ईशमेला में सपनों की पाठशाला

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अनीश सिंह

कितना अच्छा हो जब बच्चों पर पढ़ाई के लिए उनपर दबाव न डाला जाए, कितना अच्छा हो जब बच्चों में पढ़ाई के लिए रूचि खुद ब खुद पनप जाए, घरवालों को बच्चों के पीछे न पड़ना पड़े, बच्चे अपने आप होमवर्क और क्लास वर्क पूरी कर लें। ये बातें सुनने और सोचने में बड़ी अच्छी लगती हैं लेकिन देखने को बहुत कम ही मिलती हैं।छपरा ज़िला का एक छोटा सा गांव, ईशमेला। जिसका शाब्दिक अर्थ है वैसी जगह जहां ईश्वर का मेला लगता हो। भले ही इस कलयुग में ईश्वर का मेला देखना किसी को नसीब न हो लेकिन इस गांव में एक शख्स ऐसे भी हैं जो ग़रीब मां-बाप के लिए किसी भगवान से कम नहीं। वो शख्स हैं नितलेश सिंह। जो पेशे से शिक्षक हैं। बच्चों में पढ़ाई के प्रति ललक और जिज्ञासा बढ़ाने के लिए नितलेश ने एक ऐसी पहल की है जिसे कर पाना सब के बस की बात नहीं।

a108e13b-fea7-41d9-b170-bc480751550c नितलेश ने अपने घर की सारी पूंजी लगाकर अपने गांव में ही एक स्कूल खोला। जिसमें नितलेश ने अपने अलावा कुछ और शिक्षक रखे। शुरू-शुरू में बच्चे क्लास आते तो कभी नहीं आते। बच्चों का रिजल्ट भी कुछ ख़ास नहीं था। तब नितलेश को एक उपाय सूझा। उन्होंने हर क्लास में जाकर बच्चों की पसंद की लिस्ट बनाई। किसी को कैरमबोर्ड, तो किसी को एक्सरसाइज किट, किसी बच्चे को फुटबॉल चाहिए था तो किसी को क्रिकेट का बल्ला। उन्होंने ऐलान किया कि परीक्षा में जिस बच्चे का मार्क्स अस्सी फ़ीसदी से अधिक होगा उन्हें उनकी पसंद की चीज़ दी जाएगी।
पहले साल बच्चों ने कुछ ख़ास रूचि नहीं दिखाई। लेकिन जिनके मार्क्स 80 फ़ीसदी से ज्यादा आए थे, स्कूल के प्रिंसिपल नितलेश सिंह की तरफ से बच्चों के मनमुताबिक गिफ़्ट मिले। फिर क्या था, अगली बार से परीक्षा के रिजल्ट में सुधार दिखने लगा। ईशमेला के बच्चों में भी एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ शुरू हो गई। बच्चे अपने साथी से अधिक मार्क्स लाने के लिए बिना मां-बाप के चिल्लाए पढ़ाई में जुटे दिखाई देते हैं।
49f58747-532f-4fc6-b9ef-7fad82e49af3नितलेश का कहना है ‘मेरा उद्देश्य स्कूल से पैसे कमाना नहीं बल्कि बच्चों को बचपन से ही शिक्षा के प्रति जागरुक करना है। हालांकि स्कूल की फीस 400 रुपये रखी है, लेकिन वैसे बच्चे जिनके माता-पिता फीस दे पाने में सक्षम नहीं उनसे फीस नहीं ली जाती। नितलेश की पत्नी गांव से कुछ दूरी पर स्थित एक छोटे से शहर हाजीपुर में ब्यूटी पार्लर चलाती हैं। उससे अच्छी कमाई भी होती है। गांव में स्कूल खोलने में उन्होंने अपने पति की पूरी मदद की। हालांकि पहले तो उन्होंने अपने पति का विरोध किया और गांव में स्कूल खोले जाने पर आपत्ति जताई।हालांकि आज दोनों मिलकर इस काम को आगे बढ़ा रहे हैं । नितलेश हर बच्चे को उसके नाम से जानते हैं और ज़रूरत पड़ने पर बच्चों के माता-पिता से भी खुद मिलने जाते हैं। पैसे की कमी किसी भी बच्चे की प्रतिभा में रुकावट न बने इसके लिए कई बच्चों को नि:शुल्क शिक्षा दी जाती है। नितलेश की पत्नी भी अपने पति का पूरा साथ देती हैं और कभी उनके काम में रूकावट नहीं डालतीं। बेहद सामान्य रूप से जीवनयापन करने वाले नितलेश कहते हैं कि शहरी ज़िंदगी से आजकल हर कोई आजिज आ चुका है। हर कोई गांव के वातावरण में लौटना चाहता है। मैंने भी अपने मन की सुनी और भागदौड़ वाली शहरी जिंदगी से हटकर अपने गांव का रुख़ किया।’a23ec2f5-e552-47b4-bf82-9fc2b699a5f9

शहर में नितलेश के पास अच्छी-खासी प्रापर्टी हैं फिर भी ये गरीबों के लिए कुछ अलग करने का उनका जुनून ही है जो उन्हें शहर से 40 किमी दूर खींच लाता है । वो करीब 40 किलोमीटर बाइक चलाकर गांव में बने स्कूल में बच्चों को पढ़ाने आते हैं। बेहद सामान्य रूप से जीवनयापन करने वाले नितलेश कहते हैं कि ”शहरी ज़िंदगी से आजकल हर कोई आजिज आ चुका है। हर कोई गांव के वातावरण में लौटना चाहता है। मैंने भी अपने मन की सुनी और भागदौड़ वाली शहरी जिंदगी से हटकर अपने गांव का रुख़ किया।” नितलेश ने गांव में शिक्षा की कमी को देखते हुए एक स्कूल खोला और बच्चों को पढ़ाना शुरू कर दिया। ‘बदलाव’ के लिए और क्या चाहिए, बस एक अच्छी सोच और लगन।


anish k singh

अनीश कुमार सिंह। छपरा से आकर दिल्ली में बस गए हैं। इंडियन इंस्टीच्यूट ऑफ मास कम्यूनिकेशन से पत्रकारिता के गुर सीखे। प्रभात खबर और प्रथम प्रवक्ता में कई रिपोर्ट प्रकाशित। पिछले एक दशक से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय।