‘रावणों’ ने किया एक बेटी का ‘जिंदा-दहन’!

उमरपुर गांव, प्रतापगढ़, यूपी
उमरपुर गांव, प्रतापगढ़, यूपी

हरिगोविंद विश्वकर्मा

वह सपने देखने वाली लड़की थी। देहात और ग़रीब परिवार की लड़की। करियर बनाने का दृढ़ संकल्प ले रखा था। वह पढ़-लिखकर किसी स्कूल या विद्यालय में टीचर बनना चाहती थी, ताकि समाज की निरक्षरता दूर करने में थोड़ी-बहुत मदद कर सके। इसलिए वह बीए की पढ़ाई कर रही थी। शायद प्रकृति को यह भी मंज़ूर नहीं था। आरोप है कि पड़ोसियों ने इसे आग के हवाले कर दिया। क़रीब 90 फ़ीसदी जल चुकी ये लड़की आठ दिन तक इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में मौत से लड़ती रही, लेकिन 3 अक्टूबर (शनिवार) को तड़के ढाई बजे उसने काल के सामने हथियार डाल दिए। उसका जिस्म ठंडा हो गया और उसके सपनों को काल निगल गया।

दरअसल, यह घटना उत्तरप्रदेश के प्रतापगढ़ जिले की है। लालगंज अजहारा तहसील के श्रीपुर उमरपुर गांव में 25 सितंबर को शाम पांच बजे का वक्त था। उस समय सूर्यास्त होने में क़रीब घंटे भर बाक़ी था। आरोप है कि पड़ोसियों ने घर के पीछे शौच के लिए गई अकेली और निहत्थी 19 साल की ज्योति विश्वकर्मा पर हमला कर दिया। उस पर मिट्टी का तेल डालकर उसके जिस्म में आग लगा दी, जिससे ज्योति धू-धू करती लपटों से घिर गई। पास-पड़ोस का कोई व्यक्ति रक्षा करने के लिए भी नहीं आया। असहाय ज्योति का जिस्म जलता रहा, वह चिल्लाती रही लेकिन सब तमाशाबीन बने रहे। आसपास खड़े थे, लेकिन उसे बचाने या उसके जलते शरीर पर कंबल डालने कोई नहीं आया। अंततः जलती हुई ज्योति ने ख़ुद को बचने का प्रयास किया और अपने घर में भागी, जहां उसकी मां मालती विश्वकर्मा परिवार के लोगों के लिए खाना बना रही थी।

ज्योति, पीड़ित
ज्योति, पीड़ित

जब जलती हुई ज्योति घर के अंदर घुसी तो मां और तीन बहनें घबरा गईं कि ज्योति के साथ यह क्या हो गया? सबने कंबल डालकर आग बुझाई लेकिन ज्योति बुरी तरह जल चुकी थी। बहरहाल, दो किलोमीटर दूर रहने वाले लड़की के बड़े पिता को बुलाया गया, क्योंकि ज्योति के पिता सउदी अरब में कारपेंटरी के दिहाड़ी मज़दूर हैं। आनन-फानन में रिश्तेदार ज्योति को लेकर प्रतापगढ़ जिला अस्पताल गए, लेकिन वहां उसे फौरन इलाहाबाद ले जाने की सलाह दी गई। इलाहाबाद में सरकारी अस्पताल पहुंचे, तो डॉक्टरों की हड़ताल चल रही थी।मजबूरी में घर वाले उसे सिविल लाइंस के एक निजी अस्पताल ले गए।

इलाहाबाद के बीरेंद्र अस्पताल में ज्योति का इलाज शुरू हुआ। बाद में मामला उनसे भी नहीं संभला तो उसे इलाहाबाद के स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में भेज दिया गया। चेहरे को छोड़कर ज्योति के जिस्म का काफी हिस्सा जल चुका था। जब ज्योति के रिश्तेदार घटना की रिपोर्ट लिखवाने घर से दो किलोमीटर दूर जेठवारा पुलिस स्टेशन गए तो, जैसा कि आरोप है, थानाध्यक्ष ने उन्हें गाली देकर भगा दिया। जलाने की वारदात रिपोर्ट दबाव बनाने के बाद 26 सितंबर की शाम दर्ज की जा सकी। जब सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 27 सितंबर को कार्रवाई करने का आदेश दिया तब जाकर पुलिस ने मुख्य आरोपी ओमप्रकाश मौर्या समेत सभी चारों आरोपियों को गिरफ़्तार किया।

