‘गुलाबी’ खेतों का रंग ‘लाल’ हो रहा है…

बाँदा के जसपुरा से आशीष सागर दीक्षित

banda 7 decगरीबी और आधे पेट रोटी खाकर अपने खेत की सूखी मिटटी को नम करने की जद्दोजहद में एक और अन्नदाता ने अपने ही खेत में 5 दिसंबर 2015 की दोपहर दम तोड़ दिया। जीवन की आपा-धापी से मुक्त हो गया बाँदा जिले का चालीस साल का किसान। गौरीकला गाँव एक और मौत से सदमे में है।  देश की आज़ादी के आधी शताब्दी बाद भी ये किसान भी हम दो हमारे दो की एलओसी पारकर तीन बेटों और पांच बेटियों का पिता था। उसे गुमान रहा होगा कि आठ गरीब संतानों को पैदा करके वो इस ‘लुटे-पिटे’ मुल्क में एक सुनहरा सवेरा देगा! मगर नियति की मार और बुंदेलखंड के सूखे के बीच किसान आत्महत्या की सूची में में वो भी शामिल हो गया ।

आशीष की आंखों देखी- 7

banda 7 dec1तिंदवारी विधान सभा से इस किसान मतदाता की लाश आज इतनी लाचार थी कि गाँव का ग्राम प्रधान दिनेश गुप्ता उर्फ़ साधू गुप्ता उसको देखने भी न आया। ( खबर लिखे जाने तक) बतलाते चलें कि गाँव के बिखरते ताने-बाने के बीच उलझी इस किसान की सांसें भी परवारिक रिश्तों की टूटन में नितांत मुफलिसी की शिकार हो गई थीं। कहते हैं कि पिता ने बीस बीघा खेती की जमीन में एक बिस्वा भी इसको नहीं दी थी। ये बुंदेलखंड के गाँवों की क्रूर परंपरा है कि जिंदा रहते पिता अपने बेटों को अपने सामने मजदूरी करवाते हैं। उन्हें कृषि की हिस्सेदारी नहीं देते, ये भुलाकर कि ब्याह के बाद बढ़ता हुआ परिवार क्या खायेगा ? मृतक किसान के नाम ज़मीन नही है ! ये खेतिहर मजदूर बटाई में खेती लेकर परिवार पालता रहा है।

आज उसके आठ मासूम बच्चों को बिलखता देख के मुझे अदम गोंडवी की वो लाइनें याद आ गईं…

तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है

मगर ये आंकडे झूठे हैं – ये दावा किताबी है !

इस मृतक अन्नदाता को आगामी बीस दिसंबर को ‘ अन्नदाता की आखत ‘ चेरिटी शो में हम सब यथासंभव मदद देने का संकल्प करते हैं !


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बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर एकला चलो रेके नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।


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3 thoughts on “‘गुलाबी’ खेतों का रंग ‘लाल’ हो रहा है…

  1. आशीष सागर -आज (7/12) सुबह से मृतक किसान की बेवा पत्नी गंभीर बीमार है, उसकी नाड़ी और बीपी नाजुक हालत में है ! गाँव के संतोष सैनी के मुताबिक गर उसको कुछ हुआ तो ये खेत की लाल मिटटी से हमें नफरत होगी ! बाकी स्थानीय प्रसाशनिक अमले का क्या कहूँ ! साथ ही ये कि मृतक किसान गाँव के किसान इंद्रजीत सिंह के खेत में दिहाड़ी मजदूरी करता था। ये किसान भूमिहीन है जिससे इसको सरकारी योजना का लाभ भी मिलना मुश्किल है ! न इसका कृषक बीमा है और न ये किसान परिवार लाभ योजना में शामिल होगा क्योंकि इसके नाम पर खेती की जमीन नहीं है !

  2. Im so touched by dis i want to help d family with 1 lac rs provided d wife has a bank ac in her name. Also can i hv any ph no to talk to her? This is Rekha Modi from Patna Social worker

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