गोवा की सैर में केजरीवाल का ‘ऑटोग्राफ’

 अंकिता चावला प्रुथी

गोवा की सरज़मीं पर क़दम रखते ही शुरु हुआ हमारे एडवेंचर्स का सिलसिला, पति (संदीप) और बेटी (सानवी) के साथ गोवा एयरपोर्ट पहुंची, सामान लिया और पहुंच गए प्री-पेड टैक्सी काउंटर पर । वैसे एयरपोर्ट पर लगी भीड़ को देखकर कोई नहीं कह सकता था कि गोवा में अभी ऑफ़ सीज़न है । हमने टैक्सी में सामान रखा, दोपहर का वक़्त था, धूप तेज़ थी, ड्राइवर ने पूछा सर एसी या नॉन एसी । हमने कहा – ग्यारह सौ रूपए में क्या एसी नहीं है?  हां-हां सर है, उसने जवाब दिया और हम अपने रिज़ॉर्ट की तरफ़ चल पड़े । हमें कैलंगूट जाना था, एयरपोर्ट से कैलंगूट का रास्ता लगभग डेढ़ घंटे का है। एयरपोर्ट के आगे से टैक्सी ने यू-टर्न लिया । लगभग एक किलोमीटर आगे जाने पर कुछ इमारतें दिखीं । “देखो यहां भी मल्टीस्टोरी घर बन रहे हैं, सारी हरियाली को ख़त्म कर रहे हैं” मैंने संदीप से कहा । एयरपोर्ट के नज़दीक ही काफ़ी मल्टीस्टोरी घर बनाए जा रहे हैं । शायद अब ये ट्रेंड गोवा में भी पहुंच गया है । हमारी टैक्सी बैकवॉटर्स के किनारे-किनारे चल रही थी । पानी को देखकर दिल बाग-बाग हो रहा था  सानवी (बेटी) को नींद आ रही थी लेकिन उसका भी सोने का मन नहीं था, शायद उसे गर्मी लग रही थी टैक्सी में जो एसी चल रहा था उसकी कूलिंग हो ही नहीं रही थी, ड्राइवर अपनी धुन में टैक्सी चलाए जा रहा था, बैकवॉटर्स के किनारे से हटकर अब उसने नेशनल हाइवे-17 की तरफ़ टर्न लिया। जैसे ही टर्न लिया वैसे ही नारियल के पेड़ों के बीच सुर्ख लाल फूलों से लदे गुलमोहर के पेड़ भी नज़र आए । सड़क के किनारे नीचे कुछ महिलाएं आम बेचती नज़र आईं, नीचे से जैसे ही नज़र ऊपर की तरफ़ गई तो फ़िल्म ‘अंदाज़ अपना-अपना’’ में सलमान ख़ान के अंदाज़ की तरह मेरे मुंह से निकला- ऊई मां, ये यहां भी! हां वो वहां भी था ।

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अब बताएं सुर्ख लाल गुलमोहर के बीच दिल्ली का बेरंग गुलमोहर आपको दिखेगा तो कैसा लगेगा ? अपनी मूछों के साथ मुस्कुराता हुआ चेहरा ऐसा लग रहा था मानो कह रहा हो, हाहाहा- तेरा पीछा ना मैं छोडूंगा सोनिए । हाईवे के लगभग हर खंभे पर पोस्टर चिपका हुआ था। पहले हमें लगा कि अपनी पार्टी का प्रमोशन कर रहा है, फिर जब हम एक पोस्टर के बेहद करीब से गुज़रे तो पता चला भाई साहब केजरीवाल दिल्ली को बर्बाद कर गोवा को बचाने आ रहे हैं, वो भी ठीक अगले दिन। पोस्टर को देखकर संदीप और मैंने एक-दूसरे को देखा और ज़ोर-ज़ोर से हंसने लगे और कहा “वेल्कम टू गोवा”  इतनी ही देर में हमारी टैक्सी दूसरी कार से टकराते-टकराते बची । हमने इग्नोर किया, लेकिन टैक्सी जब बैंबोलिम के पास एक बार फिर टकराते-टकराते बची तो मैं ज़ोर से बोली- “अरे भैय्या गाड़ी तो ध्यान से चलाइए” सॉरी मैडम ध्यान से चलाऊंगा ।केजरीवाल से मुलाक़ात के बाद ये हमारा दूसरा एडवेंचर था। ड्राइवर को नींद आ रही थी, टैक्सी का एसी कूलिंग नहीं कर रहा था, ऊपर से ड्राइवर ने खिड़की भी खोल दी थी और इस बीच गाड़ी तीसरी बार भी टकराते-टकराते बची। पता नहीं क्या जल्दी थी ड्राइवर को? बस भगवान की कृपा थी कि अभी तक हम सही सलामत थे।

