जल उठा उम्मीदों का ‘दीया’

खुशी के इज़हार के लिए ये मुस्कान ही काफी है
खुशी के इज़हार के लिए ये मुस्कान ही काफी है

सत्येंद्र कुमार यादव

आज कुछ बच्चे हंस रहे थे, मुस्कुरा रहे थे। तालियां बजा कर उत्साह मना रहे थे। अपनी खुशी का इजहार करने के लिए तरह-तरह की भाव भंगिमाएं बना रहे थे। खुशी को जाहिर करने के लिए एक भाग रहा था तो दर्जन भर बच्चे उसे दौड़ा रहे थे। फिर आगे भागते हुए बच्चे को पकड़कर एक दूसरे के ऊपर चढ़कर जश्न मना रहे थे। खुशी में एक दूसरे से फायटा-फैटी (फाइट) कर रहे थे। उनके चाचा भी खुश थे, ताऊ, दादी और दादा भी मगन थे । गांव दमक रहा था, महक रहा था। बच्चों को देखकर ऐसा लग रहा था कि जैसे ना जाने कितने बरस से उन्हें इस पल का इंतजार हो। ये बच्चे ठीक उसी तरह से उमंग से ओत-प्रोत दिखे जैसे कभी हमारे गांव के बच्चे थे, मैं भी, पड़ोसी भी। कुछ रिश्तेदार भी थे जिनका ज्यादातर समय हमारे ही गांव में ही गुजरता था। हो भी क्यों ना, गांव में पहली बार बिजली जो आई थी। इस उत्साह को अगर महसूस करना है तो आप फणिश्वर नाथ रेणु की कहानी ‘पंचलाइट’ जरूर पढ़िए या अगर पढ़े हैं तो उस उत्साह को महसूस करने के लिए आप उन गांव में जरूर जाइए जहां पहली बार बिजली आई हो या पीएम मोदी के ट्विटर अकाउंट  पर ऐसे वीडियो देख सकते हैं। जिन बच्चों की खुशी का जिक्र मैं कर रहा हूं उन्हें पीएम मोदी द्वारा ट्विटर पर साझा किए गए वीडियो में मैंने देखा।

पहले हम ढिबरी, दीये, लालटेन के उजाले में पढ़ते थे, अब बिजली आ गई है तो लालटेन की नहीं, बिजली के elec_रोशनी में पढ़ेंगे। अब टीवी भी देखेंगे और पढ़ लिखकर अधिकारी भी बनेंगे। ये यूपी के उन बच्चों के मन की बात है जिनके गांव में पहली बार बिजली पहुंची। पीएम मोदी के संकल्प से कुछ गांवों में रौशनी पहुंच चुकी है, कुछ में बाकी है। भारत सरकार ने देश के उन 18 हजार गांवों में बिजली पहुंचाने का संकल्प लिया है जहां अभी तक बिजली के खंभे नहीं गड़े हैं। एक हजार दिन में इन गांवों को रौशन करना है। पीएम मोदी ने (27 दिसंबर को एक बार फिर मन की बात में इस संकल्प को दोहराया-

“आजादी के इतने साल बाद जिस गांव में बिजली का खंभा पहुंचता होगा, शायद हम शहर में रहने वाले लोगों को या जो बिजली का उपभोग करते हैं उनको कभी अंदाजा नहीं होगा कि अंधेरा छंटता है तो उत्साह और उमंग की सीमा क्या होती है। भारत सरकार और राज्य सरकारों का ऊर्जा विभाग पहले भी काम करता था लेकिन जब से गांवों में बिजली पहुंचाने का एक हजार दिन का जो संकल्प किया है और हर दिन जब खबर आती है कि आज उस गांव में बिजली पहुंची, आज उस गांव में, तो साथसाथ उमंग और उत्साह की भी खबरें आती हैं”नरेंद्र मोदी, प्रधानमंत्री

पीएम मोदी ने मन की बात में मीडिया से शिकायत तो नहीं की लेकिन अंदाज कुछ शिकायत करने वाला ही था। जिन गांवों में बिजली पहुंच रही है उसकी अभी तक व्यापक रूप से मीडिया में चर्चा नहीं हो रही है। मुझे उम्मीद है कि मीडिया उन गांवों में जरूर पहुंचेगा और वहां के उमंग और उत्साह को देश से परिचित कराएगा। पीएम मोदी या किसी भी सरकार की ये शिकायत जायज है। बेहतर काम की सराहना होनी चाहिए। मैंने भी जब इस खबर को देखा, जानकारी मिली तो सोचा कि क्यों ना इस अच्छे बदलाव की कोशिश को आप सभी लोगों से साझा किया जाए। मुंबई से 100 किलोमीटर दूर तिलमल्ल गांव के रामदास खानजोड़े की खुशी, असम के हयांग बस्ती के लोगों की के उत्साह और बरेली के केरा गांव के मोहन की खुशी में कोई अंतर नहीं है। दोनों के गांव में पहली बार बिजली पहुंची है। मैनपुरी के जाखा गांव के राजू में भी यही उमंग और उत्साह है। बरेली और मैनपुरी के 60 उन गावों में ऐसी ही खुशियां बिखर रही हैं जहां पहली बार मोदी की ‘पंचलाइट’ पहुंची है।

यूपी और असम के कई गांवों में पहली बार पहुंची बिजली

असम के गांव जो पहली बार बिजली की रोशनी में नहाए
असम के गांव जो पहली बार बिजली की रोशनी में नहाए

पहली बार यूपी के इन गांवों में पहुंची बिजली

अभी हाल ही में चीन ने उन दो कस्बे को नेशनल ग्रिड से जोड़ा है जहां अभी तक बिजली नहीं पहुंची थी। क्विंघाई प्रांत के करीब चालिस हजार आबादी वाले गोमांग और चांगजियांग गांव आखिरकार बुधवार को बिजली की रोशनी से नहा गए। भारत सरकार भी यही प्रयास कर रही है। उम्मीद कीजिए कि 1000 दिन में भारत के वे गांव भी बिजली के रोशनी में नहाएं, जश्न मनाएं जहां अभी तक बिजली के खंभे भी नहीं पहुंचे हैं।

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सत्येंद्र कुमार यादव, फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता के पूर्व छात्र। सोशल मीडिया पर अपनी सक्रियता से आप लोगों को हैरान करते हैं। उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।

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