‘कातिल कार्ड’ और कमीशन के जाल से किसान बेहाल

ashish sagar sep 28

आशीष सागर

बुंदेलखंड में शायद ही कोई दिन ऐसा हो जब एक किसान खुदकुशी को मजबूर न हो । इसकी वजह भी सभी को मालूम है । कर्ज के बोझ का भार किसान सहन नहीं कर पता और आखिर में जीवन लीला खत्म कर देता है, लेकिन क्या किसी ने इस बात पर गौर किया कि आखिर किसानों को इतना कर्ज कैसे मिलता है । ऐसा नहीं है कि किसानों को ये कर्ज साहुकार देते हैं बल्कि ये कर्ज तो बैंक देते हैं, अगर कहें कि देते ही रेवड़ी की तरह बांटते हैं तो गलत नहीं होगा । किसानों को मनमाना कर्ज बांटने की वजह भी है क्योंकि इसमें बैंकों का कमीशन कर्ज देने से पहले ही तय हो जाता है और ये कर्ज दिलवाने का काम बैंक के दलाल और बैंकमित्र मिलकर करते हैं । इसमें सबसे ज्यादा कर्ज किसान क्रेडिट कार्ड के नाम पर दिया जाता है क्योंकि सूखे प्रभावित इलाका होने की वजह से कर्ज माफी की गुंजाइश थोड़ी-बहुत जरूर रहती है । बैंक कर्ज माफी का लालच देकर किसानों को कर्ज बांटते हैं और सरकार जो सब्सिडी किसानों को देती है वो पैसा बैंक और दलाल खा जाते हैं और किसानों के हाथ लगता है सिर्फ मौत ।


बाँदा के बदोसा में महुई गाँव के धोबिन पुरवा निवासी 35 वर्षीय युवा मोहन पुत्र महिपाल ने दो दिन पहले खपरैल से लटककर जान दे दी । गांव वाले बताते हैं कि उसके ग्यारह बीघे में फसल नही हुई थी, उसके किसान क्रेडिट कार्ड पर 1.40 लाख रूपये का कर्जा था । मृतक की पत्नी मंजू ने कर्जे की बात कही है जबकि प्रसाशन गृह कलह बतला रहा है । उधर इसी क्षेत्र के ग्राम पंचायत संग्रामपुर में किसान क्रेडिट कार्ड के मकड़जाल में ऐसा उलझा है कि आप सोच नहीं सकते । बुंदेलखंड के सूखा प्रभावित सातों जिलों में एक जैसी हालत है । एक किसान तीन-तीन बैंक से नोडयुज ( इस बात का कि किसान की जमीन कही बंधक नही है ) बनवाकर किसान क्रेडिट कार्ड पर खेती के लिए कर्जा लिए है । एक बैंक मित्र ने बातचीत के दौरान इस खेल की का कालाचिट्ठा खोला तो हैरानी होने लगी । उसने बताया कि पहले जो काम दलाल या बिचौलिया करता था वो अब बैंक मित्र कर रहे है । ग्राम पंचायत संग्रामपुर में पूरा गाँव कर्जदार है वीरमपुर, छ्त्तुपुर,  धोबिनपुर आदि) ग्रामीण पानी के संकट से हलकान हैं, गांववाले इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक, शाखा फतेहगंज के मैनेजर एसके. सिंह पर गंभीर आरोप लगाते है कि वह बिना 5 फीसदी कमीशन खोरी के कर्जा नही देता है, किसानो का फसल बीमा, बैंक प्रीमियम काट लेता है ।

13241206_1414115778613977_1336460155235143733_nगाँव के फक्कड़ पुत्र रामआसरे ने पचास हजार का कर्जा दिलवाने की बात की, उसको 70 हजार मिले लेकिन उसकी हालत उस दिन तब पतली हो गई बुजुर्गियत में पता चला कि 2,50,000 रूपये किसान क्रेडिट कार्ड का कर्जा चढ़ा है । कार्ड संख्या 1552 उसके लिए अब काल है ! यही हाल शिवराम का है उसने 90 हजार लिया कर्ज और क्रेडिट कार्ड में 2,26,000 रूपये देनदारी है । गाँव के रामादीन, अछेलाल सहित अन्य किसान का भी यही हाल है । वे कहते है गरीब से भी बिना 5 हजार रूपये कमीशन लिए बैंकमित्र मैनेजर से कार्ड में कर्जा नही दिलवाता है । जानकार इसकी वजह बताते हैं कि बुंदेलखंड का किसान कर्जा देना नहीं चाहता है क्योकि सरकारों की सियासत और बैंक की दलाली ने उसको ‘ कम्फर्ट जोन ‘ दिया है । क्रेडिट कार्ड का कर्जा खेती की जगह अन्य खर्चो में खपता है ।लिहाजा जब किसानों का कर्ज माफ नहीं होता और कर्ज जितना लिया नहीं उससे ज्यादा अदा करना होता है तो किसानों को जान देने के सिवाय कोई रास्ता नजर नहीं आता ।


बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर एकला चलो रेके नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।