गोवा… सफ़रनामा-दो

13335994_10153574624305848_7596910250386560172_nबैंबोलिम के बाद से मैं और संदीप रास्ते दोहराने लगे, देखो ये रास्ता जाता है बैंबोलिम रिज़ॉर्ट को, अपने हनीमून पर हम उसी रिज़ॉर्ट में ठहरे थे, फिर आगे पणजी आया। मंडोवी नदी पर बना पुल.. गोवा के लगभग हर रास्ते मुझे याद हैं.. विधानसभा को पार कर हम पोरवोरिम लाल बत्ती से बाएं मुड़ गए अब हम हाईवे से हट चुके थे और हमारा रिज़ॉर्ट ज़्यादा दूर नहीं था । थोड़ी ही देर में हम एस्त्रेलो दो मार रिज़ॉर्ट पहुंच गए । हमारा स्वागत वेल्कम ड्रिंक के साथ सीप की मालाओं से हुआ । रिज़ॉर्ट बेहद ख़ूबसूरत था, बिल्कुल बीच किनारे लेकिन हमारा रूम ठीक वहां था जिसके सामने कंस्ट्रक्शन चल रहा था और ऊपर से दरवाज़े की सिटकनी भी बंद नहीं हो रही थी । बस क्या था मुझे मौक़ा मिल गया, अपना पसंदीदा रूम लेने का । मैं रिसेप्शन पर गई और कहा- ” सिटकनियां ठीक हम अपने घर में कराएंगे न । यहां हम आराम करने आए हैं यहां घर के काम कराने नहीं” मैनेजर ने मुझे अश्योर किया कि कल आपका रूम बदल देंगे । बदलना ज़रूरी भी था आख़िर छह दिन मैं तो उस रूम में नहीं बिता सकती थी जिसके सामने काम चल रहा हो । संदीप बहुत अच्छे से जानते थे कि मैं रूम के मामले में बड़ी टेढ़ी हूं, होटल या रूम अच्छा नहीं होगा तो अच्छे के लिए मैं चक्कर कटवाती रहूंगी । ख़ैर शाम हो रही थी और भूख भी लग रही थी । हमें पणजी जाना था, सानवी के बर्थ डे की ड्रेस का ऑर्डर देने, तो हमने जल्दी से कपड़े बदले, फ्रेश हुए मैं सानवी को समंदर दिखाने लेकर आई । रिज़ॉर्ट के रेस्तरां से मैंने और सानवी समंदर देखने लगे “वाओ ! सानवी देखो समंदर” मन को सुकून मिल गया था समंदर की एक झलक देखकर । आई टॉनिक लेने के बाद हम रिज़ॉर्ट से बाहर आए, सोचा अब घूमें कैसे?  मन तो जिप्सी में घूमने का कर रहा था, लेकिन उसके एक के दिन के किराए में छह दिन के लिए एक्टिवा मिल रही थी इसलिए मन को किनारे कर संदीप, सानवी और मैं सवार हो गए हमारे एक्टिवा पर। अब छह दिन के लिए वो आख़िरकार हमारी ही तो थी।

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हम रिज़ॉर्ट से ज़्यादा दूर नहीं थै, कैलंगूट-बागा रोड पर ही थे तभी हमें एक अच्छा सा रेस्तरां दिखाई दिया Infantaria वहां हमने वेज समोसे खाए, ये स्वाद में स्प्रिंग रोल्स की तरह थे और आकार समोसे जैसा साथ ही में चिकन रोल भी खाया । वैसे चिकन रोल दिल्ली में मिलने वाले रोल की तरह बिलकुल नहीं था वो कुछ-कुछ हॉट डॉग जैसा था। सानवी का वो पसंदीदा हो गया । हमने साथ में बीयर ली और फिर खा पीकर चल पड़े पणजी की ओर, शाम के वक़्त गोवा में मौसम बहुत सुहावना हो जाता है । ठंडी-ठंडी हवा के बीच हमारी एक्टिवा दौड़े जा रही थी । रास्ते याद थे इसलिए ठीक से पहुंच गए पणजी, लेकिन जैसे ही दुकान के सामने पहुंचे तो देखा दुकान बंद, फ़ोन किया तो पता चला अब सोमवार को दुकान खुलेगी । ओह नो! मुझे चिंता हो रही थी कि दो दिन में क्या सानवी की ड्रेस बन पाएगी?  ख़ैर अब क्या हो सकता था अब हम पणजी घूम सकते थे । हम सबसे पहले पणजी में बनीं चर्च गए । मैरी इम्मेक्यूलेट चर्च, वही चर्च जो गोवा की आइकॉनिक चर्च है। जहां जोश फ़िल्म के साथ-साथ और कई फ़िल्मों की शूटिंग भी हो चुकी है। रोहित शेट्टी की लगभग हर फ़िल्म में उसकी एक झलक दिख ही जाती है। हम सीढ़ियां चढ़कर ऊपर गए। चर्च बंद था लेकिन बाहर बड़े बोर्ड पर लिखा था- आधे कपड़ों में चर्च के अंदर आना मना है! ऐसा मैंने पहले कभी लिखा नहीं देखा था ख़ैर हमने वहां कई तस्वीरें क्लिक की पूरे स्टाइल मार मार कर । चर्च के ऊपर से पणजी की मार्केट की तस्वीर भी ली और फिर अपने दुपहिया पर सवार हम मंडोवी नदी कि किनारे आ गए । स्कूटी हमने पटरी पर चढ़ा ली लेकिन उस सुकून के बीच में फिर किसी जाने-पहचाने से मुलाक़ात हुई । जी हां मंडोवी नदी की खुली हवा खा रहे थे हमारे दिल्ली के मुख्यमंत्री ।

13335793_10153574624255848_576680945792898701_nयहां भी जगह-जगह पोस्टर चिपके हुए थे तो हमने भी चिपकर उनकी नौटंकी की तरह कुछ नौटकीं करके तस्वीरें क्लिक कीं ताकी हमारी यात्रा में भी कुछ एक्स्ट्रा मसाला मारा जा सके और फिर हम वहां से निकलकर पोरवोरिम जा पहुंचे, ठीक मॉल ऑफ़ गोवा के सामने । संदीप के पांच हज़ार बचाने । अब आप सोचेंगे कि पांच हज़ार कैसे बचेंगे?  दरअसल गोवा के ट्रिप में मेरी प्लानिंग कोल्हापुर जाकर वहां का तांबड़ा रस्सा खाने की थी और कोल्हापुर गोवा से चार घंटे की दूरी पर है । वहां आने-जाने में पांच हज़ार तो लग ही जाते, साथ में कोल्हापुरी चप्पलों की खरीदारी का अलग से खर्च, वो खर्च मैंने बचा लिया क्योंकि पोरवोरिम में कोल्हापुरी रेस्त्रां जो मिल गया था । जी भर के तांबड़ा रस्सा खाया । तांबड़ा रस्सा मटन स्टॉक से बनता है जिसमें मिर्ची का छोंक लगाया जाता है । तीखा होता है पर स्वाद भी लाजवाब होता है । साथ ही कोल्हापुरी मटन और फ्राई किंग फ़िश का मज़ा ।13413529_10153574624550848_7214577065349116804_n

आठ सौ रूपए में लज़ीज़ खाने के बाद हम अपने रिजॉर्ट की तरफ़ चल पड़े । रात हो रही थी अब थोड़ा डर भी लगने लगा था, एक बार फिर आंखों में वो सीन दौड़ने लगा था जब पहली बार गोवा आई थी । ट्रेन से उतरकर बस में सवार हम होटल में जा रहे थे, जगह-जगह क्रॉस के सिंबल बने हुए थे, फ़िल्मों में कुछ डरावना दिखाना होता है तो कब्रिस्तान और क्रॉस के चिन्ह दिखाते हैं, मैं उन निशान को देखते हुए डर रही थी । वो डर मुझे अब भी लग लग रहा था । पोरवोरिम से कैलंगूट का रास्ता थोड़ा सुनसान है । स्ट्रीट लाइट नहीं थी, लेकिन सानवी किसी भी डर से बेखबर स्कूटी पर मज़े कर रही थी । उसके लिए ये पहला एक्सपीरियंस था, पापा के आगे बैठकर वो हवा से बातें कर रही थी, सानवी को देखकर अच्छा लगा । मैंने संदीप को कस के पकड़ लिया और हमारी एक्टिवा फर्राटे मारते हुए पहुंच गई रिजॉर्ट पर ।
हम काफी थक चुके थे, एक्टिवा को भी तो थोड़ा ब्रेक चाहिए तो बाकी की कहानी जारी रहेगी…


ankita profileअंकिता चावला प्रुथी। दिल्ली में पली बढ़ी अंकिता ने एक दशक से ज्यादा वक्त तक मीडिया संस्थानों में बतौर एंकर और प्रोड्यूसर कई शानदार शो किए। इन दिनों स्टुडियो जलसा के नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस चला रही हैं। टोटल टीवी, न्यूज नेशन और सहारा इंडिया चैनल में नौकरी करते हुए मीडिया के खट्टे-मीठे अनुभव बटोरे।


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