दिल्ली का चिल्ला कब बनेगा जयापुर?

दिल्ली का चिल्ला कब बनेगा जयापुर?

चिल्ला गांव की सड़क

आदर्श गांव को लेकर पिछले एक साल से खूब हो हल्ला हुआ, सांसदों ने थोक के भाव गांवों को गोद लेने के साथ खूब फोटो खिंचवाए लेकिन कैमरे की चकाचौध में गांव के विकास को भूल गए । हैरानी की बात ये है कि दिल्ली से करीब 800 किमी दूर मोदी का आदर्श गांव जयापुर तो चमक रहा है, लेकिन मोदी की नाक के नीचे दिल्ली में उन्हीं से सांसदों का गांव बदहाल है। मोदी  के गांव का जायजा लेने के बाद बदलाव की टीम जब दिल्ली के चिल्ला गांव पहुंची और जो कुछ देखा उससे तो यही कहा जा सकता है कि मोदी जी की नाक के नीचे उनका सपना चकनाचूर हो रहा है, ये सब कोई और नहीं बल्कि उन्हीं की पार्टी के माननीय सांसद कर रहे हैं ।

प्रधानमंत्री आवास यानी 7RCR से महज 14 किमी दूर, मेट्रो स्टेशनों और ऊंची ऊंची इमारतों के बीच बसा है चिल्ला गांव । यूपी के नोएडा की सीमा से सटे दिल्ली के पूर्वी छोर पर मयूर विहार फेज-1 में बसे चिल्ला गांव को बीजेपी के सांसद महेश गिरी ने गोद लिया है। ये वही महेश गिरी हैं जिन्होंने मोदी सरकार से गुहार लगाकर औरंगजेब रोड का नाम डॉ एपीजे अब्दुल कलाम करने का सफल प्रयास किया। लेकिन अपने आदर्श गांव को गोद लेने के बाद देखने भी नहीं आए। 200 साल से ज्यादा पुराने इस गांव की अब कोई पहचान नहीं बची है। थ्री स्टार होटल, ऊंची-ऊंची बिल्डिंग्स (एक फ्लैट एक करोड़ रुपए से कम के नहीं), हाईफाई प्राइवेट स्कूल के बीच बसा है। गांव के चारों ओर सड़कें बिल्डिंग्स तो चमचमाती हुई दिखती हैं। लेकिन गांव की पहचान टूटी-फूटी सड़कें, बजबजाती नालियां, चिल्ल पों का शोर ही है। कोई बीमार पड़ गया तो पांच किमी दूर कल्याणपुरी तक जाना होता है।

पीएम मोदी का आदर्श गांव जयापुर, वाराणसी

गांव में घुसेंगे तो आपको निगम पार्षद श्रीमति निक्की सिंह का बोर्ड आपको स्वागत करते मिलेगा। साथ ही कचरे का अंबार भी आपका स्वागत करते दिखेगा। यही नहीं गांव को गोद लेने के लिए सांसद महेश गिरी को धन्यवाद करते बोर्ड भी दिखेंगे।  लेकिन जैसे-जैसे गांव में घुसते जाएंगे विकास के दावे फुस्स होते दिखते जाएंगे। सड़कों, नालियों की साफ-सफाई तो राम भरोसे है। अगर एमसीडी के कर्मचारी एहसान कर दिए तो हफ्ते में एक दो दिन में सड़कों और जगह-जगह पड़े कचरों की सफाई हो जाती है। झाड़ू लगाने वाले तो नालियों में कचरा डालकर चलते बनते हैं। नतीजा धीरे-धीरे नालियां भर जाती हैं और जब पानी भरता है तो बजबजाने लगती हैं। चिल्ला गांव में प्रधानी अब खत्म हो चुकी है, अब निगम पार्षद ही सर्वेसर्वा हैं। गांव के लोग बता रहे थे कि प्रधान जी खूब पैसा जमा किए हैं। खैर अब वो इस दुनिया में नहीं हैं तो उनसे सफाई भी नहीं मांगी जा सकती। पूर्व प्रधान के पिता जी मिले थे वो भी विकास ना होने का रोना रो रहे थे।

करीब 5,000 की आबादी वाले इस गांव में घूमने पर हमने महसूस किया कि गांव के लोग संपन्न हैं। बड़ी-बड़ी गाड़ियां, बड़े-बड़े घर अधिकांश लोगों के पास हैं। सड़कें और कई गलियां सीमेंट की बनी हैं लेकिन सफाई के अभाव में गंदी हैं। कहीं-कहीं साफ-सफाई है। गांव के अनिल चौधरी ने बातचीत में बताया कि ग्रामिणों के पास घर तो हैं लेकिन कोई रोजगार नहीं है।

