‘घास की रोटी’ का जुमला यूं ही न उछालिए जनाब

आशीष सागर दीक्षित

घास की रोटी की हक़ीकत की पड़ताल। फोटो- आशीष सागर दीक्षित
घास की रोटी की हक़ीकत की पड़ताल। सभी फोटो- आशीष सागर दीक्षित

” एक वो है जो रोटी बेलता है,
एक वो है जो रोटी सेंकता है !
एक वो है जो न बेलता है,न सेंकता है,सिर्फ रोटी से खेलता है !
मै पूछता हूँ वो कौन है ?
देश की संसद मौन है !”

बुंदेलखंड में इन दिनों घास की रोटी अहम मुद्दा है। मीडिया से लेकर विधानसभा और आम लोगों के बीच नाचती इस घास की रोटी ने केंद्र सरकार, सूबे की समाजवादी सरकार के साथ ही स्थानीय आला कमान की नींद भी हराम कर रखी है ! इस घास की रोटी का ताना-बाना बुंदेलखंड की वीरांगना धरती झाँसी में अक्टूबर 2015 के आखिरी दिनों में रचा गया था। आम आदमी पार्टी  के पूर्व नेता और स्वराज अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव और उरई (जालौन) की संस्था परमार्थ के संजय सिंह ने मिलकर सूखे का सर्वे किया! इस सर्वे के बाद 25 नवम्बर को दिल्ली से प्रेसवार्ता और सोशल मीडिया के माध्यम से योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण ने विज्ञप्ति ज़ारी की। इन लोगों ने बुंदेलखंड में अकाल की दस्तक के साथ सूखे की विषम स्थति को रखते हुए ललितपुर, झाँसी(तालबेहट क्षेत्र), उरई की हरदोई ग्राम पंचायत में सर्वे के आंकड़े परोसे। सर्वे के आंकड़े आने के बाद नेशनल और स्थानीय मीडिया में आये दिन फिकरों के साथ घास के निवाले और घास की रोटी को परोसा गया। इस घास की रोटी कैम्पेन में कौन किसान ये रोटियां खा रहे हैं, यह आज भी रहस्य ही है!

 banda roti 5टीकमगढ़, तालबेहट के बाद अब घास की रोटी दिसंबर में बाँदा के नरैनी तहसील के नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) और घसराउट में भी खिला दी गई ! उल्लेखनीय यह कि अबकी बार यह घास की रोटी एनजीओ कंसलटेंट एवं सुप्रीम कोर्ट के पूर्व राष्ट्रीय सलाहकार सज्जाद हसन और हर्ष मंदर ने खाई। इस खबर से बिफरे अपर जिलाधिकारी बाँदा 24 दिसंबर को इस गाँव पहुंचे, जहाँ मोटे अनाज और छद्म घास का सच देखकर तमतमा गए ! नौगवां ग्राम पंचायत (सुलखान का पुरवा) में इस बार घास की रोटी को ‘चिंगारी में सेंकने ‘ की जिम्मेदारी एक्शन एड, एड इट एक्शन, टाटा ट्रस्ट के फंड के जरिए काम कर रही संस्था विद्या धाम समिति (पूर्व नाम परागीलाल विद्या धाम समिति,अतर्रा,बाँदा) ने निभाई।

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नौगवां ग्राम पंचायत में घुसते ही मुझे संता पटेल, रमापति हैण्डपम्प में गेंहूँ धुलते मिली ! तस्वीर लेने पर बोली ‘ भैया फोटू खीचत हा,कुछ मिलय का हवे ‘ ! वही गहबरा मजरे के बाबू नरेश सिंह और नौगवां के जगन्नाथ सिंह ने घास की रोटी का सच पूछने पर कहा कि साहेब इहाँ कोऊ घास नाही खात ह, काहे तफरी लेत हो ! उनसे सवाल हुआ कि इसके पीछे क्या है ? तब बाबू नरेश सिंह और जगन्नाथ बेबाकी से कहते है कि ‘ राजाभैया यादव जादूगर हैं ! वा दस ठा मेहरिया लेय फिरत हवे ! ‘ चक्कर म न पड़े ! पगडण्डी पर चलते हुए रस्ते में रजनू नाई और रज्जू शेख पुत्र शोकत शेख गेंहू पिसाने ले जाते हुए मिले उनका कहना था कि ‘घास खाने के दिन अभी नही आये हैं ! हाँ गाँव में पशु चारे की किल्लत है, खेत में फसलें चौपट हैं, मगर घास जानवर खाते हैं इंसान नही !

