न पटवारी, न अधिकारी… हम बदलेंगे गांव

अपने घर से करें बदलाव की शुरुआत। फोटो- नीलू अग्रवाल
अपने घर से करें बदलाव की शुरुआत। फोटो- नीलू अग्रवाल

हम अक्सर गांव की समस्याओं के लिए शासन, पंचायत या फिर सरपंच को दोषी ठहराते रहते हैं। कभी कहते हैं कि पंचायत अपना काम ठीक से नहीं कर रही है, तो कभी कहते हैं कि प्रधान ही भ्रष्ट है। कभी पटवारी वगैरह पर आरोप लगा कर अपने मन की भड़ास निकाल लेते हैं। इससे समस्या का समाधान नहीं होता। यदि हम थोड़ा सा ध्यान दें तो इन सभी समस्याओं का समाधान हमारे आस पास होता है।

गांव में साफसफाई एक गंभीर समस्या होती है। सिर्फ सफाई कर्मचारी के भरोसे बैठे रहने से कुछ नहीं होगा। सभी लोग अपने घरों के आसपास सफाई रखें एवं कूड़े को निर्धारित स्थान पर फेंकने की आदत डालें। घर के आसपास खाली जमीन पर फूल वगैरह लगा दें। इससे घर की सुंदरता बढ़ जाएगी। फलों व सब्जियों के छिलके से खाद बनाई जा सकती है। प्लास्टिक की जगह जूट के थैलों का इस्तेमाल करें। प्लास्टिक मिट्टी में गलता नहीं है और खेती को हानि पहुंचाता है।

कैसे बदलें गांव- 10 सुझाव

1. सभी अपने घर के आस-पास सफाई रखें

2. घर के पास की खाली ज़मीन पर फूल-पौधे लगाएं

3. प्लास्टिक की जगह जूट के थैलों का इस्तेमाल करें

4. जैविक खाद के इस्तेमाल पर जोर दें

5. गांव के बुजुर्गों को अहम फ़ैसलों में साझीदार बनाएं

6. बच्चों के लिए गांव में ट्यूशन सेंटर्स खोलें

7. युवाओं को रोजगारपरक शिक्षा दी जाए

8. महिलाएं स्वयं सहायता समूह बनाकर रोजगार की शुरुआत करें

9. वैज्ञानिक तौर-तरीकों से खेती करें

10. सामूहिक खेती के विकल्पों को आजमाएं

गांव में कई ऐसे लोग होते हैं, जो काफी जानकार होते हैं। वे अपनी जानकारी से गांव को फ़ायदा पहुंचा सकते हैं। मसलन गांव के अंदर ही बच्चों के लिए ट्यूशन सेंटर खोलकर। इससे बच्चों को स्कूलों के अतिरिक्त भी पढ़ने को मिल जाएगा। उन्हें अनुभवी लोगों के मार्गदर्शन से दोहरा लाभ होगा। जो लोग जिस विषय के जानकार हों उस विषय को पढ़ा दिया करें। गांव में किसी के भी बैठक का इस काम के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। या चाहें तो प्राथमिक विद्यालय का भी इस्तेमाल कर सकते हैं। वहीं पर नए एवं रोजगारपरक विषयों की भी जानकारी दी जानी चाहिए। बच्चों की शैक्षणिक समस्याओं का समाधान भी वहीं हो जाने से बच्चों को भटकना नहीं पड़ेगा।

गांव की महिलाओं को स्वयं सहायता समूह बनाना चाहिए। स्वयं सहायता समूह के माध्यम से कार्य सुगमता से तथा बिना किसी दबाव के होता है। मसलन यदि महिलाएं अपना समूह बनाकर छोटीछोटी आमदनी से रोजगारपरक कार्य प्रारंभ करें तो वे आर्थिक रूप से मजबूत बन सकती हैं। आवश्यकता सिर्फ एक ईमानदार पहल की है। वे मोमबत्ती बनाना, अचारपापड़ बनाना या सिलाईकढ़ाई का काम भी कर सकती हैं। समूह की कुछ महिला सदस्यों को तैयार सामान की ब्रिक्री करने और उनका प्रचार करने का जिम्मा उठाना चाहिए। कई एनजीओ व सरकारी संस्थाएं इस तरह के रोजगार से संबंधित प्रशिक्षण व जानकारी उपलब्ध करवाती हैं। उनसे मदद लेकर महिलाएं परिवार को समृद्ध बना सकती हैं। कई ऐस गांव हैं, जिन्होंने अपनी किस्मत स्वयं सहायता समूह से बदली है।

अब बात करते हैं गांव के सबसे महत्वपूर्ण वर्ग की। किसान गांव ही नहीं देश के लिए भी महत्वपूर्ण योगदान देता है। उसी की मेहनत का प्रतिफल होता है कि पूरा देश अन्न से अपना पेट भर पाता है। पर आजकल लोगों में खेती के प्रति लगाव कम होता जा रहा है। आज किसान भी अपने बच्चों को ऊंची शिक्षा दिलाकर दूसरे रोजगारों में तो लगाना चाहते हैं पर किसान नहीं बनाना चाहते। इसके पीछे की वजह है, किसान को खेती में हो रहा नुकसान। दूसरी वजह है खेती के परंपरागत तौर-तरीके। अब वैज्ञानिक तरीके से और बहुफ़सली खेती करने तथा जैविक खाद के इस्तेमाल से खेती भी लाभ देने वाले रोजगार में बदल रही है। यदि आप प्रशिक्षण लेकर खेती करते हैं, तो आपको दोहरा लाभ होगा। राज्य सरकार और केंद्र सरकार की कई योजनाएं किसानों के लिए चलती रहती हैं, पर जानकारी नहीं होने की वजह से किसान उनका लाभ नहीं उठा पाते। अपने ब्लॉक अधिकारी से मिलकर उन योजनाओं की जानकारी लेकर लाभ उठाना चाहिए। किसान भी अपना एक समूह बनाकर एक दूसरे की मदद से खेती करें, तो वो भी सफल हो सकता है।

गांव के विकास न करने की वजह हमारी जड़ता है। यदि हम अपनी जानकारी बढ़ाएं और सूचनाओं का आदान प्रदान करें तो गांव की तस्वीर बदल सकते हैं। गांव भी शहर की तरह खुशहाल हो सकता है और कई गांव इस बात के प्रमाण हैं कि लगन और परिश्रम से गांव तरक्की कर सकता है। तो चलिए हम संकल्प लें कि हम अपने गांव को तरक्की के रास्ते पर ले जाएंगे।

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आजमगढ़ के बगहीडाड़ गांव के निवासी भूपेंद्र सिंह इन दिनों इंडिया टीवी में कार्यरत हैं। आप से 07827597770 पर संपर्क किया जा सकता है।


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