोदर घाटी कॉर्पोरेशन अधिनियम- 1948
4. भारतीय ट्रामवे अधिनियम- 1886
5. खदान भूमि अधिग्रहण अधिनियम- 1885
6. मेटो रेलवे (निर्माण कार्य) अधिनियम-1978
7. राष्ट्रीय राजमार्ग अधिनियम- 1956
8. पेट्रोलियम एवं खनिज पाइपलाइन भूमि अधिग्रहण अधिनियम- 1962
9. अचल संपत्ति का रेक्विज़िशन एवं अधिग्रहण अधिनियम- 1952
10. विस्थापित पुनर्वास (भूमि अधिग्रहण) अधिनियम- 1948
11. कोयला धारण क्षेत्र एवं विकास अधिनियम- 1957
12. बिजली अधिनियम- 2003
13. रेलवे अधिनियम- 1989

“किसानों के हित के किसी भी सुझाव को मैं स्वीकार करने के लिए तैयार हूँ, ये बार-बार मैं कहता रहा हूं। लेकिन आज मुझे, मेरे किसान भाइयों-बहनों को ये कहना है कि ‘Land Acquisition Act’’ में सुधार की बात राज्यों की तरफ से आईं। सब को लगता था कि गाँव, ग़रीब किसान का अगर भला करना है, खेतों तक पानी पहुँचाने के लिए नहरें बनानी हैं, गाँव में बिजली पहुँचाने के लिए खम्बे लगाने हैं, गांव के लिए सड़क बनानी है, गांव के ग़रीबों के लिए घर बनाने हैं, गांव के ग़रीब नौजवानों को रोज़गार के लिए व्यवस्थायें उपलब्ध करानी हैं, तो हमें अफ़सरशाही के चंगुल से, कानून को निकालना पड़ेगा और तब जाकर के सुधार का प्रस्ताव आया था। लेकिन मैंने देखा कि इतने भ्रम फैलाए गए, किसान को इतना भयभीत कर दिया गया। मेरे किसान भाइयों-बहनों, मेरा किसान न भ्रमित होना चाहिये, और भयभीत तो कतई ही नहीं होना चाहिए। और मैं ऐसा कोई अवसर किसी को देना नहीं चाहता हूं, जो किसानों को भयभीत करे, किसानों को भ्रमित करे, और मेरे लिए देश में, हर एक आवाज़ का महत्व है,  किसानों की आवाज़ का विशेष महत्व है। ‘जय-जवान, जय-किसान’ ये नारा नहीं है, ये हमारा मंत्र है – गांव, ग़रीब किसान का कल्याण – और तभी तो हमने 15 अगस्त को कहा था, कि सिर्फ कृषि विभाग नहीं, लेकिन कृषि एवं किसान कल्याण विभाग बनाया जायेगा, जिसका निर्णय हमने बहुत तेज़ी से आगे बढ़ाया है। तो मेरे किसान भाइयों-बहनों, अब न भ्रम का कोई कारण है, और न ही कोई भयभीत करने का प्रयास करे, तो आपको भयभीत होने की आवश्यकता है।”

गौरतलब है कि उचित मुआवजे का अधिकार और भूमि अधिग्रहण में पारदर्शिता, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम 2013 में कई संशोधनों के बाद लोकसभा में पास कराया गया था, जिसका कांग्रेस सहित कई दल विरोध कर रहे थे और राज्यसभा में यह अधिनियम पास नहीं हो पाए। बिल पास नहीं होने के कारण सरकार तीन बार अध्यादेश पारित कर चुकी थी। तीसरे अध्यादेश की समय सीमा 31 अगस्त को समाप्त हो जाएगी और यह निष्प्रभावी हो जाएगा।

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सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।

2 thoughts on “ज़मीन अधिग्रहण अध्यादेश को अलविदा

  1. ये हमारे लोकतंत्र की विडम्बना है कि नेता चुनाव में कुछ और बाते कहते है तथा जीतने के बाद लोकतंत्र (बहुमत) के नाम पर मनमर्जी करते है। मोदी राज्यसभा में बहुमत के अभाव में जिस भूमि अधिग्रहण बिल को छोड़ने पर विवश हुए है और किसानों को दिलासा दे रहे है, उसी बिल को upa के शासन में उन्ही की पार्टी ने सपोर्ट किया था।
    हमारे नेताओं ने स्वांग रच रखा है कि मनमर्जी लोकतंत्र के नाम पर और विवश होने पर जनता के हित में कुर्बानी।

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