banda roti 6बतलाते चलें कि सुलखान का पुरवा अल्पसंख्यक बस्ती के करीब बीस घरों का टोला है। दोआबा की पट्टी में बसा यह मजरा माउं सिंह का पुरवा, करौला पुरवा, छिन्गरिया पुरवा (पटेल बिरादरी), सुखारी का पुरवा से घिरा है। यहाँ से 5 किलोमीटर की दूरी पर चित्रकूट मंडल का प्रसिद्ध गुढ़ाकला गाँव है, जो निकले हुए हनुमान जी के मंदिर के चमत्कार के लिए चर्चित है। मंगलवार को यहाँ दस से पंद्रह कुंटल के घी-वनस्पति के भंडारे-लंगर और आम दिनों में मेले सी रवायत सजी रहती है। यानी कोई गरीब या संत-फ़कीर भूखा नही रह सकता। आसपास के गांवों में पेयजल के साधन सीमित है बाघे-रंज नदी के किनारे यह क्षेत्र बसा है। सुलखान के पुरवा में अमूनन हर घर में हैण्डपम्प, तीन से दो मुर्रा भैंस और हर परिवार में बकरी पशु धन के रूप में दिखलाई देती है। कुछ घरों में शौचालय भी है। खासकर उन घर में जहाँ ‘चिंगारी में सिंकी घास की रोटी’ खाने के दावे किए जा रहे हैं।

 banda roti 03‘चिंगारी’ की कार्यकर्ता शकीला ( इनके पास पांच बकरी, तीन भैस, दो जोड़ी बैल, कृषि जमीन आंशिक ) संवाददाता की टीम के पहुंचते ही अपनी घास की रोटी, ज़ारी वाले बेर, सूखे महुआ (मैले से) और कैथे की बुकनू थाली में लेकर उपस्थित थी। शकीला के चार बेटे हैं, जो मौसम के अनुसार काम करते हैं- गाँव में मनरेगा या दिहाड़ी मजदूर के तौर पर। उन्होंने घास की रोटी के बारे में पूछने पर बतलाया कि ‘ इस रोटी में मकुई, कैथे की पत्ती और पिसान (आटा) मिला है। वे कहती हैं हम ने यही बतलाया था। अब लोग चाहे घास समझें या कुछ और। इसी टोले की पियरिया मंसूरी ( चार बेटे और 22 नातियों के परिवार के बाद भी अकेले रहने वाली) की माने तो वो पलकी, बथुआ और चौराई खाती हैं। वो कहती हैं- अब हाथ पैर चलते नहीं,बेटे साथ नहीं है इसलिए बना खा लेती हूँ मगर घास नहीं खाती !

GHAS KEE ROTI BANDAसुलखान के पुरवा में जब हम पियरिया मंसूरी से बाते कर रहे थे, तभी बमुश्किल दस मीटर की दूरी पर बैठी जैनबनिशा के हाथ में गेंहूँ की बिंदास सिंकी रोटी, गुड़ की भेली और देशी गाँव का घी देखकर आँखे चमक गईं। बिटिया ने रोटी अपनी फ्रॉक में छिपाने की नाकामयाब कोशिश की । उससे पूछा तो हवा का किला ढेर हो गया ! जब उसके घर गए तो माँ तवे में ताज़ी मस्त गेंहूँ की रोटी सेंक रही थी और झोपड़ी में खाद खेत बोने के लिए और दो बोरी में गेंहूँ रखा था। माँ से बात हुई तो उसने सूखे और गाँव में गरीबी की बातें स्वीकार कीं लेकिन घास की रोटी खाते हैं, इस बात को सिरे से नकार दिया। टोले में हर देहरी पर मुर्रा भैंस और बकरी इस घास की रोटी की मुंह लजा रही थी और गाँव के छोटे बच्चे माचिस की टिक्की से तास के पत्ते खेलने की पूर्व रिहर्सल करते नजर आये। गाँव से निकलते हुए अपने खेत जोतते किसानों के ट्रैक्टर भी कैमरे में कैद हुए।

गुढ़ाकला की मिटटी को लजाने वाले अपनी सामाजिक दुकानदारी चमकाने को बुंदेलखंड में घास की रोटी सिंकवा रहे हैं।माना कि आपकी मंशा बुन्देली किसानों को  सरकार से खास राहत दिलाने की है, लेकिन प्रायोजित राजनीति के तहत देश की बदनामी क्यों? त्रासद है ये बुंदेलखंड की गरीबी और किसान आत्महत्या के बाद उपजी घाटे की खेती में लोग ख़बरों का बाज़ार तलाश रहे हैं।


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बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर एकला चलो रेके नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।


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