देश के दूर-दराज के इलाक़ों में होने वाली बर्बर घटना पर भी पुलिस और प्रशासन का रवैया क्या होता है, यह इस घटना से एक बार फिर साबित हो गया। कोई घटना दिल्ली या मुंबई में होती है तो मीडिया और आम जनता में उबाल आ जाता है। ब्रेकिंग न्यूज़ चलने लगती है लेकिन देहातों में होने वाली घटनाओं को कोई नोटिस भी नहीं लेता। ज्योति विश्वकर्मा को बुनियादी मेडिकल फैसिलिटीज़ बमुश्किल मयस्सर हो पाईं। आठ दिन तक ज़िंदा रही ज्योति ने मजिस्ट्रेट को दिए बयान में सभी चारों आरोपियों का नाम लिया है।

मौर्य बाहुल्य श्रीपुर गांव में ज्योति का  परिवार इकलौता विश्वकर्मा परिवार है। माता-पिता और चार बेटियों वाले परिवार में ज्योति सबसे बड़ी थी। बाक़ी तीन बहनें 14, 10 और सात साल की हैं। उसके पिता राजेंद्र विश्वकर्मा कारपेंटरी का काम करते हैं और इस समय सउदी अरब में दिहाड़ी मज़दूरी कर रहे हैं। आने जाने का किराया न होने और सउदी सरकार द्वारा इजाज़त न देने के कारण वह बड़ी बेटी को देखने भी नहीं आ सके।

3

ज्योति के रिश्तेदार संजय कुमार विश्वकर्मा के मुताबिक़ टीचर बनने का सपना पाले ज्योति पास के बाबा सर्वजीत गिरी महाविद्यालय में बैचलर ऑफ़ आर्ट (बीए) के अंतिम साल में पढ़ रही थी। संजय ने बताया कि ज्योति के परिवार का दो बीघा खेत है। उस खेत पर पड़ोस में रहने वाले ओमप्रकाश मोर्या की नज़र थी। उसने दो महीने पहले ज्योति के खेत में ज़बरदस्ती दीवार बना ली थी। इस ज़ोर-जबरदस्ती का ज्योति की मां मालती विरोध करती थी। आरोप ये है कि परिवार को सबक सिखाने के लिए ज्योति को जिंदा जला दिया गया। उधर, ज्योति जिंदगी और मौत के बीच झूल रही थी, इधर आरोपी पुलिस के साथ मिलकर केस वापस लेने के लिए ज्योति के परिजनों पर दबाव बना रहे थे।

ज्योति की मौत से निराश और पस्त संजय कुमार कहते हैं, “कभी-कभी लगता ही नहीं, बल्कि यह साबित भी हो जाता है कि यह देश, यहां का लोकतंत्र और यहां संविधान सब कुछ चंद लोगों के लिए ही है।”


hari govind vishvkarma

हरिगोविंद विश्वकर्मा, संपादक, आरोग्य संजीवनी। मुंबई में 22 साल से प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में पत्रकारिता। महाराष्ट्र हिंदी साहित्य अकादमी के सदस्य।

2 thoughts on “‘रावणों’ ने किया एक बेटी का ‘जिंदा-दहन’!

  1. Sandeep Sharma -bahut hi dukhad…aur usse bhi jyada dukhad aur pareshan karta hai media aur sarkar ka ravaiya…is khabar ke liye media ke paas samay nahi hai…kyunki isme 2 samuday me ladai karwane ki taqat nahi hai…

  2. Sharat Kumar- सरकार और मीडिया में ध्यान आकर्षण के लिए जरूरी है कि लड़की दलित/मुस्लिम/ईसाई समुदाय से हो साथ ही रावण ऊँची जाति का हिन्दू हो। अगर एक भी कंडीशन fulfill न हुई तो उस पर ध्यान कोई नही देगा ।
    शर्म आती है ऐसी सरकारों और मीडिया पर

Comments are closed.