चार-पांच भैंस पालकर गुजारा किया जाता है। सार्वजनिक शौचालय पर कुछ दबंगों का कब्जा रहता है। गांव में कोई डिस्पेंसरी या ठीक ठाक अस्पताल नहीं है। एक विवाह घर है वो भी छोटा है। दो घरों में शादियां एक साथ पड़ने पर विवाह घर को लेकर मारपीट होने लगती है। पीने के पानी की कोई व्यवस्था नहीं। जो पानी नलों से आता है वो पीने योग्य नहीं। टैंकरों से पानी लेने के लिए लंबी लाइन लगानी पड़ती है, वहीं दूसरी ओर आस-पास के बिल्डिंग्स में गंगा पानी सप्लाई की जाती है। एमसीडी और स्थानीय नेताओं की वजह से गांव वालों के साथ भेदभाव होता रहता है। कॉलोनियों में सुविधाएं हैं लेकिन जिस गांव की जमीन पर ये कॉलोनियां और बिल्डिंग बनी हैं उसी गांव को पीने का साफ पानी नहीं मिलता।

सुनील चौधरी की मांग है कि गांव के पास बने प्राइवेट स्कूलों में ग्रामीणों के बच्चों को कम फीस पर पढ़ने दिया जाए। ग्रामीणों को छूट मिले ताकि उनके बच्चों को भी अच्छी शिक्षा मिले। गांव में साफ-सुथरा सरकारी विद्यालय है लेकिन पढ़ाई कामचलाऊ ही है। ऐसे में प्राइवेट स्कूल के बच्चों से गांव के बच्चे प्रतियोगिता नहीं कर पाते, नतीजा सरकारी नौकरी पाने से वंचित रह जाते हैं। सरकार ने जमीन ले ली लेकिन ग्रामीणों के भविष्य को लेकर कोई व्यवस्था नहीं की। सुनील चौधरी ने इस बात की ओर भी इशारा किया कि, ग्रामीण आज भी अपनी बेटियों को उच्च शिक्षा देने से कतराते हैं। दसवीं, बारहवीं की पढ़ाई के बाद घर बैठा देते हैं। कुछ लोग ही हैं जो बेटियों को उच्चा शिक्षा देते हैं। जागरुकता की कमी और आज भी पुरानी सोच रखने वाले लोग बेटियों को पढ़ाने में आना कानी करते हैं। 

गांव के लोगों से सांसद महेश गिरी के बारे में सवाल पूछा गया तो ग्रामीणों ने  कहा- गांव को गोद लेने के वक्त सांसद जी आए थे। उसके बाद कभी नहीं लौटे, उनके लोग आते हैं तो अपने नेताओं से मिलकर चले जाते हैं, किसी की समस्या नहीं सुनते। सांसद जी ने वादा किया था कि, पीने के पानी की समस्या दूर कर देंगे। लेकिन एक साल होने को है अब तक साफ पानी की व्यवस्था नहीं की गई। साथ ही डिस्पेंसरी, बच्चों के खेलने के लिए पार्क और नगर निगम के पांचवी तक के स्कूल को दसवीं तक करने की ज़रूरत भी बताई। सिर्फ भाषणों में गांव का विकास हो रहा है। पार्षद से लेकर सांसद तक हांकने के अलावा कुछ नहीं कर रहे हैं। इस गांव में मोदी का स्वच्छ अभियान दम तोड़ता दिखता है। चिल्ला गांव पर चिराग तले अंधेरा वाली कहावत एकदम फिट बैठती है।

पूरा गांव घुमने के बाद एक बात स्पष्ट हो गई कि, गांव में जो कुछ भी विकास के नाम पर काम दिख रहा है, वो उन कॉलोनियों और सोसायटी की वजह से है जिनमें बाहरी लोग आकर रहते हैं। यानि ये कहा जा सकता है कि बिना मन से चिल्ला गांव में कुछ गलियां और सड़कें बनवा दी गई हैं और गांव के नाम पर मिलने वाले फंड का भरपूर दुरुपयोग किया जाता रहा है। ना तो बीजेपी के सांसद और पार्षद इस गांव की सुधि ले रहे हैं और ना ही सत्ताधारी आम आदमी पार्टी के विधायक गांव वालों की समस्या के प्रति फिक्रमंद हैं। अगर सीएम केजरीवाल मेहरबानी करेंगे तो एक डिस्पेंसरी लगवाने में कोई हर्ज नहीं है। मोदी के सांसदों को मोदी के आदर्श गांव जयापुर से सीख लेनी चाहिए।

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सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं । उनसे मोबाइल- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।