ये फ़िक्र बे’कार’ नहीं, बेकार है सियासी ‘चिल्ल-पों’

फोटो- @choudharyview
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सैयद जैग़म मुर्तज़ा

भाई दिल्ली में बे-कार रहने वाले हम जैसे लोग तो ख़ुश हैं। पिछले पांच साल में चंद छुट्टी वाले दिनों को छोड़कर सड़कों पर इतना सुकून कभी न दिखा। दिल से तो यही दुआ निकलती रही कि ख़ुदा कम से कम उन लोगों को तो बे-कार कर ही दें जो बेकार में ही चार-पांच कार ख़रीदे पड़े हैं। कुछ सड़कों पर सड़ रही हैं, कुछ सड़कें सड़ा रही हैं।

ईवन ऑड का सही परीक्षण सोमवार को होगा जब लोग छुट्टियां निबटाकर लौटेंगे। मगर शुरुआती दो दिनों (1,2 जनवरी) का तजुर्बा तो यही बता रहा है कि इससे हालत सुधरी है। दिल्ली इस तरह का ट्रैफिक परीक्षण करने वाला दुनिया का पहला शहर नहीं है। प्रदूषण से जूझ रहे तेहरान के कई इलाक़ों में निजी कारों का प्रवेश प्रतिबंधित किया गया है। शंघाई और सिंगापुर में भी लोगों को सार्वजनिक वाहन प्रणाली अपनाने और निजी वाहनों से दूर रखने की कोशिशें की जा रही हैं। ये और बात है कि दिल्ली में इसे लेकर जितनी राजनीति हो रही है उतनी कहीं नहीं।

odd even1विरोध करने वाले दो तरह के लोग हैं। एक जो राजनीति से प्रेरित हैं और जिनका काम सिर्फ विरोध के लिए ही विरोध करना है। दूसरा तबक़ा वो है जो शहर की सड़कों को अपने बाप की जागीर मानता है। इस तबक़े से जुड़े लोग एक क़दम पैदल नहीं चलना चाहते। इन्हें सड़कों पर लगने वाले जाम से भी परेशानी है। सड़क पर चलने वाले साईकिल सवार और पैदल लोग इन्हें बरदाश्त नहीं। इक्के, हाथ ठेले वालों की इनके सामने बिसात ही क्या? ये तबक़ा किसी हाल में नहीं मानेगा कि सड़क पर उसकी वजह से कोई परेशानी है। सरकार से छूट मिलने के बाद सीएनजी, कमर्शियल वाहन और महिला चलित कारों की तादाद पर कोई फर्क़ नही पड़ा बावजूद इसके दिल्ली की सड़कें बग़ैर थमे चलती रह सकती हैं, ये अहसास कई बरस बाद हुआ है।

दिल्ली वैसे भी ख़राब यातायात प्लानिंग और लालफीताशाही में लिपटी व्यवस्था के लिए मशहूर है। यहां नई सड़क, पुल या वैकल्पिक मार्ग का ख़याल तब किया जाता है जब बीमारी लाइलाज हो जाती है। इसके बाद योजना बनने, क्रियान्वन और पूरा होने तक काम का मक़सद ही ख़त्म हो जाता है, क्योंकि तब तक इतनी देर हो चुकी होती है कि फिर से एक विकल्प की ज़रूरत आ पड़ती है। यहां रिंग रोड, आउटर रिंग रोड अब समाधान नहीं रहे हैं बल्कि ख़ुद समस्या का शिकार हैं। दिल्ली के बाहर से आने वाले वाहनों के लिए यहां कोई योजना नहीं है। सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था वक़्त से दस साल पीछे है। ऐसे में अब कोई भी फौरी राहत दिल को सुकून देती है।

नियम तोड़ने पर बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह को रोका। फोटो- @choudharyview
नियम तोड़ने पर बीजेपी सांसद सत्यपाल सिंह को रोका । फोटो- @choudharyview

हालांकि ईवन-ऑड भी कोई स्थाई समाधान नहीं है। सरकार को दिल्ली में निजी वाहनों की राशनिंग व्यवस्था के साथ साथ कई और क़दम उठाने होंगे। एक तो जिन लोगों के पास पार्किंग नहीं है उनका कुछ इलाज ज़रूरी है। कोई भी वाहन अगर सड़क पर बेवजह रोज़ खड़ा हो रहा है उस पर जुर्माना होना चाहिए। लोग या तो पार्किंग की जगह के बिना वाहन न ख़रीदने पाएं या किसी सार्वजनिक पार्किंग में ही उसे खड़ा करें।

हर कार की ख़रीद पर आधार अनिवार्य कर देना चाहिए। एक परिवार में एक से ज्यादा चौपहिया वाहन की ख़रीद पर अधिभार लगाना चाहिए। इस आमदनी से नई सड़कों का विकास होना चाहिए। दिल्ली में एक बार ठीक से अतिक्रमण विरोधी अभियान की भी जरूरत है ताकि सड़कों पर लोगों के अवैध क़ब्ज़े हटें और रोड चौड़ी हों। जब तक बहुत ज़रूरी न हो लोगों को पांच सीट वाले वाहन में अकेले सफर न करने दिया जाए। या तो सवारी पूरी लेकर चलिए या सीट के हिसाब से जुर्माना भरिए। इतनी सड़क आप घेर कर चल ही रहे हैं तो सड़क का बोझ कम कीजीए। जब तक ये सब नहीं होता तब तक दोपहिया, चार पहिया समेत सभी वाहन ईवन-ऑड के हिसाब से चलते रहें। वरना सड़क सिर्फ कार वालों के लिए नहीं बनी हैं, इन पर बे-कार लोगों का भी बराबर का हक़ है।


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ज़ैग़म मुर्तज़ाउत्तरप्रदेश के अमरोहा जिले में गजरौला के निवासी। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र फिलहाल दिल्ली में राज्यसभा टीवी में कार्यरत हैं।


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