हर ‘डंडे’ पर ‘सॉरी’ कहना कहां मुमकिन है?

चंदन शर्मा  

police brutality fnlआदरणीय मोदी जी, ट्वीटर पर सॉरी बोल देने से सब कुछ खत्‍म नहीं हो जाता। चंडीगढ़ में जो कुछ ह़आ कोई पहली घटना नहीं है। वीवीआईपी सुरक्षा के नाम पर देश की जनता हर दिन ऐसी परेशानी झेलती है। चंडीगढ़ में जो हुआ इसी का अतिरेक था। आप को कुछ करना ही है तो देश के पुलिसिंग सिस्‍टम को बदलिए। कश्‍मीर से कन्‍याकुमारी तक कहीं भी आम जन से बात कर लीजिए, हर किसी के मन में पुलिस के प्रति अविश्‍वास या नफरत का भाव दिखेगा। कोई एक वजह नहीं है। बड़े होते बच्‍चे को घर के गार्जियन साफ तौर पर सीख देते हैं कि पुलिस से ना दोस्‍ती अच्‍छी है ना दुश्‍मनी। शक ये कि कब कहां, किस मामले में फंसा दे कोई नहीं जानता। पुलिस मित्र और पुलिस-पब्लिक सहभागिता जैसी बातें बस सेमिनार में बोलने भर के लिए ठीक हैं।
आज एक बड़े तबके के लिए पुलिस में भर्ती का मतलब ही है ऊपरी कमाई। आम धारणा है कि एक मामूली अर्दली से लेकर डीजीपी तक इस काम में ‘ईमानदारी’ से शामिल होते हैं। जिस तरह कुर्सी मिलते ही जनप्रतिनिधि कहने को जनता के प्रतिनिधि रह जाते हैं, उसी तरह पुलिस वाले भी बस कहने को ही जनता के सेवक रह गए हैं। समाज से, जनता से पुलिसवालों का कोई सरोकार नहीं रह गया। पुलिस की पूरी कार्रवाई हैसियत और रूतबे के आधार पर तय होती है। अगर राजनीतिक दबाव न हो, मीडिया में ख़बरें लीक होने का भय ना हो तो पुलिस एफआईआर लिख ले तो, समझ लीजिए बड़ी बात है। देश के किसी भी थाने में चले जाइए, आम जन विशेषकर अगर वह सो कॉल्‍ड ‘सिविलाइज़्ड’ नहीं है तो पुलिसवालों के बातचीत का रवैया ‘लट्ठमार’ ही होता है।

खाकी का ‘चेहरा’ कब बदलेगा-एक

custodial torture fnl
थानेदारों को दो-तीन बीवी रखने का तो मानो कानूनी अधिकार मिल गया है। कोई भी विधवा, बेबस अगर नज़र में चढ़ गई तो उसका भगवान ही मालिक है। (थाने में बलात्कार के मामले इसके गवाह हैं।) किसी को भी लॉकअप में लाने पर गाली-गलौच और बदतमीजी आम बात है। कभी तो बीच सड़क ही बिना आरोप सिद्ध हुए जानवरों की तरह पीटना सिस्‍टम का हिस्‍सा बन गया है। हार्ड कोर क्रिमिनल को भले ही पकड़ ना पाएं, पर छोटे-मोटे अपराध या शिकायत पर त्‍वरित कार्रवाई’ हो जाती है। अक्‍सर 12 बजे रात के बाद या शनिवार के दिन जनाब ‘एक्शन’ में आ जाते हैं।
बिना किसी सबूत के भी किसी को हार्डकोर क्रिमिनल बना देना तो बायें हाथ का खेल है। पुलिस की पूरी ताकत किसी भी मामले को दबाने में या केस बदलने या कमजोर करने में लग जाती है। थानों में दर्ज शिकायतों के लिए उनके पास वक्‍त हो या ना, पर सड़क पर, पार्क में, होटलों में, ढ़ाबों पर, पार्लर में, बाजार में, फुटपाथ पर, बस स्‍टैंड पर, रेलवे स्‍टेशन पर- हर जगह अवैध वसूली के लिए पूरा सिस्‍टम बना होता है, जो बेरोकटोक 24 घंटे 365 दिन जारी रहता है। पुलिसवालों की फितरत से डर ऐसा कि सरेराह अपराध हाेने पर भी आम जनता पुलिस के पास जाने या कोई जानकारी देने से बचती है।
खाद्य सुरक्षा, उत्‍पाद विभाग, मोरल पुलिसिंग से लेकर तमाम सेवाआें का ठेका भी पुलिसवाले खुद-ब-खुद ले लेते हैं। विरोध की कोई गुंजाइश कहीं नहीं है, क्‍याेंकि कब किस मामले में कहां से पकड़ कर जेल भिजवा दें कह नहीं सकते। उसके बाद तारीख दर तारीख खुद को निर्दोष साबित करने में कोर्ट या सम्‍मान हासिल करने के लिए मानवाधिकार आयोग के चक्‍कर लगाते रहिए।  थाने में शिकयत के लिए पहुंचा हर आदमी बस मुर्गा होता है, जैसे भी हो उसे काट लेना है। (मीट बैन लगाने वाली सरकारों को ”मुर्गा कटाई’ पर भी बैन लगाना चाहिए।) कमाई दोनों तरफ से होनी ही है, जुर्म करनेवाला हो या जुर्म सहनेवाला। हां, जिस हिसाब से चढ़ावा होगा उस हिसाब से आरोपों की फेहरिस्‍त बनेगी । नेताओं की पैरवी को हमेशा प्राथमिकता मिलेगी।
police brutality-2मोदी जी इसके लिए दोषी पूरा सिस्‍टम है। एक सिपाही की भर्ती से लेकर डीजीपी के प्रमोशन तक पूरे सिस्‍टम में भ्रष्टाचार है। सरकार की ओर से पुलिस वालों को मिलने वाला वेतन व अन्‍य सुविधाओं के मानक भी इसमें शामिल है। तमाम वैज्ञानिक जांच का सूत्र लाठी से शुरू हो कर लाठी पर ही खत्‍म होता है। ऐसे में अगर कोई पुलिसवाला ईमानदार निकल जाए तो पूरा विभाग उसके पीछे पड़ जाता है। अगर विभाग परेशान ना भी करे तो कोई भी खादी पहने अदना सा नेता तबादले की धमकी दे कर चला जाता है। मामूली पुलिसवाले की क्‍या औकात,  महीने-दो महीने में बिना किसी ठोस वजह के ‘कप्तान साहब’ ही बदल जाते हैं।
मोदी जी डिजीटल इंडिया की ईमानदार पहल करनी है तो शुरूआत देश के पुलिस थानों से कीजिए। सीसीटीवी कैमरे अगर लगाने हैं तो पहले यहीं लगाइए। महिलाओं का सम्‍मान व सुरक्षा चाहते हैं, तो पुलिस विभाग में महिलाओं की संख्‍या और सुरक्षा पर पहले ध्‍यान दें। यकीन मानें कि देश की पुलिस व्‍यवस्‍था अगर ठीक हो जाए तो 50 फ़ीसदी समस्‍याएं ख़त्‍म हो जाएंगी। पुलिस पर विश्‍वास बढ़ने मात्र से अपराधियों को पकड़ने की गति कई गुणा बढ़ जाएगी। यकीन मानिए कि बिना किसी तनख्‍वाह के लाखों-करोड़ों लोग अपराध या अपराधियों के ख़िलाफ़ खड़े हो जाएंगे।

