गर्मियों की छुट्टी में गोवा की उड़ान

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अंकिता चावला प्रुथी

वैसे गोवा मैं पहली बार नहीं जा रही थी और ना ही संदीप, लेकिन मैं चाहती थी कि सानवी गोवा ज़रूर देखे। संदीप ने तो गोवा के लिए ना कर दी थी। उन्होंने कहा ” कितनी बार गोवा देखोगी ? अभी तीन साल पहले भी गई थी” । मैंने कहा गोवा ऐसी जगह है जहां हर तीन साल बाद जाना चाहिए। आख़िर सिक्किम, दार्जीलिंग के बीच जीत गोवा की हुई और हमने महीने भर पहले बुकिंग करा ली। जब कहीं घूमने जाना होता है तो इंतज़ार काटे नहीं कटता। वैसे एक और बात सौ आने सच है और वो ये जो मज़ा सफ़र के शुरुआत में आता है उतना मज़ा मंज़िल पहुंचकर नहीं आता। आख़िरकार वो दिन आ ही गया । मई की इक्कीस तारीख, एयर एशिया की फ़्लाइट थी। हम वक़्त से कुछ ज़्यादा ही पहले निकले। इस बार सफ़र की शुरूआत नोएडा से जो हो रही थी, हमने टैक्सी की और अपना सामान डालकर निकल पड़े एयरपोर्ट के लिए। हमारी फ़्लाईट टी-3 टर्मिनल से जानी थी।

गोवा… सफ़रनामा-एक

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घर से एयरपोर्ट में सिक्योरिटी चेक तक सबकुछ आराम से हो गया। वक़्त था तो मैकडॉनल्ड्स में बैठकर नाश्ता भी कर लिया। वैसे मैक्डी के बर्गर के लिए आए बिल को देखकर दिल को अच्छा नहीं लगा। बाहर मैक्डी में वही बर्गर आधे से भी कम दाम पर मिल जाता है, लेकिन हां एयरपोर्ट की उस खिड़की के नज़दीक बैठकर बर्गर खाने का मज़ा कुछ और ही था। मैक्डी की खिड़की से कई प्लेन खड़े नज़र आ रहे थे। ट्रॉलीज़ में सामान लाया-ले जाया जा रहा था। थोड़ी दूर से फ़्लाईट टेक-ऑफ़ करती नज़र भी आ रही थीं। इस नज़ारे को क़ैद करने के लिए मैंने अपना कैमरा निकाला और मेरी नक़ल करके सानवी ने अपना। इस बार वो भी अपना कैमरा साथ लेकर आई है। हमने कुछ तस्वीरें क्लिक की और फिर बोर्डिंग गेट की तरफ़ चल पड़े। सानवी के लिए ये नया नवेला एक्सपीरियंस था। फ़्लाइट में उसने पहले भी सफ़र किया था लेकिन उसको याद नहीं था। इसलिए उसकी उत्सुकता देखते ही बन रही थी, एक्सिलरेटर पर चलना या फिर वैंडिंग मशीन से बार-बार पानी की बोतल निकालना, उसके लिए ये सब खेल थे। चलो बोर्डिंग का भी वक़्त हो गया और प्लेन में अपनी सीट पर बैठ गए।

13335693_10153572791380848_1604788916710249524_n वैसे जब आप अकेले सफ़र करते हैं और विंडो सीट आपकी होती है तो किसी की मजाल की आपकी विंडो सीट कोई और ले। जैसे ही आपकी शादी होती है तो वो विंडो सीट पत्नी को ट्रांसफ़र हो जाती है और फिर बच्चा होने के बाद तो कहने की ज़रूरत नहीं। तो विंडो सीट पर सानवी ही बैठी। प्लेन देर से आया था तो उसका वक़्त हो चला था टेक ऑफ़ करने का। थोड़ी देर के बाद उसका नंबर भी आ गया  और वो रन-वे की तरफ़ बढ़ने लगा। हमने अपना कैमरा ऑन कर लिया था, हम सानवी के सारे भाव क़ैमरे में क़ैद करना चाहते थे। फ़्लाइट रन-वे पर दौड़ने लगी। धीरे-धीरे उसकी स्पीड तेज़ और बहुत तेज़ होने लगी। तेज़ स्पीड के कारण वो बहुत ज़ोर ज़ोर से हिल रही थी। मैंने कभी किसी फ़्लाइट को इतना हिलते पहले नहीं देखा था। मैं कुछ कहती इतने में पीछे से किसी पैसेंजर ने कहा “हमें नहीं पता था कि एयर एशिया के विमान इतने हल्के होते हैं और ज़ोर -ज़ोर से हिलते हैं, यार अभी से डर लग रहा है “। उनकी बात सुनकर तो मुझे भी डर लगने लगा। सानवी के डरे-सहमे वाले भाव हमने कैमरे में क़ैद कर लिए।