( इस मजमून को एक अाम भारतीय का दर्द समझें।

चंदन शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार।)

chandan sharma profile


चंदन शर्मा। धनबाद के निवासी चंदन शर्मा ने कई शहरों में घूम-घूमकर जनता का दर्द समझा और उसे अपनी जुबान दी है। दैनिक हिंदुस्तान, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, जागरण समूह और राजस्थान पत्रिका में वरिष्ठ संपादकीय भूमिका में रहते, सबसे निचली सतह पर जीने वाले लोगों की बात की। समाज में बदलाव को लेकर फिक्रमंद एक पत्रकार की छवि ही इनकी कामयाबी की कुंजी और पूंजी दोनों है।


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3 thoughts on “हर ‘डंडे’ पर ‘सॉरी’ कहना कहां मुमकिन है?

  1. चंदन जी के इस लेख से तो एक बात स्पष्ट है कि देश में पुलिस एक क्रिमिनल संस्था है । आपकी जानकारी बहुत सतही ,सुनी-सुनायी, एवं वास्तविकता से बिलकुल परे है । आपको मालूम होना चाहिए कि लगभग १३० करोड़ लोगों के इन्टरनल सेक्योरिटी को यही पुलिस संभालती है तभी जाकर आप सब बेफिक्र जिन्दगी जी रहे हैं,अपना काम काज कर रहे हैं , समूचा राष्ट्र रन कर रहा है । जिनको आपने कबिलाई लुटेरा घोषित कर दिया है , यदि वो सिर्फ एक दिन के लिए भी विश्राम पे चला जाय तो क्या होगा आप अनुमान लगा सकते हैं ? पूरा नेशन रूक जाएगा , छिन्न -भिन्न हो जाएगा , कुछ नहीं बचेगा , सब लूट लिया जाएगा ।
    आपको और अध्ययन एवं शोध की आवश्यकता है। मैं आपकी मदद करूँगा । सोच, समझ ,ज्ञान, तर्क, तथ्य , गहरी हो तो मजेदार लगता है ।

    1. इस आलेख में संदर्भ का उल्‍लेख इसलिए नहीं है, क्‍योंकि यह विचार के फॉरमेट में लिखा गया है. सारे तथ्‍य व उदाहरण वही है, जो मीडिया में हाइलाइट हो चुके हैं व जिनपर कार्रवाई भी हुई है. कोई छिपा हुआ तथ्‍य नहीं है. जहां तक लोकतंत्र में बेफ‍िक्र हो कर जीने और देश चलने की बात है, उसके लिए सभी संस्‍थाओं का बराबर योगदान है. चाहे वह सेना हो, अर्द्ध सैनिक बल हो, होम गार्ड या पुलिस. पुलिस के दायित्‍व या जरूरतों पर सवाल नहीं उठाया गया है. हां, उनकी कार्यशैली में बदलाव, भर्ती व प्रमोशन नियमों में बदलाव और सुधार बहुत जरूरी है.

  2. Pankaj Kumar -पुलिस की आपराधिक गतिविधि पर हम लोग चुप्पी साध लेते हैं । आवाज़ उठनी चाहिए ।

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