फ्लैशबेक में गोवा

अब मुझे उस सफ़र की याद आ रही थी जब मैं कॉलेज के ट्रिप पर गोवा गई थी वो भी स्लिपर क्लास में बैठकर। दो दिन लगे थे हमें गोवा पहुंचने में। रास्ते में बारिश हो रही थी । ट्रेन जगह-जगह रूक कर चल रही थी, अभी रत्नागिरी आया नहीं था। पहाड़ दिख रहे थे, बारिश के कारण मौसम बहुत खुशनुमा था, दूर-दूर तक हरियाली नज़र आ रही थी। उन दिनों वॉक मैन का बहुत चलन था। उसी साल दिल चाहता है और तुम बिन फिल्म आई थी। मेरे पास इस कॉम्बीनेशन का कैसेट था। मैं रिवाइंड करके एक ही गाना सुन रही थी… “कैसी ये ऋुत थी जिसमें फूल बनके दिल खिले”। ‘दिल चाहता है’ का वो गाना मेरा पसंदीदा बन गया था । बाहर नज़ारा और कानों में बजता वो गाना कभी नहीं भूल सकती। थोड़ी देर में रत्नागिरी आया, वहां की इडली खाई वो भी नारियल की चटनी के साथ, बहुत स्वादिष्ट थी। फिर मनमाढ़ आया, महाराष्ट्र का पहला स्टेशन, कभी ट्रेन से सफ़र करें तो वहां की कुल्हड़ वाली चाय ज़रूर पीयें। बहुत टेस्टी चाय थी मनमाढ़ की। कॉलेज का लंबा-चौड़ा ग्रुप था इसलिए दो दिन का ज़्यादा पता नहीं चला, दूसरी रात जब गोवा पहुंचने में एक-दो स्टेशन की दूरी रह गई थी तो उससे पहले ट्रेन एक स्टेशन पर रुकी। ट्रेन की खिड़कियां खुली हुई थीं, रात के दस बजे का वक़्त रहा होगा, सभी बातों में लगे हुए थे, तभी ज़ोर से आवाज आई– ” लेगा-लेगा, मांगता-मांगता, ले लो मैडम सस्ती देंगे” सभी लड़कियां ज़ोर से चिल्लाईं…अअअअअअ… जो खिड़की के बाहर से आवाज़ लगा रहे थे। एक-दम से रफ्फूचक्कर हो गए। बाद में पता चला कि वो गोवा का ड्रिंक फ़ेनी बेच रहे थे। सब लड़कियां डर गई थीं और मैं भी। मडगांव स्टेशन आया और वहां से हम बस में सवार हुए पणजी के लिए।

कुछ भी हो, ट्रेन के सफ़र की बात ही कुछ और है, लेकिन हम तो प्लेन में थे और अब प्लेन डैबोलिम एयरपोर्ट में उतरने की तैयारी कर रहा था।


ankita profileअंकिता चावला प्रुथी। दिल्ली में पली बढ़ी अंकिता ने एक दशक से ज्यादा वक्त तक मीडिया संस्थानों में बतौर एंकर और प्रोड्यूसर कई शानदार शो किए। इन दिनों स्टुडियो जलसा के नाम से अपना प्रोडक्शन हाउस चला रही हैं। टोटल टीवी, न्यूज नेशन और सहारा इंडिया चैनल में नौकरी करते हुए मीडिया के खट्टे-मीठे अनुभव बटोरे।


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